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ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन इतना खराब क्यों?

June 22, 2017


भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद भी अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को तैयार करने में सक्षम नहीं है। ओलंपिक में हमारे देश का प्रदर्शन हमेशा खराब रहा है। क्या आपको नहीं लगता है कि ओलंपिक में या किसी अन्य प्रतियोगिता में जीतने वाले पदकों की राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए? पदक जीतना निश्चित रूप से विश्व में अपनी अहमियत को बढ़ाना है जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की छवि सुधरेगी।

भारत वर्ष 1990 से ओलंपिक में हिस्सा ले रहा है लेकिन अभी तक सिर्फ 22 पदक जीता है। दूसरी तरफ अमेरिका ने सिर्फ वर्ष 1990 के ओलंपिक में ही 37 पदक जीत लिये थे। अमेरिका वर्ष 1990 के बाद से अब तक 2500 से अधिक पदक जीत चुका है। यह एक बहुत बड़ा अंतर है। भारत की इस जीत से 383 मिलियन भारतीयों के हिस्से में सिर्फ एक पदक आता है। भारत पदक जीतने की सूची में 55 वें स्थान पर है। यहाँ तक ​​कि केन्या और उत्तर कोरिया जैसे देश भारत से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। दूसरी तरफ चीन दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश है और यह अब भी ओलंपिक में पदक जीतने के लिए अत्यधिक मेहनत करता है क्योंकि इस देश की आबादी अच्छी तरह से शिक्षित है, वह उच्च गुणवत्ता वाला जीवन व्यतीत करती है और खेलों में उत्सुकता से भाग लेती है।

वर्ष 2012 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत के 83 खिलाड़ियों ने खेल में भाग लिया था और छह पदक जीते। चूँकि हॉकी ओलंपिक के शुरुआत में भारत का मुख्य खेल रहा, लेकिन समय के साथ इस खेल में भी भारत काफी पिछड़ गया है। भारत ने वर्ष 1928 से वर्ष 1980 के बीच हॉकी में 11 पदक जीते थे। लेकिन इसके बाद भारतीय हॉकी टीम एक भी पदक नहीं जीत पाई है। वर्ष 2008 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने एयर राइफल आयोजन में पहला स्वर्ण पदक जीता था।

हालांकि भारत की क्रिकेट और हॉकी की टीमें दुनिया की बेहतरीन टीमों में से एक हैं लेकिन ओलंपिक पदक जीतना हमारे देश की टीम को बहुत चुनौतीपूर्ण काम लगता है। इसे सुधारने के लिए हमें जीवन की गुणवत्ता को सुधारने का प्रयास करना होगा और खेल के प्रति अधिक रुचि पैदा करनी होगी।

माता-पिता अपने बच्चों को खेलने के लिए इतना प्रोत्साहित नहीं करते जितना वे पढ़ाई के लिए करते हैं। सचिन तेंदुलकर एक ऐसे महान खिलाड़ी हैं, जिनके लिये क्रिकेट एक खेल नहीं बल्कि जुनून था और उनके आस-पास के सभी लोग उन्हें खेलने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उनके कोच उन्हें अभ्यास कराने के लिए मुंबई के विभिन्न मैदानों में ले जाते थे। उत्साह सफलता की मूलभूत कुंजी है।

यह देखा गया है कि माता-पिता और बच्चों की दिलचस्पी अक्सर एथलेटिक्स नहीं केवल मशहूर खेल खेलने में रहती है। माता-पिता समझते है कि एथलेटिक्स खेलों में उज्ज्वल भविष्य नहीं हैं। अमेरिका में, यदि एक शौकिया कसरती ओलंपिक में पदक जीतने के लिए और अपने सपनों को पूरा करने के लिए समय खर्च करता है और फिर सफल हो जाता है, तो वह एक गुणवत्ता वाला जीवन जीने में सक्षम हो जाएगा। लेकिन दूसरी तरफ अगर भारत में कोई खिलाड़ी ऐसा ही प्रयास करे तो वह एक सपने की जिंदगी भूल जाएं, क्योंकि यहाँ खिलाड़ियों को मध्यम वर्ग की जीवनशैली जीने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। आपको जीवन यापन करने के लिए अपने जीवन में काफी संघर्ष करना होगा। अस्थिरता की यह छवि यहाँ के खिलाड़ियों को पनपने और अपने सपनों को पूरा नहीं करने देती है।

भारत में गरीबी व्यापक है। गरीबी के कारण ही इतनी बड़ी आबादी के होते हुए भी अच्छे खिलाड़ियों का आगमन नहीं हो पाता है। कई परिवारों को तो रोजाना के भोजन के बारे में भी चिंतन करना पड़ता है कि क्या आज उन्हें भोजन मिलेगा या नहीं।

कमजोर बुनियादी ढांचा और प्रशासन इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जमीनी स्तर पर सुविधाओं की कमी एक और समस्या है। यदि कोई खिलाड़ी गाँव का है तो उसके पास अभ्यास करने और आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं होता है। खराब परिवहन और ऐसी कई तरह की अड़चनो के कारण खिलाड़ियों का उत्साह टूट जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सामाजिक गतिशीलता और खराब बुनियादी ढांचा ओलंपिक में भारत के खराब प्रदर्शन के कारण हैं।

केन्या और इथियोपिया, जो कि दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक हैं और उनके पास खाने-पीने का भी उचित प्रबंध नहीं है, फिर भी वे सबसे अच्छे और सबसे मजबूत खिलाड़ियों की उत्पत्ति करते हैं। हमें यह उनसे सीखना चाहिए कि वे ऐसा कैसे कर लेते हैं।

भ्रष्टाचार और खेलों के प्रति उदासीनता ओलंपिक में खराब प्रदर्शन के अन्य प्रमुख कारण में से एक है।

माता-पिता और शिक्षकों को खेल के प्रति अपने बच्चों की रुचि और उनके अच्छे प्रदर्शन करने की क्षमता की पहचान करनी चाहिए। छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ खेल में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। शहरों और गाँवों में खेल सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। बच्चों के खेलने के लिए पार्क और खुले स्थान होने चाहिए। स्कूल स्तरों पर अधिक से अधिक खेल प्रतियोगिताओं को आयोजित किया जाना चाहिए। सरकार को उभरते खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने के लिए धन मुहैया कराना चाहिए। ओलंपिक के खिलाड़ियों या अन्य ऐसे खेलों के चयन के दौरान कोई भी भेदभाव, आरक्षण और पक्षपातपूर्ण विचार नहीं होना चाहिए। भारत के हर खेल को क्रिकेट की तरह प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि खिलाड़ी उत्साह से खेल सकें।