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1947 से आजाद! इसके आपके लिए क्या मायने हैं?

August 22, 2016


आजादी- इसके मायने और महत्व

आजादी- इसके मायने और महत्व

इस साल हम 70वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। कई शताब्दियों की गुलामी और सैकड़ों लोगों के बलिदान के बाद देश ने आजादी हासिल की थी। इतनी बड़ी उपलब्धि अर्जित की थी। अब, हम उस महान दिन की याद को लेकर फिर एक बाद जश्न मना रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आजादी शब्द हमारे लिए क्या मायने रखता है? क्या यह अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग होता है? जरूर होता है। कोई भी दो व्यक्ति एक जैसा नहीं सोच सकते। यह नया नहीं है। सदियों से यही होता आया है। जब हम इस पर सोचते हैं तो निश्चित तौर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भी कभी आजादी को लेकर ऐसा नहीं सोचा होगा। इतिहास में देखने पर साफ है कि आजादी और उसे हासिल करने के लिए उनकी राय अलग-अलग थी।

सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे लोग ब्रिटिश शासन के शिकंजे से देश की आजादी चाहते थे। उन्होंने सोचा कि ब्रिटिश लौट जाएंगे तो भारत के सुनहरे दिन फिर लौट आएंगे। वह समृद्धि के मामले में फिर दुनिया में शीर्ष स्थान पर आ जाएगा। हालांकि, महात्मा गांधी, रबींद्रनाथ ठाकुर और जवाहर लाल नेहरू जैसे विचारकों ने दूसरा रास्ता अपनाया। उनका कहना था कि भारत को सामाजिक और आर्थिक बुराइयों ने सदियों से जकड़ रखा है। इन बुराइयों से आजादी भी उतनी ही जरूरी है जितनी कि अंग्रेजों से।

सभी लैंगिक भेदभावों से आजादी

यह माना जाता था कि भारतीय समाज में हर लिंग के लिए काम तय है। पुरुषों को कुछ काम करना है और महिलाओं को कुछ और। तीसरे लिंग के लिए तो समाज में जगह ही नहीं थी। ग्रामीण और अर्द्ध ग्रामीण इलाकों में तो हालात और भी खराब थी। जहां तक तीसरे लिंग का सवाल है, ट्रांसजेंडर बिल से हालात में कुछ सुधार जरूर आया है। हालांकि, महिलाओं और पुरुषों की भूमिका तय है।
एक व्यक्ति के लिए आजादी का मतलब अपनी मर्जी के विषय की पढ़ाई या अपनी पसंद के पेशे को चुनना हो सकता है। उस पर ऐसा कोई विषय या पेशा न थोपा जाए, जो वह न करना चाहता हो। उसे वह पेशा चुनने की आजादी मिले, जिसमें उसे मजा आता हो। जरूरी नहीं कि वह ही परिवार में सबसे ज्यादा कमाने वाला हो।

भारत जैसे पुरुषों के प्रभुत्व वाले समाज में महिलाओं के लिए आजादी की जरूरत ज्यादा है। शुरुआत में, उन्हें पढ़ाई-लिखाई की अनुमति मिलनी चाहिए। उन्हें अपनी पसंद का पेशा या करियर चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि उनकी इच्छा के बिना शादी न करवाई जाए। वह चाहती है कि उनकी आय भी पुरुषों के बराबर हो। पुरुष को किसी पद पर जो वेतन मिलता है, वह उस पद पर उन्हें भी मिले। महिलाएं चाहती हैं कि परिवार, कार्यस्थल और समुदाय में उनके फैसले भी सुने जाए। उन्हें हमेशा किसी और के फैसलों पर अमल की जिम्मेदारी न सौंपी जाए। वे अपनी शर्तों पर जीवन जीने की इच्छा रखती हैं। ताकि कोई और उनके जीवन पर राज न करें। ग्रामीण और अर्द्ध-ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की विशलिस्ट तो और लंबी हो सकती है। वह पुरुषों के तौर पर सम्मान और आदर चाहती हैं। उन्हें फर्नीचर नहीं बने रहना और न ही बच्चे पैदा करने की मशीन, जिन्हें हर रोज उनका पति पीटता हो। उनकी इच्छा अपनी उपयोगिता को बढ़ाने की है। वे कुछ कर दिखाना चाहती है। वित्तीय आजादी चाहती हैं। बाल विवाह नहीं करना चाहती और सबसे महत्वपूर्ण अपनी बेटियों को बेटों के बराबर आगे बढ़ते देखना चाहती हैं।

आर्थिक वर्गों और पेशों में आजादी

भारतीय समाज को मोटे तौर पर चार आर्थिक वर्गों में बांटा जा सकता है- निम्न वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग और संपन्न वर्ग। निचले स्तर के तीनों वर्गों में सपना मोटे तौर पर एक-सा होता है। वह अपनी आर्थिक सेहत सुधारना चाहते हैं। ऊपर के स्तर पर जाना चाहते हैं। समस्याओं को पीछे छोड़ते हुए बेहतर कल के लिए सामाजिक सीढ़ियों का इस्तेमाल करते हुए ऊपर चढ़ना। उस पैकेज के तौर पर मिलने वाली प्रतिष्ठा और सम्मान को हासिल करना।

