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भारत में जल संकट – समस्या और समाधान

August 26, 2017


WATER SCARCITY IMAGES

पृथ्वी पर मनुष्य के अस्तित्व के लिए पानी की मूलभूत आवश्यकता है, लेकिन इसकी सबसे अधिक प्राथमिकता होने के बावजूद, इसका दुरुपयोग भी बहुत अधिक हो रहा है। हमारी जिंदगी का मुख्य केंद्र पानी है लेकिन हम अपनी योजनाओं में इस केंद्र बिंदु पर ध्यान केन्द्रित ही नहीं कर रहे हैं जबकि हम तेजी से शहरी समाज में विकसित हो रहे हैं।

मध्यकाल में, शुरुआती समाजों ने पानी के महत्व और इसकी जरूरत को समझा और उन्होनें इसके आसपास जीवन की योजना बनाई। सभ्यताओं का जन्म हुआ और पानी को महत्व देना कम हो गया। आज, हमें इसकी अनुकूल परिस्थिति की जानकारी है और अभी भी हम पानी के महत्व को समझने में विफल रहे हैं तथा इसके चारों ओर हमारे समाज को बसाने की योजना बना रहे हैं।

चलो पानी की स्थिति को लेकर भारत पर ध्यान देते हैं। दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु घाटी की सभ्यता है जो भारत की गंगा नदी के आसपास विकसित हुई और अभी भी फल-फूल रही है। लेकिन बहुत लम्बे समय तक ऐसा नहीं होगा। स्वतंत्रता के बाद, बड़े बांधों के माध्यम से पानी को नियंत्रित करने और भंडारण करके पानी की शक्ति का दोहन करने के लिए उचित महत्व दिया गया। यह तो उस वक्त की माँग थी। हालांकि, हमारे शहर और कस्बे पानी की जरूरत बनाम पानी की उपलब्धता की योजना बनाए बिना बड़े होते चले गए। 1951 में, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5177 एम 3 थी। जो अब 2011 में घटकर लगभग 1545 एम 3 तक रह गई है (स्रोत: जल संसाधन प्रभाग, टेरी)

भारत में पानी की कमी के पीछे का कारण

पानी की कमी ज्यादातर जनसंख्या वृद्धि और जल संसाधनों के कुप्रबन्ध के कारण हुई है। पानी की कमी के कुछ प्रमुख कारण हैं:

  • भारत में सिंचाई के लिए पानी का अकुशल इस्तेमाल होता है। दुनिया में, कृषि उत्पादन में भारत शीर्ष उत्पादकों में से एक है इसलिए सिंचाई के लिए पानी की खपत सबसे अधिक होती है। सिंचाई की परंपरागत तकनीक, वाष्पीकरण, जल निकाय, रिसना, जल वाहक और भूजल के अधिक उपयोग के कारण अधिकतम पानी का नुकसान होता है। जैसा कि कृषि के अधिकतर क्षेत्र की सिंचाई परंपरागत सिंचाई तकनीक से होती है, अन्य उद्देश्यों के लिए उपलब्ध पानी के लिए तनाव जारी रहेगा। इसका व्यापक समाधान सूक्ष्म सिंचाई तकनीक जैसे ड्रिप और फव्वारा सिंचाई का उपयोग करके किया जा सकता है।
  • घर की छत पर गिरने वाले बरसात के पानी का संग्रहण। पारंपरिक जल निकाय जिन्होंने भूजल रिचार्जिंग तंत्र के रूप में भी काम किया है, यह उनकी अनदेखी कर रहा है। एक नए निर्माण को कार्यान्वित करने के दौरान हमें तत्काल पारंपरिक जलवाही स्तर को पुनर्जीवित करना होगा।
  • पानी की कमी का एक कारण पारंपरिक जल निकायों में सीवेज और अपशिष्ट जल निकासी भी है यदि इस समस्या को हल करना है तो इस स्रोत पर सरकार के हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है।
  • भारत में पानी की कमी का कारण नदियों और तालाबों में रसायनों और अपशिष्ट पदार्थों का बहना है। इसको कम करने के लिए सरकार, एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा सख्त निगरानी और कानून के कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
  • बरसात के मौसम में बड़े जल निकायों में समय-समय पर साफ सफाई करवा कर जल भंडारण क्षमता को ज्यादा बढ़ाया जा सकता है जिसका अभाव है। यह आश्चर्य की बात है कि राज्य स्तर पर सरकार ने इसे वार्षिक कार्य के रूप में प्राथमिकता से नहीं लिया है। यह अकेला कार्य जल भंडारण स्तरों में महत्वपूर्ण बढ़ावा कर सकता है।
  • शहरी उपभोक्ताओं, कृषि क्षेत्र और उद्योगों के बीच पानी के कुशल जल प्रबंधन और वितरण का अभाव है। सरकार को प्रौद्योगिकी में अपने निवेश को बढ़ाने की जरूरत है और मौजूदा संसाधनों का अनुकूलन सुनिश्चित करने के लिए योजना के स्तर पर सभी हितधारकों को शामिल करना होगा।

