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उड़ी- भारत पर हमला

September 19, 2016


17 सैनिक शहीद हो गए; 19 की हालत गंभीर है- जम्मू-कश्मीर के उड़ी में आर्मी ब्रिगेड के कैम्प पर रविवार सुबह हुए फिदायीन हमले से पूरा देश गुस्से से आक्रोशित है। हमारे साहसी सैनिकों पर इस तरह के हमले की कल्पना भी किसी को नहीं थी।

रविवार तड़के, सीमा पार से आए चार आत्मघाती आतंकवादियों ने सेना के कैम्प पर ग्रेनेड हमला किया। बिहार रेजिमेंट के 15 और डोगरा रेजिमेंट के दो सैनिक इस हमले में शहीद हो गए। घायलों की हालत गंभीर है और उन्हें आर्मी बेस हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया है।

हमले के बाद, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने विदेश यात्रा रद्द की और अपने घर पर एनएसए, रॉ और आईबी के प्रमुखों, सीआरपीएफ के डीजी, बीएसएफ के डीजी और गृह सचिव के साथ कश्मीर की स्थिति का जायजा लिया और हालात की समीक्षा की। इस बीच, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग सीधे घाटी पहुंचे और खुद हालात की समीक्षा की।

सरकार इसे वाटरशेड मूमेंट कह रही है। निश्चित तौर पर यह है भी। भारत लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय समुदाय की गुड बुक्स में रहने के लिए निष्क्रिय प्रतिक्रियाएं देता रहा है। लेकिन इस हमले के बाद से धैर्य जवाब दे चुका है। यह कार्रवाई का वक्त है।

यह युद्ध है। युद्ध काल।

भारत लंबे समय से यूएन और अमेरिका जैसे देशों से उम्मीद लगाए बैठा था कि वह पाकिस्तान को काबू करेंगे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी रक्षात्मक रवैया अख्तियार करते हुए दोनों देशों को शांत रहते हुए बातचीत को आगे बढ़ाने की अपील करती रही है। लेकिन जब फ्रांस, बेल्जियम, स्पेन, यूके और जर्मनी को पिछले 12 महीनों में सीधे हमलों का सामना करना पड़ा, उन्होंने इस धैर्य और उदासीनता को परे करते हुए निर्णायक युद्ध की बात की।
जब 9/11 का हमला हुआ था, तब अमेरिका ने तत्काल किसी और देश के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई शुरू कर दी। वह भी दूसरे महाद्वीप पर जाकर। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन का इंतजार भी नहीं किया। यह उनके स्व-हित में था।

इजरायल भी पीछे नहीं था। उसकी तो छवि भी ऐसी बन गई है जब उसकी धरती पर या उसके लोगों पर दुनिया में कहीं भी हमला होगा, वह तत्काल और तीखा जवाबी हमला करेगा। वह अंतरराष्ट्रीय राय की चिंता नहीं करता। न ही इन हमलों का समर्थन करने वालों की कीमत बढ़ाने की कोशिश करता है।
कई बरसों से, पाकिस्तान के साथ बिना किसी नतीजे की बातचीत और चर्चा कर रहा है। निश्चित तौर पर एक जवाबदेह पड़ोसी के तौर पर काम कर रहा है। लेकिन अब निष्क्रियता छोड़कर प्रत्यक्ष एकतरफा कार्रवाई का वक्त आ गया है। यह भारत के हित में है। भारत को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को जवाब देने की तैयारी कर लेनी चाहिए। उसी तरह से जैसे पाकिस्तान पिछले कई बरसों से झूठ बोलता आया है।

दक्षिण चीन सागर में अपना केस हारने के बाद भी चीन जैसा देश विश्व बिरादरी की राय की चिंता नहीं करता। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपने समर्थन के बाद भी वह संयुक्त राष्ट्र में कार्रवाई से पाकिस्तान जैसे देश को बचाता रहता है।

