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भारत में नदी प्रदूषण

July 4, 2017


river-pollutionकई नदियों और झीलों के रूप में पानी के प्रचुर प्राकृतिक स्रोतों पर विचार करते हुए देखे तो भारत एक समृद्ध देश है। देश को सही तौर पर “नदियों की भूमि” के रूप में उल्लेखित किया जा सकता है, भारत के लोग नदियों की पूजा देवी और देवताओं के रूप में करते हैं। लेकिन क्या विडंबना है कि नदियों के प्रति हमारा गहन सम्मान और श्रद्धा होने के बावजूद, हम उसकी पवित्रता, स्वच्छता और भौतिक कल्याण बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं। हमारी मातृभूमि पर बहने वाली गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और कावेरी या कोई अन्य नदी हो, कोई भी प्रदूषण से मुक्त नहीं है। नदियों के प्रदूषण के कारण पर्यावरण में मनुष्यों, पशुओं, मछलियों और पक्षियों को प्रभावित करने वाली गंभीर जलजनित बीमारियाँ और स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

नदी प्रदूषण के कारण

नदियाँ दिन-प्रतिदिन प्रदूषित हो रही हैं। कई नदियों में चलने वाली विभिन्न सरकारी परियोजनाओं के बावजूद जल प्रदूषण को प्रतिबंधित करने या रुकने का कोई भी संभव परिणाम नहीं मिला है। हम किसे दोषी ठहरायें? जल प्रदूषण के बहुत सारे कारक हैं जो नदी के पानी की समग्र गुणवत्ता को कम करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से कुछ हैं:

  • औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों के मिश्रणों और भारी धातुओं को पानी में छोड़ दिया जाता है। इन्हें साफ करना मुश्किल होता है।
  • कृषि अपशिष्ट, रसायन, उर्वरक और कृषि में इस्तेमाल किए गए कीटनाशक नदी के जल को दूषित करते हैं।
  • प्राकृतिक बारिश भी प्रदूषण साथ लाती है क्योंकि यह प्रदूषित हवा के साथ गिरती है। हम इसे अम्लीय वर्षा कहते हैं जो मिट्टी में पहुँचकर हानिकारक पदार्थों को उत्पन्न करती हैं।
  • नदियों में प्रवाहित किये गये घरों से निकलने वाले घरेलू अपशिष्ट और गंदे नाले नदियों में प्रदूषण के स्तर को बढ़ा देते हैं।
  • प्लास्टिक थैले और वस्तुएं, ठोस अपशिष्ट और फूल-मालाओं का नदियों में नियमित अपवहन प्रदूषण का दूसरा कारण है।
  • जलाशयों के पास खुले स्थानों पर कई प्रकार के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले लोग भी नदियों के प्रदूषण में योगदान करते हैं।
  • जलाशयों में पशुओं को नहलाना, वाहनों और कपड़ो को धोना भी प्रदूषण का अन्य कारण है।
  • मानव अवशेषों को नदियों में प्रवाहित करना प्रदूषण का एक अन्य कारण है, आंशिक रूप से जला हुआ शरीर और मृत शरीर स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे पैदा करते हैं।

नदी प्रदूषण के बारे में कुछ औचित्य

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के सांख्यिकी आँकड़ों ने प्रदूषण के संदर्भ में नदी के प्रदूषण के कुछ कठोर स्पष्टीकरण दिये हैं, जिसने इसे गंभीर चिंता का विषय बना दिया है:

  • 445 नदियों पर सर्वेक्षण किया गया है, सर्वेक्षण से पता चला कि इनमें से एक चौथाई नदियाँ भी स्नान के योग्य नहीं है।
  • भारतीय शहर हर दिन 10 अरब गैलन या 38 बिलियन लीटर नगरपालिका वाला अपशिष्ट जल उत्पन्न करते हैं, जिनमें से केवल 29% का उपचार किया जाता है।
  • केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह भी कहा है कि 2011 में किए गए सर्वेक्षण में लगभग 8,000 शहरों में केवल 160 सीवेज प्रणाली और सीवेज उपचार संयंत्र थे।
  • भारतीय शहरों में दैनिक रूप से उत्पादित लगभग 40,000 मिलियन लीटर सीवेज में से केवल 20% का उपचार किया जाता है।

