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चोट्टानिकारा भगवती मंदिर, केरल

June 16, 2017


temple-hindiहम भगवान के स्वयं के देश के एक शानदार मंदिर से शुरूआत करते हैं, चोट्टानिकारा भगवती मंदिर, केरल के नाम से प्रसिद्ध यह शानदार मंदिर केरल के परशुराम क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर में हर साल हजारों श्रृद्धालु दर्शन के लिये आते हैं। देवी भगवती को समर्पित यह मंदिर दक्षिणी भारत का सबसे अधिक प्रवासी हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में देवी भगवती की प्रातः के समय देवी सरस्वती, दिन के दौरान देवी लक्ष्मी और संध्या के समय देवी दुर्गा के रूप में पूजा की जाती है। यहाँ पर देवी को शंख और चक्र के साथ सुशोभित किया गया है, इन वाद्ययंत्रों के वर्णन से भगवान विष्णु का पालन करना माना जाता है। यहाँ पर देवी शक्ति (दिव्य स्त्री) के तीनों अवतारों में विद्यमान हैं जब आप एर्नाकुलम के चोट्टानिकारा मंदिर में प्रवेश करते हैं तो आपको सभी दिशाओं से “अमी नारायण, देवी नारायण, लक्ष्मी नारायण और भद्र नारायण” मंत्रों की ध्वनि गूँजने का आनुभव होता है।

स्थान

चोट्टानिकारा भगवती मंदिर एर्नाकुलम-कोच्चि से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यह केरल का एक मुख्य शहर है।

निकटतम हवाई अड्डा: कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा – 38 कि.मी. है।

निकटतम रेलवे स्टेशन:

  • एर्नाकुलम दक्षिण रेलवे स्टेशन – 18 कि.मी.
  • एर्नाकुलम उत्तर रेलवे स्टेशन – 20 किमी

निकटतम राज्य बस स्टेशन:

एर्नाकुलम केएसआरटीसी सेंट्रल बस स्टेशन – 20 कि.मी.

कलूर निजी बस स्टैंड – 22 कि.मी.

इतिहास

चोट्टानिकारा भगवती मंदिर लगभग 1500 वर्ष पुराना माना जाता है। किदवंती के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कन्नप्पन नाम के एक वनवासी के द्वारा घने जंगल में किया गया था। कन्नप्पन एक बूढ़ा पिता था जो अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था। वह देवी भगवती को प्रतिदिन एक पशु की बलि दिया करता था लेकिन एक दिन उसको बलि देने के लिये कोई पशु नहीं मिला। तब उसने अपनी बेटी से उसके पालतू बछड़े की बलि देने के लिए कहा लेकिन उसकी बेटी ने देवी के समक्ष अपनी बलि देना को पसंद किया। बछड़े ने कन्नप्पन से बात की और पता चला कि वह पशु के रूप में देवी थीं। परिवर्तित हुए कन्नप्पन ने बलि देने वाले स्थान पर देवी की पूजा शूरू कर दी। इस मंदिर का अनुचित रूप से उपयोग किया गया अंततः एक घास काटने वाले के द्वारा इसकी खोज हुई।

ऐसी मान्यता है कि कोल्लूर (कर्नाटक के उडुपी जिला) में स्थित एक मंदिर की संरक्षक देवी मोकाम्बिका भी इस मंदिर में उपस्थित रहती हैं, जब प्रातः की प्रार्थना के लिये मंदिर के किवाड़ खोले जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में स्थित देवी भगवती की लाल मूर्ति “स्वयंभू” अपने आप प्रकट हुई मानी जाती है। इस मूर्ति का आकार बेडौल है परन्तु पुजारी इसे शानदार आभूषण और रंगीन साड़ियों से सुशोभित करने में काफी निपुण हैं। आदि गुरू शंकराचार्य जैसे हिंदू धर्म के कई नेताओं ने देवी की पूजा की है। कहा जाता है कि देवी सरस्वती ने आदि गुरू शंकराचार्य से हर सुबह यहाँ पर उपस्थित होकर भक्तों को आशीर्वाद देने का आश्वासन दिया है। विल्वामंगलम स्वामीयार नामक एक अन्य संत ने पास के तालाब के निकट निचले मंदिर (कीज़ू काव्यु) में देवी भद्रकाली की मूर्ति की खोज की बात कही है।

