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ट्रिपल तलाक पर आया फैसला – सर्वोच्च न्यायालय ने तत्काल ट्रिपल तलाक पर लगाई रोक

August 23, 2017


Triple Talaq Verdictआज सुबह, एक पाँच सदस्यों वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने मुस्लिम प्रथा में ट्रिपल तलाक पर फैसला सुनाया और इसे असंवैधानिक घोषित किया। ट्रिपल तलाक एक ऐसी प्रथा है जिसे देश में कुछ मुस्लिम समुदायों द्वारा तलाक देने की एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है जिसमें एक व्यक्ति केवल तीन बार तलाक बोल कर शादी को खत्म कर सकता है। यह विवाद इस बात से प्रारंभ होता है कि ट्रिपल तलाक द्वारा तलाकशुदा महिला को इस तरह से होने वाले तलाक के बाद होने वाले अन्याय पर कोई कानूनी सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है। तलाक देने की इस प्रक्रिया में तलाक देने वाला व्यक्ति एक पत्र के माध्यम से, एक ईमेल, एक मोबाईल संदेश, या एक विडियो रिकॉर्डिंग बना कर भेज सकता है और तलाक ले सकता है। तलाक देने वाले को कोई वैध कारण देने की आवश्यकता नहीं होती है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे. एस. खेहर और न्यायाधीश – अब्दुल नजीर, कुरियन जासेफ, आर एफ नरिमन और यू.यू. ललित शामिल थे। न्यायाधीश नरिमन और ललित ने इसे असंवैधानिक धोषित करते हुए इस प्रथा को अलग कर दिया और जस्टिस जोसेफ ने कहा कि ट्रिपल तलाक कुरान की शिक्षाओं का अपमान करता है, हालांकि, बेंच के अन्य दो सदस्यों ने ट्रिपल तलाक की प्रथा का समर्थन किया था। 3:2 के बहुमत पर इस बेंच ने इस प्रथा को समाप्त करते हुए सरकार को एक कानून बनाने का आदेश दिया जो ट्रिपल तलाक से निपट सके। सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला केवल तत्काल ट्रिपल तलाक पर लागू होता है, जिसे तलाक-ए-बिदअत के रूप में संदर्भित किया जाता है।

ट्रिपल तलाक प्रकरण – यात्रा

ट्रिपल तलाक एक वैध प्रथा बनी रही है, यह एक ऐसी प्रथा है जिसका पालन लगभग 1000 वर्षों से भारत के मुस्लिम समुदाय द्वारा किया जा रहा है। वर्ष 2015 में पहली बार यह मामला कानून के संज्ञान में आया, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने तलाक के मामले में महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव की जाँच करने के लिए एक बेंच स्थापित करने को कहा था। इन वर्षों में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी को ट्रिपल तलाक, हलाला और बहुपत्नी जैसी प्रथाओं की कानूनी वैधता की जांच करने के लिए नियुक्त किया गया था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  (एआईएमपीएलबी) भी इसमें शामिल था।

2016 में, 35 वर्षीय सायारा बानो अदालत में ट्रिपल तलाक को चुनौती देने वाली पहली महिला बनीं। उनकी याचिका में चार अन्य महिलाएं – अफरीन रहमान, आतिया साबरी, इशरत जहाँ और गुलशन परवीन भी शामिल थीं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इस प्रथा का “संवैधानिक ढांचे की कसौटी” पर परीक्षण किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस प्रथा का विरोध किया। नवंबर 2016 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि भारतीय नागरिकों को प्रदान किए गए संवैधानिक अधिकार पवित्र थे और किसी निजी नियमों के माध्यम से इसका हरण नहीं किया जा सकता है, जिसका अर्थ यह है कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है।

फरवरी 2017 में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले से संबंधित याचिकाएं सुनने के लिए एक 5 सदस्यीय बेंच का गठन किया। यह प्रथा कई राजनैतिक और धार्मिक बहसों का विषय बन गई, जो इसमें पाई जाने वाली मजबूत प्रतिक्रियाएं दोनों के पक्ष में थीं और उनके विपक्ष में भी थीं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तलाक देने वाले मुसलमानों को चेतावनी दी थी कि सशक्त कारणों (शरीयत या इस्लामी कानून द्वारा अनुमोदित) के बिना वह तलाक नहीं दे सकते।

11 मई 2017 को सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने ट्रिपल तालाक मामलों (बहुपत्नी प्रथाओं को छोड़कर) को सुनना शुरू कर दिया था। ट्रिपल तलाक को शादी तोड़ने के सबसे बुरे तरीकों में एक माने जाने के बावजूद, बेंच ने ट्रिपल तलाक के संवैधानिक होने की जांच करने के लिए कहा। 15 से 18 मई के बीच कई बहसें और जवाबी तर्क सामने आए। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्र मुस्लिम विवाह और तलाक की समस्याओं से निपटने के लिए एक नया कानून लाएगा। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा यह संवैधानिक नैतिकता का विषय नहीं है, बल्कि इस पुरानी प्रथा पर उनको विश्वास है। 18 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रिपल तलाक के बारे में सभी याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। आज, बहुत विचार-विमर्श के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने आखिरकार अपना फैसला सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रियाएं

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद, ट्रिपल तलाक का मामला सुलझाया जा रहा है। केंद्रीय विधायिका को मुस्लिम विवाह और तलाक से संबंधित एक नया बिल तैयार करने और पारित करने के लिए छह माह का समय दिया गया है। हालांकि, इसमें कई ऐसे प्रश्न हैं जिनका कोई उत्तर नहीं है। उस व्यक्ति के साथ क्या होगा जो इन छह महीनों में ट्रिपल तलाक देता है? आमतौर पर मुस्लिम समुदाय को कानून की स्वीकृति कैसे प्राप्त होगी? क्या होगा यदि यह कार्य समय सीमा में पूरा नहीं हो पाया? न्यायालय द्वारा सुनाए गए फैसले में केवल ट्रिपल तलाक का मामला शामिल था। तलाक के अन्य रूपों में क्या किया जायेगा? आने वाले महीनों में इसमें स्पष्टता दिखाई देगी। इसी बीच, देश की मुस्लिम महिलाएं इस फैसले को एक जीत और एक ऐतिहासिक सफलता मानती हैं। कई इस्लामिक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है जबकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जो सभी मुस्लिम संगठनों का संरक्षक है, उन्होंने अपनी प्रतिक्रियाएं रोक दी हैं और कहा है कि बोर्ड इस फैसले पर अध्ययन करेगा और भविष्य में की जाने वाली कार्यवाइयों पर निर्णय देगा।