प्रदूषित गंगा और यमुना

  • यमुना नदी एक कचरे के ढेर का क्षेत्र बन चुकी है जिसमें दिल्ली का 57% से अधिक कचरा फेंका जाता है।
  • दिल्ली के केवल 55% निवासियों को एक उचित सीवरेज प्रणाली से जोड़ा गया है।
  • विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के अनुसार, यमुना नदी के प्रदूषण में लगभग 80% अनुपचारित सीवेज है।
  • गंगा को भारत में सबसे प्रदूषित नदी माना जाता है।
  • गंगा नदी में नियमित रूप से लगभग 1 बिलियन लीटर कच्चे अनुपचारित सीवेज को प्रवाहित किया जाता है।
  • गंगा नदी में प्रति 100 मिलीलीटर जल में 60,000 फ्रैकल कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है।

नदी प्रदूषण के प्रभाव

नदियों में होने वाला प्रदूषण पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के साथ मानव तथा अन्य जीवों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। यह मनुष्यों में स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं और विकारों में एक बड़ा योगदान देता है। नदी में होने वाला प्रदूषण जलीय जीवों के जीवन को भी प्रभावित करता है, इससे मछलियों की वृद्धि और विकास पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ता है और बड़े पैमाने पर इनकी मृत्यु हो जाती है, उपभोग के लिए अयोग्य हैं। नदियों के प्रदूषित जल ने जानवरों और पक्षियों के जीवन पर भी प्रभाव डाला है, इससे कभी-कभी उनके अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हुआ है। लंबे समय तक लगातार चलने वाले नदी प्रदूषण से जैव विविधता को नुकसान हो सकता है और कुछ प्रजातियों को विलुप्त और पूरी तरह से पारिस्थितिक तंत्र को बाधित कर सकता है।

समाधान

हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम नदियों पर कितना अधिक निर्भर हैं। हमारे देश में नदियाँ ही हैं जो हमें पेयजल, सिंचाई, बिजली और परिवहन प्रदान करती हैं और देश में बड़े पैमाने पर लोगों के लिए आजीविका का एक बड़ा स्रोत भी हैं। इसलिए हम अपनी नदियों को नजरअंदाज नहीं कर सकते और उन्हें नष्ट नहीं होने दे सकते है।

सरकार नदी के प्रदूषण को रोकने और कम करने के नाम पर पिछले कई वर्षों से भारी मात्रा में धन खर्च कर रही है। कुछ बदलाव नहीं हुआ है और न ही कोई होगा, कोई सकारात्मक कार्यवाई ही इसमें बदलाव ला सकती है। औद्योगिक कचरे और सीवेज के उपचार के लिए उपचार संयंत्रों की स्थापना के लिए रेडीमेड कार्यक्रम और फिर अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में प्रवाहित करना आदि केवल बाहरी या दिखावे के कार्य हैं।

यह कहना आसान है कि किसानों को खेती के जैविक तरीकों को अपनाना चाहिए, इससे नदियों में होने वाले रासायनिक प्रदूषण में कमी आयेगी। हमने काफी सुना है इसलिए माँग भी की है कि नदी के किनारे धार्मिक प्रथाओं पर प्रतिबंध लगना चाहिए। इसके अलावा, कोई भी धोबी घाट नहीं होना चाहिए। यह भी हमेशा तर्क दिया जाता है कि उचित जल निकासी और सीवेज प्रणाली जो कि प्रदूषित जल को नदियों के जल में मिश्रित करने की अनुमति नहीं देता है, को लागू करना चाहिए।

अक्सर यह भी सुना जाता है कि हम देश के नागरिक समान रूप से इसके जिम्मेदार हैं लेकिन सामूहिक जिम्मेदारी काल्पनिक वास्ताविकता है। यह दावा किया जाता है कि हम स्थानीय नदी और जलाशयों की सफाई में समुदायों को भागीदारी करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, तो ऐसा क्यों नहीं किया गया है?

हमें लोगों के बीच जागरूकता कार्यक्रमों, बैठकों और नदी के प्रदूषण और इसके खतरों के कारण और नदी के प्रदूषण के प्रभावों पर जागरूकता का आयोजन करना चाहिए, यह कार्यक्रम उन लोगों के लिए होने चाहिए जो नहीं जानते कि प्रदूषण बुरा है।

नदी प्रदूषण को कम करने के लिए खड़े होकर रास्ता दिखाने और सुझाव देने के बजाय लोगों को इसके प्रति समाज को जागरूक करने के लिए, छोटी घटनाओं और प्रेरणा कार्यक्रमों के रूप में उदाहरण देने के लिए इन कार्यों का आयोजन करना चाहिए।