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बुरहान वानी नायक नहीं था

July 22, 2016


कौन था बुरहान वानी?

बुरहान वानी नायक नहीं था

कश्मीर फिर लहूलुहान

8 जुलाई 2016, जब सारा देश एक आरामदायक सप्ताहान्त की तैयारी में था, भारतीय सुरक्षा बल ने उग्रवादियों और राष्ट्रविरोधी शक्तियों के खिलाफ एक कठिन अभियान शुरू किया था। आतंकवाद के खिलाफ जंग कश्मीर में एक कभी न ख़त्म होने वाला संघर्ष प्रतीक हो रही है और बाक़ियों की तरह इस अभियान का भी राष्ट्रीय समाचारों में ज़िक्र नही था सिवाय इस तथ्य के कि कोकेरनाग (अनंतनाग) के बमदुरा गाँव में मुठभेड़ में मारे गए तीन आतंकियों में एक बुरहान वानी था। उसी मुठभेड़ में मारे गए एक आतंकी की शिनाख्त सरताज अहमद शेख के रूप में हुई थी।

भारतीय सुरक्षा बलों के अनुसार वानी की मौत साभिप्राय नहीं थी। यह एक आमतौर पर होने वाला अभियान था और बाद में हीमृत आतंकियों में से एक की शिनाख्त वानी के तौर पर की थी। हालांकि वानी की मौत एक बड़ा समाचार थी, उन्होंने कहा।

कोई नही कह सकता कि कश्मीर में कौनसी हत्या की बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जायेगा, और कब हाथों में हथियार उठाये एक नौजवान, जो एक उद्यमशील व्यवसाय शुरू कर सकता था, नवोदित आतंकी बनकर एक प्रतिष्ठित शहीद एक आतंकी सूरमा में तब्दील हो जायेगा। इस केस में, अलगाववादियों ने तुरंत हस्तक्षेप कर वानी की मौत को राजनीतिक रंग दे दिया। हज़ारों की तादाद में नौजवानों ने शवयात्रा में हिस्सा लिया और वानी की मौत पर धरना प्रदर्शन किया। घाटी की पुलिस और सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया था। हालफिलहाल की सबसे खराब इन झड़पों में 30 से ज़्यादा लोग मारे गए और करीब 100 लोग घायल हो गए। कश्मीर एक बार फिर गहन और अंधकारपूर्ण निषेधाज्ञा की चपेट में है।

कौन था बुरहान वानी?

बुरहान वानी कौन था, बुरहान वानी के बारे में बहुत अलग, अक्सर परस्परविरोधी उल्लेख पढ़ने को मिलेंगे। कुछ उसे कक्षा में अव्वल रहने वाला कहते हैं, तो कुछ उसे भटका हुआ नौजवान बताते हैं; दोस्तों के लिए वो यक़ीनन एक जोशीला भारतीय क्रिकेट प्रेमी था, जबकि कुछ जिन्होंने उसकी तस्वीर/विडियो फेसबुक/यूट्यूब पर देखी हैं, उसे आतंकी बुलाते हैं। एक व्याख्या जो समान है, वह है कश्मीर से एक 21 साल का आतंकी जो हिज्बुल मुजाहिदीन का करीबी था।

19 सितंबर 1994 को कश्मीर के त्राल में, पास ही के सरकारी स्कूल के हेडमास्टर मुज़फ्फर अहमद वानी के यहाँ पैदा हुए बुरहान का बचपन साधारण हीं था। लेकिन 15 साल कि उम्र में वानी ने हथियार उठा लिए और हिज़्बुल आतंकियों के साथ हो लिया जो अक्सर कश्मीर के अमन चैन को बर्बाद करते थे। इसका तथाकथित कारण थी एक झड़प जिसमे भारतीय सुरक्षा बलों ने अकारणउसके भाई को पीटा था।

हिज़्बुल का चेहरा

वानी की किशोरावस्था, उसकी तकनीकी सूझ, और सोशल मीडिया के प्रति लगाव ने उसके लिए कश्मीर के युवा वर्ग से जुड़ना आसान कर दिया। लेकिन अगर उसने अपनी प्रसिद्धि का उपयोग उन्हें एक बड़े उद्देश्य की ओर ले जाने में किया होता, वानी यक़ीनन एक हीरो होता। बजाय इसके, उसने एक अनुभवहीन आतंकी बनना चुना।