ऐसा नहीं है कि भारत ने कोई कार्रवाई नहीं की। जब भारतीय सेना ने पूर्वोत्तर में नगा उग्रवादियों के हले में अपने जवानों को गंवाया, तब हमने तत्काल जवाबी कार्रवाई की और सीमा पार जाकर सभी साजिशकर्ताओं को ठिकाने लगाया। समस्या यह है कि हमारे देश में इसी तरह की कार्रवाई पाकिस्तान में घुसकर करने की नहीं है। यदि ऐसा होता तो रविवार का हमला और इसी तरह पठानकोट का हमला भी नहीं होता।

उकसा रहा है पाकिस्तान

पाकिस्तान की धृष्टता देखिए। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने रविवार को कहा कि यदि भारत ने कोई कार्रवाई की तो उसका जवाब परमाणु हथियारों के जरिए दिया जाएगा। यह स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान की मुंहजोरी ही दिखाता है। यह न केवल गैर-जिम्मेदाराना और खतरनाक है, बल्कि भारत के धैर्य को बड़ी चुनौती भी है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय के धैर्य की परीक्षा भी है। यह बयान उत्तर कोरिया के स्तर का है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर कुछ नहीं करने वाली? समुदाय इस पर चुप नहीं रह सकता या वह विश्व आतंकवाद पर बोलने की अपना हक और नैतिक अधिकार गंवा देता।

अब पुष्टि हो चुकी है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देता है

विश्व बिरादरी को और कितने सबूतों की जरूरत है? यह महज एक आतंकी हमला नहीं है बल्कि भारत देश के खिलाफ युद्ध छेड़ा गया है। पाकिस्तान लंबे समय से हर एक हमले के साथ युद्ध के लिए उकसाने का काम करता है। वह धैर्य की परीक्षा लेता है। वक्त भारत के कड़े जवाब का है।

पाकिस्तान हमेशा कहता है कि आतंकवादी गुटों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। वह नॉन स्टेट एक्टर्स के पीछे छिपता आया है। लेकिन विश्व और उसके नेताओं के सामने अब उसकी पोल खुल चुकी है। यह कोई नई बात नहीं है। 1947-48 में पाकिस्तानी सैनिक कबाइलियों के भेस में कश्मीर के एक हिस्से में दाखिल हुए और पट्टन तक पहुंचे, जहां भारतीय सेना ने उन्हें रोका। करगिल के दौरान भी उन्होंने सैनिकों को चरवाहों के भेस में ऊंची पहाड़ियों पर भेजा और कब्जा जमाया। शुरू में पाकिस्तान ने तो अपने मृत जवानों के शरीर लेने तक से इनकार कर दिया था। वह तो पहचानने को भी तैयार नहीं था।

मुंबई पर हुआ 26/11 हमला पूरी दुनिया ने देखा। सीधा प्रसारण हुआ। पाकिस्तानी आतंकियों ने किस तरह हमारे साधारण नागरिकों को निशाना बनाया, यह पूरी दुनिया ने देखा। इसके बाद भी पाकिस्तान कहता रहा कि इसमें उसकी सरकार की कोई भूमिका नहीं है। बल्कि नॉन स्टेट एक्टर्स ही ऐसा करते रहे हैं।
अब तो वक्त आ गया है जब पूरी दुनिया साथ आकर पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देश के तौर पर पहचाने और सामूहिक कार्रवाई करें। या भारत के साथ खड़े होकर उसे अपने पड़ोसी के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति दें।

भारत को पाकिस्तान के परमाणु हमले की धमकी की चिंता नहीं करनी चाहिए। वह करगिल के वक्त भी परमाणु ताकत था, लेकिन उस समय भी भारतीय सैनिकों के वार से उसकी नाक नहीं बची थी। भारत को सीमा के अन्य हिस्सों में भी कार्रवाई करनी चाहिए। पंजाब से लेकर राजस्थान और गुजरात तक
सजगता दिखानी चाहिए। इससे पाकिस्तान सेना को अपने तमाम संसाधनों का इस्तेमाल करना होगा। उन्हें यह भी पता नहीं चलेगा कि भारत की अगली कार्रवाई कहां से होगी। किस दिशा से हमला हो सकता है। भारत ने सियाचिन से पाकिस्तान को पीछे धकेल दिया है। अब वक्त आ गया है जब जम्मू-कश्मीर से हटकर भारत पाकिस्तानियों को अन्य कमजोर हिस्सों में लेकर जाएं। भारत के पास न केवल सैन्य क्षमताएं और संसाधन हैं बल्कि माद्दा भी है जवाबी कार्रवाई का। इस समय सिर्फ राजनीतिक एकजुटता की जरूरत है।