शहरों में समस्या का रूप

शहरों में होने वाले विकास और कंक्रीटीकरण के कारण भूजल संसाधनों को अवरूद्ध कर दिया गया है जिसके कारण यह समस्या और बढ़ गई है। हमारे शहरी समाज में बरसात के पानी को न तो प्राकृतिक तत्वों को बनाए रखते हुए इसका उपयोग करने के अनुकूल तरीके से रिचार्ज किया जाता है और न ही उसमें संग्रहीत किया जाता है। इसके अलावा, गंभीर रूप से जल निकायों में औद्योगिक कचरे और गंदगी का प्रवेश पीने योग्य पानी की उपलब्धता को कम कर रहा है। ज्यादातर इन क्षेत्रों में जलीय जीवन वाले प्राणी पहले ही लुप्त हो गए हैं। यह एक बहुत गंभीर उभरता हुआ संकट है। अगर हम इस समस्या के स्रोत को नहीं समझ पायेगें तो हम कभी भी इस जटिल समस्या का स्थायी समाधान नहीं ढूढ सकेंगे।

एक उदाहरण के तौर पर हैदराबाद को ले लें। किसी समय में इस शहर में कई जल निकाय और पीने योग्य पानी था। उस्मान सागर और हिमायतसागर झीलों का निर्माण किया और इन झीलों ने शहर को सौ साल से भी ज्यादा समय तक पेयजल प्रदान किया हैं। अधिक आबादी (लोगों का शहर में प्रवासन) के शहर में प्रवास करने के कारण हुए सभी दिशाओं में अनियोजित निर्माण की वजह से, शहर के आस-पास जो पारम्परिक जलस्तर था, उसमें लगातार कमी हो रही थी।

राज्य के स्वामित्व वाली एचएमडब्ल्यूएस और एसबी तथा निजी मालिकों द्वारा संचालित 50,000 से अधिक बोर कुएं हैं, जो भूजल को खींच रहे हैं। अब भूजल स्तर काफी कम हो गया हैं। अगर जमीनी जल रिचार्ज नहीं हुआ, तो आपूर्ति और भी बदतर हो जाएगी। जल को संग्रह की माँग, भंडारण, उत्थान और वितरण पर जोर दिया जा रहा है, जबकि पानी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। भारत के सभी मुख्य शहरों की यही कहानी है।

पानी की कमी की समस्याओं पर काबू पाने के लिए समाधान

पूर्ण रूप से!

यदि भारत में बिना पानी वाले शौचालय का उपयोग किया जाये तो यह लगभग प्रति वर्ष  प्रति घर के हिसाब से 25,000 लीटर से ज्यादा पानी बचा सकता है। पारंपरिक फ्लश प्रति फ्लश छह लीटर पानी खर्च करता है। यदि घर के लड़कों सहित सभी पुरुष सदस्य पारंपरिक फ्लश का उपयोग करने के बजाय ‘पानी मुक्त मूत्रालय’ का उपयोग करें तो पानी की बढ़ती मांग पर सामूहिक प्रभाव काफी कम हो जाएगा। इसको कानून द्वारा अनिवार्य बनाया जाना चाहिए और शिक्षा और जागरूकता के द्वारा घर और विद्यालय में भी इसका अनुसरण किया जाना चाहिए।

  • घर पर बर्तन धोने के दौरान बर्बाद होने वाले पानी की मात्रा भी महत्वपूर्ण है। हमें अपने बर्तन धोने के तरीकों को बदलने और जल बहाने की आदत को कम करने की जरूरत है। यहाँ पर आपका एक छोटा कदम पानी की खपत में महत्वपूर्ण बचत कर सकता है।
  • प्रत्येक आत्मनिर्भर घर / फ्लैट और समूह आवास कॉलोनी में वर्षा जल संचयन करने की सुविधा होनी चाहिए। यदि वर्षा जल संचयन करने की सुविधा को कुशलता से डिजाइन और ठीक से प्रबंधित किया जाये, तो यह अकेले ही पानी की माँग को काफी कम करने में सक्षम है।
  • गंदे पानी का शुद्धीकरण करके इसका पीने के अलावा इस पानी का अन्य कामों में उपयोग किया जा सकता है। गंदे पानी का शुद्धीकरण करने के लिए कई कम लागत वाली तकनीकें उपलब्ध हैं जो समूह आवास क्षेत्रों में कार्यान्वित की जा सकती हैं।
  • बहुत बार, हम देखते हैं कि हमारे घरों में, सार्वजनिक क्षेत्रों और कालोनियों में पानी लीक हो रहा होता है। एक छोटे से स्थिर पानी रिसाव से प्रति वर्ष 2,26,800 लीटर पानी का नुकसान होता है। जब तक, हम जल अपव्यय के बारे में नहीं जानेंगे और जागरूक नहीं होंगे, तब तक हम उस पानी की मूल मात्रा का लाभ नहीं ले पाएंगे, जिसे हमें अपने सामान्य जीवन के साथ जारी रखना होगा।

पहल करने का समय आ गया है।