मंदिर

कोचीन देवस्वाम बोर्ड भगवती चोट्टानिकारा मंदिर पर प्रशासन के लिये उत्तरदायी है। यह मंदिर क्षेत्र के सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में से एक है। मंदिर परिसर में देवी भगवती अम्मां और भगवान विष्णु के मुख्य मंदिर के अलावा धर्म षष्ठ के अन्य देवताओं शिव, ब्रह्मा, गणेश, सुब्रह्मण्य (कार्तिक), अंजने (हनुमान) और नागा (नाग देव) के छोटे मंदिर स्थापित हैं। मंदिर परिसर में एक तालाब (टैंक भी कहा जाता है) के विपरीत देवी देवी भद्रकाली या कीज़ू काव्यु का निचला मंदिर स्थापित है। श्रृद्धालुओं को अपनी यात्रा सम्पूर्ण करने के लिये मुख्य मंदिर और कीज़ू काव्यु मंदिर दोनों में प्रार्थना करनी चाहिए। मंदिर में भक्तों के आराम करने और पूजा सामग्री खरीदने के लिये दुकानों की सुविधा है।

प्रसिद्धता

चोट्टानिकारा भगवती अम्मां (देवी) और कीज़ू काव्यु भद्रकाली अम्मां की रोग हरने वाली देवी के रूप में पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में जीवन पर्यन्त चलने वाली बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। हिंदू मान्यता में निचले मंदिर की भद्रकाली देवी भूत की संरक्षक देवी हैं।

ऐसा माना जाता है कि देवी की 41 दिन तक की गयी प्रार्थना से बुरी आत्माओं द्वारा खराब मानसिक रोगों और अलौकिक बंधन से मुक्ति मिलती है। मंदिर परिसर में एक प्राचीन ‘पाल’ वृक्ष (एल्सटोनिया स्कॉलरीस) स्थित है।

यहाँ पर बुरी आत्माओं और राक्षसों को इस पाल वृक्ष की कीलों में या बाड़े में बाँध लिया जाता है, जो इस वृक्ष को घेरे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में इन कीलों को ठोकने के लिये श्रृद्धालुओं ने हथौड़े की जगह अपने सिर का उपयोग किया था। पेड़ के पास स्थित हजारों कीलों द्वारा चमत्कारिक इलाज का दावा किया जाता है।

श्रृद्धालुओं के लिये सूचना

समय

नादा या पवित्र स्थल के खुलने का समय – सुबह 4 बजे

भगवान शिव की धारा – सुबह 5 बजे

एथुर्थु पूजा – सुबह 5.30 बजे

सुबह सीवेली – सुबह 6 बजे

कीज़ू काव्यु मंदिर में गुरुथी पूजा – सुबह 7.30 बजे

पंथीराडी पूजा – सुबह 7.45 बजे

भगवान शिव की धारा – सुबह 11 बजे

उच्छपुजा या दोपहर पूजा – दोपहर 12 बजे

दोपहर सीवेली – दोपहर 12.10 बजे

सायं नादा खुलने का समय – सायं 4.00 बजे

दीपार्धान / दीपक जलाना – सायं 6.30 बजे

आथाजापूजा – सायं 7.30 बजे

शाम सीवेली – रात्रि 8 बजे

कीज़ू काव्यु मंदिर में सायंकालीन गुरुथी – 8.45 बजे

मंदिर के मुख्य दीपार्धान को मंदिर की वेबसाइट पर प्रतिदिन 6:30 बजे प्रस्तुत किया जाता है।

कृपया ध्यान दें

मंदिर में प्रवेश करने से पहले पुरुषों को अपनी कमीज उतारने की आवश्यकता होगी। प्रवेश करने के लिए महिलाओं को साड़ी या सलवार सूट पहनना होगा।

क्या है खास?

मंदिर में वेदी वजीपादु पूजा पटाखों से की जाती है।

मंदिर में मनाये जाने वाले महत्वपूर्ण उत्सव

ओणम – अगस्त के अंत में

नवरात्रि – अक्टूबर में

विशु – अप्रैल के मध्य में

मंदिर का मुख्य उत्सव (मकॉम थोजल) – फरवरी से मार्च

मकॉम थोजल उत्सव 7 दिनों तक मनाया जाता है। यह एक बड़ा आयोजन होता है इसमें देवी को श्रेष्ठ परिधान से सजाया जाता है, हाथी से जुलूस निकाला जाता है और विस्तृत पूजाओं का आयोजन किया जाता है। इस समय मंदिर में कई विवाह समारोहों का आयोजन किया जाता है।