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महिलाओं को शिक्षा क्यों?- इसके लाभ

June 15, 2017


सरल शब्दों में कहा जाए तो शिक्षा प्राप्त करना हर व्यक्ति का मूलभूत मानवीय अधिकार है। परन्तु हमारे समाज में कुछ लोग ही इस बात को समझते हैं और इस साधारण बात पर घहराई से विचार करते हैं। हमें इस तथ्य से अवगत होना चाहिए कि यदि महिलाएं अशिक्षित है तो आबादी के लगभग आधे लोग अशिक्षित हैं। महिलाओं को शिक्षा क्यों?- इसके लाभ, एक महिला को शिक्षित करने का मतलब है, अपने परिवार और राष्ट्र को शिक्षित करना।

‘सभी के लिए शिक्षा’ भारत सरकार द्वारा जारी किए जा रहे प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है लेकिन फिर भी भारत में महिलाओं की साक्षरता दर सबसे कम है। भारत काम कर रहा है लेकिन धीमी गति से, क्योंकि हमें खुद नहीं पता है कि हमें क्या करना चाहिए। ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति की शुरुआत में सिर्फ 2 से 6% तक महिलाएं साक्षर थीं। वर्ष 1961 में साक्षरता दर 15.3% और वर्ष 1981 में साक्षरता दर 28.5% तक हो गई थी। वर्ष 2001 में साक्षरता दर 50% से अधिक हो गई थी। वर्ष 2011 में भारत में महिलाओं की साक्षरता दर 65.46% तक हो गई है। इसलिए महिला साक्षरता दर में स्पष्टतः वृद्धि हुई है, लेकिन वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की तुलना में भारत अभी भी बहुत पीछे है। भारत के सभी राज्यों की निरक्षरता दर अलग-अलग है। केरल में 86% महिलाएं साक्षर हैं, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में महिलाओं की साक्षरता दर सिर्फ 55 से 60% के बीच में है। यह अफसोस की बात है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की साक्षरता दर सबसे कम है। ग्रामीण राजस्थान में महिलाओं की साक्षरता दर 12% से भी कम है।

भारत में लिंग आधारित भेदभाव प्रचलित है। ऐसा आप ने देखा या सुना होगा कि समाज के निचले स्तर वाले कई माता-पिता अपने लड़के को स्कूल भेजते हैं, लेकिन लड़की को नहीं। यह भी एक समस्या है, जहाँ माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेजते हैं। दूसरी जगह में, आप ने यह भी देखा होगा कि आम तौर पर शहरी इलाकों के माता-पिता अपने लड़के को बेहतर स्कूल में भेजते हैं। यहाँ तक ​​कि अगर लड़कियों का बेहतर स्कूल में नाम आ जाता है, तो भी उनको माता-पिता की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ता है। लड़कियों के प्रति इस तरह का व्यवहार क्यों किया जाता है?

हमें हमारी लड़की को शिक्षित न करने से होने वाले परिणामों के बारे में सोंचना चाहिए। जब एक महिला अशिक्षित होती तो, अशिक्षा के कारण केवल वह ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार के साथ-साथ देश भी प्रभावित होता है। कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि निरक्षर महिलाओं की प्रजनन क्षमता उच्च और साथ ही मृत्यु दर अधिक होती है। यह देखा गया है कि निरक्षर महिला की तुलना में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं के मामले में शिशु मृत्यु दर आधे से भी कम हो जाती है। इस के अलावा, अशिक्षित महिलाओं के कारण बच्चे  कुपोषण का शिकार होते हैं। निरक्षरता परिवार की सम्भावित कमाई की क्षमता को कम कर देती है।

स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए महिलाओं को शिक्षित करना जरूरी है। एक शिक्षित महिला एक बेहतर इंसान, सफल माँ और एक जिम्मेदार नागरिक हो सकती है। महिलाओं को शिक्षित करने से निश्चित तौर पर जीवन स्तर में और घर के बाहर भी वृद्धि होती है। एक शिक्षित महिला अपने बच्चों को आगे पढ़ाई करने के लिए मजबूर करेगी जिससे बेहतर जीवन जीने की इच्छाशक्ति को भी बढ़ावा मिलेगा।