भारत के छद्म राष्ट्रवादियों और युद्धविरोधियों को सामने लाने का वक्त

पाकिस्तान अकेला दुश्मन नहीं है। बल्कि हमारे कई छद्म-राष्ट्रवादी राजनेता और सिविल सोसायटी के अमनपसंद लोग भी कहीं न कहीं जाने-अनजाने उसकी मदद करते हैं। कई लोग तो कश्मीर में सैनिकों पर पत्थर फेंकने वाले के प्रति भी सहानुभूति रखते हैं। लेकिन इस हमले के खिलाफ कोई सुगबुगाहट नहीं करते।

वह सभी खुशी-खुशी घाटी चले जाएंगे ताकि राष्ट्र-विरोधियों से बात कर सके। लेकिन बिहार में उन 17 सैनिकों के परिवार से मिलने नहीं जाएंगे जो बिहार रेजिमेंट से थे और शहीद हो गए। अब ऐसे लोगों को एक्सपोज करने के साथ ही अलग-थलग करने का वक्त आ गया है।

हम पिछले 70 साल से जम्मू-कश्मीर की सरकार और वहां के राजनेताओं से चर्चा कर रहे हैं, बात कर रहे हैं, वित्त पोषण कर रहे हैं, लाड़-प्यार कर रहे हैं और बहुत ही सहजता से लेते हैं। लेकिन इस हमले के बाद एक राष्ट्र के तौर पर हमें पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर के साथ सख्ती से निपटना होगा। वह भी निर्णायक तौर पर।

हमारे नेताओं की वजह से बहुत वक्त और संसाधन बर्बाद हो चुके हैं। यह नेता खुद के लिए ही जीते हैं। देश के लिए कुछ नहीं किया। चुनावपूर्व भाषणों में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पाकिस्तान और चीन से निपटने के लिए 56 इंच की छाती की जरूरत है। अब, देश और विश्व समुदाय को यह दिखाने का वक्त आ गया है कि इसके मायने क्या होते हैं।

भारत न तो अपनी जवाबी कार्रवाई में देरी कर सकता है और न ही उसे करना चाहिए। लंबे समय से देश हर बार हमले के बाद कहता आया है कि “हम बराबरी से उचित समय और हमारी चुनी जगह पर हमला करेंगे।” लेकिन कोई उचित प्रतिक्रिया नहीं होती। आज पूरे देश को एकजुट होकर जवाब देने का वक्त आ गया है।

भारत के लिए सुनहरे पल

इस हमले के साथ, पाकिस्तान ने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। दो दिन में, प्रधान मंत्री नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र की महासभा को संबोधित करने वाले हैं। निश्चित तौर पर कश्मीर का मुद्दा ही उठाएंगे। भारत भी पीओके और बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना की ओर से हो रहे अत्याचारों का मुद्दा उठाएगा। लेकिन इस हमले के बाद भारत के पास अपने पड़ोसी को एक्सपोज करने का अच्छा मौका है। वह यूएन और उसके सहभागी देशों के सामने यह साबित कर सकता है कि पाकिस्तान ही वह देश है जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। भारत को यूएन में तत्काल और निर्णायक तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ रणनीतिक तौर पर आक्रामकता दिखानी होगी।

यूएन किस तरह रिएक्ट करता है, इस पर ही भारत को तय करना चाहिए पाकिस्तान के खिलाफ किस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए। एक बात के लिए तो हमें इस मुद्दे पर एकजुट होना ही होगा।