जहां तक पेशे का सवाल है, भारत में अपना व्यवसाय खुद चलाने वाले- उद्यमी और बड़े कारोबारी घराने- देश के राजनेताओं से मुक्ति चाहते हैं। यह उनके सामने नियमित रूप से समस्याएं पैदा करते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि अफसरों की भ्रष्ट प्रक्रियाओं से उन्हें आजादी मिले, जैसे कि लालफीताशाही और घूसखोरी, जो कई बरसों से उनका खून चूस रही है। सीढ़ी पर निचले क्रम पर मौजूद लोग चाहते हैं कि उनकी बातों को ज्यादा से ज्यादा लोग माने। तभी वे अपना बेहतर कल साकार कर सकेंगे।

जिन लोगों की उम्र अभी काम करने की है, उनके लिए आजादी का मतलब होता है एक दिन दफ्तर का जल्दी बंद हो जाना। उन्हें अपने करीबियों के साथ थोड़ा और वक्त मिल जाता है। उनके लिए आजादी मतलब त्योहारों के वह दिन होते हैं, जब उन्हें डेडलाइंस की चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता। आराम से छुट्टियां मनाते हुए वक्त बीत जाता है। इस दौरान उन पर कोई हुक्म चलाने वाला नहीं होता और यही उनकी आजादी है। यह खास तौर पर प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों पर ज्यादा लागू होता है।

सभी आयु समूहों में आजादी

एक नवजात शिशु के लिए पैदल चलना और मुंह से कुछेक शब्द बोलने से मिलने वाली खुशी एक अलग तरह की आजादी का अहसास कराती है। वह कुछ नया पा लेने की खुशी होती है। माता-पिता जो खा-पी रहे हैं, उसे भी वह चखने लगता है। युवाओं के लिए आजादी के मायने अलग हैं। उन्हें एकाध दिन अपने हिसाब से बिताने मिल जाए, खासकर शहरों में, तो यह उनके लिए सबसे बड़ी खुशी का दिन होगा। उन्हें अपने हिसाब से हेयरस्टाइल करने का मौका मिले, अपने हिसाब से घूमने-फिरने को मिले तो वह उनके लिए आजादी होती है। फिर चाहे वह एक दिन के लिए क्यों न हो। गांवों में रहने वाले युवा बेहतर भविष्य के सपने देखते हैं। वे अपनी परेशानियों को पीछे छोड़कर कुछ बहुत बड़ा हासिल करने की उम्मीद में रहते हैं।

जो लोग रिटायर हो चुके हैं, उनके लिए आजादी का मतलब है वह पुराने दिन जब न तो घुटना दर्द करता था और न ही मधुमेह था। यह आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होने और बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए बच्चों पर पैसे के लिए निर्भर न रहने का है। वे जिंदगी से सकारात्मक आधार पर विदाई चाहते हैं। वे परिजनों के बीच रहना चाहते हैं। वृद्धाश्रम में अपरिचित लोगों के बीच नहीं।

शैक्षणिक संस्थानों में आजादी

भारत में शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों के मुकाबले बेहतर है। इन इलाकों के छात्रों के लिए आजादी शब्द के मायने होते हैं- अच्छे शिक्षक, सुविधाएं और शैक्षणिक सामग्री की उपलब्धता। ऐसा लगता है कि इन इलाकों के टीचर भी ऐसा ही सोचते हैं। वे चाहेंगे कि उनके स्कूल-कॉलेज भी सर्वसुविधासंपन्न हो ताकि वे अपने बच्चों को बेहतरीन पढ़ाई करा सके।

प्रशासनिक निकायों के लिहाज से आजादी

भारत में एकपक्षीय धारणा है कि जो भी बुरा होता है, वह सरकार की वजह से होता है। हालांकि, हम कभी भी अच्छे कामों के लिए सरकार को बधाई नहीं देते। इस वजह से इन प्रशासनिक इकाइयों के लिए आजादी का मतलब होगा, लोगों के जहन में बैठी इस तरह की बातों का खत्म होना। सरकार भी अपने नागरिकों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद करती है, जैसे- समय पर टैक्स और अन्य शुल्क चुकाना, कोई कानून न तोड़ना आदि। ताकि उन्हें बिना किसी दिक्कत के अपना काम करने की आजादी मिले।

विकलांगों के लिहाज से आजादी

आखिर में, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण… हमारे विकलांग भाई-बहनें बहुत मजबूत हैं। वह हर तरह की परेशानियों का सामना करने में सक्षम हैं। वे हमसे बेहतर हैं और इसके कई कारण हैं। उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हर स्तर पर उनके साथ दुर्व्यहार होता है। उन्हें विकलांग होने की वजह से हीन भावना आ सकती है, लेकिन वे मजबूती से हर चुनौती का सामना करते हैं। उन्हें चाहिए कि अन्य लोग भी उन्हें सामान्य मानकर बर्ताव करें। उन पर भरोसा करना होगा कि वह भी वैसा ही प्रदर्शन कर सकते हैं, जैसा कि सामान्य लोग।

मोदी द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम:

भारत में सामाजिक सुरक्षा हेतु अटल पेंशन योजना (एपीवाय)

‘बेटी बचाओ, बेटी पदाओ योजना’

सुकन्या समृद्धि अकाउंटः भारत में लड़कियों के लिए नई योजना

प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाय)

भारत में सामाजिक सुरक्षा हेतु अटल पेंशन योजना (एपीवाय)

2014 में मोदी द्वारा किये गए टॉप पांच कार्यक्रम

प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाय) – एक दुर्घटना बीमा योजना

प्रधान मंत्री मुद्रा योजना

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