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भारत में वायु प्रदूषण

June 29, 2017


गहरी साँस लेना स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का समाधान होता है क्योंकि श्वसन क्रिया में हम ऑक्सीजन युक्त ताजी हवा ग्रहण करते हैं। लेकिन क्या यह हमारे देश के लिए सही है? क्या हमारे पास खासकर उन शहरों में ताजी हवा है जो काफी भीड़, वाहनों और उद्योगों से भरे हुए हैं? येल विश्वविद्यालय द्वारा येल पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक के तहत, वायु प्रदूषण के लिये 178 देशों पर एक अध्ययन किया गया इसमें भारत 174 वें स्थान पर रहा। सूचकांक के अनुसार भारत की तुलना में केवल पाकिस्तान, चीन, नेपाल और बांग्लादेश वायु की अत्यधिक खराब गुणवत्ता वाले देश हैं। सूचकांक में हवा की गुणवत्ता, जल, स्वच्छता और जैव विविधता जैसे कारकों को ध्यान में रखा गया है। भारत का कुल रैंक 155 वाँ है, जबकि अन्य ब्रिक्स देश इस पूरे सूचकांक में भारत से आगे हैं।

भारत के केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2010 में एक रिपोर्ट पेश की, इसके अनुसार, भारत के 180 शहरों में वायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से छह गुना अधिक प्रदूषित है। वाहन, जैविक वस्तुओं के दहन और ईंधन में मिलावट भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण के मुख्य कारण हैं। वायु प्रदूषण की समस्या इतनी विकराल है कि हम इसे अनदेखा नहीं कर सकते।

भारत में वायु प्रदूषण के बारे में तथ्य

पर्यावरण के मामले में भारत दुनिया में सातवां सबसे असुरक्षित देश है। अधिकांश उद्योग पर्यावरणीय दिशानिर्देशों, विनियमों और कानूनों के अनुरूप नहीं होते हैं। ईंधन के लिये लकड़ी और जैविक ईंधन का दहन एशिया में भूरे बादल बनने के लिये मुख्य कारणों में से एक है। इस बादल के कारण भारत में मानसून आने में देरी हो जाती है।

कीमतों को कम करने के लिये भारत में कई ऑटो रिक्शा और टैक्सी मिलावटी ईंधन का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अंत में हमें पर्यावरण को वापस इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।

कुछ मिलावट पर्यावरण के लिए वास्तव में बहुत ही हानिकारक होती हैं। क्योंकि ये असुरक्षित प्रदूषकों का उत्सर्जन करती हैं जो हवा की गुणवत्ता को और भी बिगाड़ देती हैं। वापसी की यह कीमत वास्तव में बहुत ही हानिकारक है क्योंकि इससे असुरक्षित प्रदूषकों के उत्सर्जन के फलस्वरूप वायु की गुणवत्ता और बिगड़ जाती है।

वैज्ञानिक अध्ययनों से यह पता चला है कि कम गति पर चलने वाले यातायात में, विशेष रूप से भीड़ के दौरान, जला हुआ ईंधन 4 से 8 गुना अधिक वायु प्रदूषण उत्पन्न करता है।

इंजन (डीजल और गैस) से निकलने वाले धुएं में 40 से अधिक विभिन्न प्रकार के प्रदूषक होते हैं। 70% वायु प्रदूषण वाहनों के कारण होता है।

कोयले और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने से भारत में चावल की फसल का विकास कम हो गया है। भारत दुनिया में कोयले का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और सीओ2 (कार्बन-डाई-ऑक्साइड) के उत्पादन में शीर्ष पर है। बेंगलुरू के 30 प्रतिशत बच्चे वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा के शिकार हैं। इस शहर को भारत की अस्थमा राजधानी भी कहा जाता है।

एनडीटीवी में यह दिखाया गया कि दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है, इसने वायु प्रदूषण के मामले में बीजिंग को भी पीछे छोड़ दिया है। उद्योगों और वाहनों से होने वाला उत्सर्जन दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के स्तर का कारण बन गया है। दिल्ली की सड़कों पर प्रतिदिन 1400 नये वाहन बढ़ जाते हैं।

वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव

स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याएं वायु प्रदूषण का कारण होती हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत में अस्थमा के कारण होने वाली मौतों की संख्या अधिक है।

भोजन पकाने में उपयोग की जाने वाली आग घरों में प्रदूषण का तीसरा और बाहरी प्रदूषण पाँचवा प्रमुख कारण है, जिसके कारण मृत्यु हो जाती है।

भारत और यूरोप में धूम्रपान न करने वालों पर एक अध्ययन किया गया था। इससे यह पता चला कि भारत में धूम्रपान न करने वाले फेफड़े प्रदूषण की वजह से यूरोप की तुलना में 30% कम कार्य करते हैं।

भारत के अस्पतालों में भर्ती बच्चों में, 13% की मौतें तीव्र श्वसन संक्रमण के कारण हो जाती हैं।

वाहनों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण के कारण दिल्ली विद्यालय के बच्चों ने फेफड़ों के मामले में खराब प्रदर्शन (दिल्ली के स्कूली बच्चों ने 43.5% कमी) और अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (यह बचपन में होने वाला एक मानसिक रोग है जो रासायनिक असंतुलन के कारण ध्यान और एकाग्रता को प्रभावित करता है) की उपस्थिति दर्ज करवायी।

भारत में गैर-संचारी रोग बढ़ रहे हैं जो कुल बीमारी का 62% हिस्सा है। प्रदूषण के अलावा जीवनशैली और आनुवंशिक भी इसकी भूमिका निभाती है।

भारत में कैंसर के मामले गंभीर दर से बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम के आंकलन (एनसीसीपी) के अनुसार 2026 तक देश में 1.4 मिलियन से अधिक लोग कैंसर से पीड़ित होंगे। इसके लिए प्रमुख कारणों में से एक पर्यावरण में कैंसर के तत्वों की उपस्थिति का जोखिम होगा।

उठाए गए कदम

इस स्थिति में “रोकथाम इलाज से बेहतर है” कहना उचित है। प्रदूषण के फैलने के बजाय इसे रोका जाना चाहिए और इससे निपटान करना चाहिए। भारत पिछले 15 वर्षों से वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप 1995 से 2008 के दौरान वायु प्रदूषण में प्रमुख रूप से गिरावट आई है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वायु (प्रदूषण नियंत्रण एवं रोकथाम) अधिनियम 1981 पारित किया गया था।

भारत में सुप्रीम कोर्ट वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये आश्चर्यजनक रूप से काम कर सकता है। इस संबंध में कई फैसले किए गए हैं, 1985 में दिल्ली में सार्वजनिक सेवा वाले वाहनों में संकुचित प्राकृतिक गैस का अनिवार्य इस्तेमाल सबसे फायदेमंद फैसला था। इससे वायु प्रदूषण के प्रतिशत में प्रभावी ढंग से बदलाव (कमी) आया है।

दिल्ली, लखनऊ, मुंबई और भोपाल के कई आवासीय क्षेत्रों में सल्फर डाइऑक्साइड के स्तर में गिरावट देखी गयी है। डीजल में सल्फर की कमी, स्वच्छ ईंधन मानक की शुरूआत और घरेलू ईंधन के रूप में जैव ईंधन के बजाय एलपीजी का उपयोग जैसे होने वाले स्थानीय उपाय प्रदूषण में गिरावट के कुछ संभावित कारण हैं।

भोपाल और सोलापुर में नाइट्रोजन-डाइ-ऑक्साइड के स्तर में गिरावट देखी जा रही है।

दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के रूप में मेट्रो की स्थापना प्रदूषण को कम करने का एक अच्छा तरीका था।

लेकिन इस भयानक स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारत को और अधिक प्रयास करना चाहिए। सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए और वाहन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। जहाँ तक ​​संभव हो हमें सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना चाहिए, ऊर्जा कुशल उपकरणों का उपयोग करें, लकड़ी या कोयले का दहन न करें, रसोई और बाथरूम में प्रदूषण को कम करने के लिए एग्जॉस्ट (निकासी पंखे) फैन लगे होने चाहिए।