वानी ने हिज़्बुल की भर्ती करने वालो का चेहरा बनना पसंद किया। विभिन्न बंदूकों के साथ तसवीरें खिंचवाने और उन तस्वीरों को फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सप्प सहित विभिन्न प्लेटफार्म पर पोस्ट करने के शौक ने भले ही उसे प्रसिद्धि दिलायी, लेकिन दक्षिण कश्मीर के कम से कम 20 और नौजवानों को आतंकी संगठन में भर्ती होने को प्रेरित किया। वानी सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर काफी सक्रिय था और बाकियों से इतर, उसने अपनी पहचान को गोपनीय नहीं रखा।

उसके पोस्ट और वीडियो तथाकथित भारतीय अत्याचार और अन्याय दर्शाते थे और अक्सर हिंसा के लिये उकसाते थे। अब वानी मर चूका है, लेकिन हमारे देश में हिंसा की विरासत और रक्तपात छोड़ने में सफल रहा है।

मीडिया का तमाशा

8जुलाई2016 से पहले वानी कोई रोचक समाचार नहीं था। उसके सर पर 1 लाख का इनाम घोषित होने के बावज़ूद देश की मीडिया ने उस नौजवान को निराश किया। और अब,घाटी में बंदूकधारी नौजवान की मौत के साथ, प्रख्यात वानी मीडिया में चर्चा का विषय है।

2015 में वानी के भाई खालिद मुज़फ्फर वानी की हत्या कर दी गयी थी जब वह तीन दोस्तों के साथ बुरहान से मिलने व हिज़्बुल की भर्ती के लिए जा रहा था। लेकिन मीडिया की कथाओं ने खालिद को पेश किया बेगुनाह के रूप में जिसे बुरहान वानी का भाई होने के कारण टार्चर किया गया। एक मीडिया हॉउस ने गत कुछ दिनों में झड़प की खबर देते हुए जम्मू और कश्मीर राज्य में सामान्यीकर्ण की मांग की। यह खबर राज्य के 15 आवासियों के ऊपर मौजूद एक सैनिक की बात करती है। हालांकि ये ख़बरें कश्मीर में पाकिस्तानी टुकड़ी, छद्दम सीमा पार आतंकियों और उपद्रवियों की गड़ना में असफल रहीं।

सामान्यीकरणहै टुकड़ियों को जम्मू और कश्मीर के साथ साथ देश के किसी भी और प्रत्येक संकटग्रस्त राज्य में बनाए रखना। और किसी नौजवान आतंकी को हिज़्बुल कमान्डरकहकर सराहना करना न सिर्फ आतंकी संगठन के लिए अनुचित आदर है, अपितु एक हत्यारे का बचाव भी है।

सिर्फ पत्रकारों और मीडिया ने ही वानी की मौत पर तमाशा नहीं किया, अपितु कविता कृष्णन जैसे सार्वजनिक व्यक्तित्व वाले लोगो ने अभियान को न्यायेतर हत्याकी संज्ञा से नवाज़ दिया। आतंकियों को गौरवान्वित न करते हुये सामान्यीकरण का प्रयास करना एवं सुरक्षा अधिकारियों से प्रामाणिकता माँगना सर्वथा देशहित में नहीं हैं।

पकिस्तान की नाराज़गी

भले ही कश्मीर एक उबलती कढ़ाई के समान प्रतीक हो रहा हो, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने वानी की मौत पर दुख ज़ाहिर करते हुए भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा एक आतंकियों की भर्ती करने वाले की हत्या की निंदा की है। प्रधानमंत्री के दफ्तर से कथन के मुताबिक। पाकिस्तान के प्रधान मंत्री ने भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों द्वारा कश्मीरी नेता बुरहान वानी और अनेकों आम नागरिकों की हत्या पर गहन आघात व्यक्त किया है।

वानी का कश्मीरी नेता और उसके साथियों का जनसाधारण के तौर पर उल्लेख निश्चित ही हास्यप्रद होता यदि यह जम्मू और कश्मीर में हिंसा के प्रसंग में ना होता। राज्य में हिंसा और रक्तपात की प्रवर्ति और पकिस्तान प्रतिभूत छदम जंग से उपजे दुख को देखते हुये हम शायद ऐसे समर्थन को घृणित कहने की हद तक चले जाएँ। भारतीय विदेश मंत्रालय ने तुरंत प्रतिक्रिया करते हुए कहा, “पाकिस्तान को सुझाव है की पड़ोसियों के आतंरिक मामलों मे दखल न दे।कथन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के कथन को देश की आतंकवाद से नकटता की ओर भी इशारा किया।

— सुजाथा