महिलाओं को शिक्षित करने से उनके आत्मसम्मान में बढ़ावा और उसकी मदद से महिलाओं की प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होती है। एक शिक्षित महिला को अपने अधिकारों के बारे में जागरुक होना चाहिए। एक शिक्षित महिला सामाजिक बुराइयों जैसे घरेलू हिंसा, दहेज माँग, कम मजदूरी आदि जैसे कारणों का विरोध कर सकती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1854 में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यक्रम ‘वुड्स डिस्पैच’ ने भारत की महिलाओं को रोजगार और शिक्षा की मान्यता दी थी। शुरूआत में इसमें केवल समाज के अमीर वर्ग और प्राथमिक स्तर की महिलाएं ही इस शिक्षा के कार्यक्रम से जुड़ी थीं। इस कार्यक्रम की सहायता से, भारत में महिलाओं की साक्षरता दर वर्ष 1972 में 0.2% से बढ़कर वर्ष 1982 में 6% हो गई थी।

स्वतंत्रता के बाद, सुझावों के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन किया गया था। लेकिन यह महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ था और महिलाओं को शिक्षित करने के लिए अप्रासंगिक बताया गया था। (मैं यह कहना भूल गया कि घर प्रबंधन अपने आप में एक पूर्णकालिक नौकरी है और घर प्रबंधन की आवश्यकता भी है)। आयोग ने महिलाओं को शिक्षित करना समय की बर्बादी माना था। हालांकि शिक्षित महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही थी और महिलाओं को शिक्षित करने के लिए एक समिति की आवश्यकता हुई। इसलिए वर्ष 1958 में सरकार ने महिलाओं की शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय समिति का नियुक्तीकरण भी किया था। उन्होंने अपनी सिफारिशों के जरिए कहा कि महिलाओं और पुरुषों की शिक्षा को एक समान रखना चाहिए। इस तरह की बातचीत में ऐसी कई समितियों का गठन हुआ और आखिरकार वर्ष 1964 में शिक्षा आयोग ने नेतृत्व का कार्यभार संभाला था।

हालांकि भारत में महिलाओं के शिक्षा स्तर में सुधार के लिए कई कदम उठाए गए थे, लेकिन 86 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, वर्ष 2002 में एक प्रशंसनीय कदम उठाया गया था। इस अधिनियम के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा नि:शुल्क और अनिवार्य कर दी गई थी। जिसे सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के रूप में शुरू किया गया। एसएसए एक समयबद्ध साधारणीकरण तरीके से प्राथमिक शिक्षा (यूईई) को प्राप्त करने का मुख्य कार्यक्रम है।

महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं

महिला समाख्या कार्यक्रम: वर्ष 1968 में नई शिक्षा नीति ने सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से संबंधित ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए वर्ष 1988 में महिला समाख्या कार्यक्रम शुरू किया था।

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना (केजीबीवी): इसमें महिलाओं को प्राथमिक स्तर पर केजीबीवी के माध्यम से शिक्षित किया जाता है। यह मूल रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में काम करता है जहाँ महिलाओं की साक्षरता दर कम होती है।

प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीईजीईएल): जिन लड़कियों को एसएसए के माध्यम से प्रोत्साहित नहीं किया जाता है उन्हें एनपीईजीईएल द्वारा कवर किया गया है।

महिला साक्षरता के लिए साक्षर भारत मिशन: यह मिशन भारत में महिलाओं की निरक्षरता को कम करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

इसके अलावा इसमें मध्यान्ह भोजन, यूनीफार्म और लड़कियों के लिए किताबों के मुफ्त वितरण की योजनाएं हैं, लेकिन फिर भी हमें कई बुनियादी सुविधाओं, शिक्षक छात्र अनुपात, स्कूल में महिला बच्चों की सुरक्षा, बेहतर पाठ्यक्रम, स्वच्छता जैसे मुद्दों के लिए काम करना है। ताकि अधिक से अधिक महिलाओं को शिक्षित किया जा सके। इसके अलावा माता-पिता को शिक्षा के महत्व को समझना चाहिए और शिक्षा के लिए पुरुष और महिला के मध्य अंतर नहीं करना चाहिए। हमें समझना चाहिए कि एक शिक्षित महिला अपनी सभी भूमिकाओं की जिम्मेदारियां उठाने में एक अशिक्षित महिला से अधिक सक्षम होती है।