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विश्व पर्यावरण दिवस 2017

June 7, 2017


world-environment-day-hindiविश्व पर्यावरण दिवस को पर्यावरण दिवस के रूप में जाना जाता है, इसे पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के बारे में जागरूक करने के लिये दुनिया भर में 5 जून को मनाया जाता है। यह एक वार्षिक आयोजन है, इस कार्यक्रम का लक्ष्य वैश्विक स्तर पर प्रकृति और जीवन के संरक्षण के लिये लोगों के बीच जागरूकता उत्पन्न करना है।

1973 से मनाये जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस के लक्ष्य

  • मानव जीवन में स्वस्थ और हरे वातावरण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • कुछ सकारात्मक पर्यावरणीय कार्यवाही को लागू करके पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को हल करना।
  • पर्यावरण को बचाने के लिये आम जनता को जागरूक करने में केवल सरकार या इसके लिये काम कर रहे संगठन ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति जिम्मेदार है।

इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के 150 वें जन्मदिन समारोह का कनाडा आधिकारिक आयोजनकर्ता होगा। विश्व पर्यावरण दिवस के लिए इस वर्ष प्रकृति के साथ-साथ “जीवन के लिए वन्य जीवों और वनस्पतियों के अवैध व्यापार के खिलाफ लड़ाई” (वन्यजीव में अवैध व्यापार के लिए शून्य सहिष्णुता) को फिर से शुरू करना है। जंगली जीवों जैसे हाथी, गेंडे, गोरिल्ला, व्हेल, समुद्री कछुए, ऑरंगुटान, पैंगोलिन, रोजवुड्स, हेल्मेटेड हार्नबिल्स और बाघ जैसी अन्य प्रजातियों को बचाने के लिये दुनिया भर के लोग नारा “गो वाइल्ड फॉर लाइफ” (जीवन के लिये जंगल जाओ) के साथ इन पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। वन्य जीवों और वनस्पतियों का अवैध व्यापार पृथ्वी की जैव विविधता में खतरा डाल रहा है, विश्व पर्यावरण दिवस 2017 में इस खतरे से लड़ने का लक्ष्य है।

विश्व पर्यावरण दिवस और भारत

हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पेरिस जलवायु संधि से बाहर निकलना इस मामले में काफी उदासी जोड़ता है। प्रकर्ति जो  हमारा पालन पोषण करती है उसको अधिक हरी, स्वत्छ बनाने और प्रकर्ति की रक्षा करने के मामले में आवश्यक कार्यवाही के लिये दुनिआ के बाकि हिससे प्रकर्ति से पुनः जुड़ने के लिये एक साथ आ गए हैं। विश्व पर्यावरण दिवस (डब्ल्यूईडी) के आयोजन में भारत भी बहुत आगे है। 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस का जश्न मनाने के लिए पूरे भारत के 4000 शहर राष्ट्रव्यापी अपशिष्ट प्रबंधन अभियान में शामिल होंगे। इस अभियान का उद्देश्य लोगों के बीच उनके घर घर जाकर कूड़े के संग्रह और 2- बिन अपशिष्ट अलगाव के बारे में जागरूकता फैलाना है। पर्यावरण की रक्षा के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनायी गयी विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ-

  • हैदराबाद ने स्रोत पृथक्करण शुरू किया।
  • फरीदाबाद में नगर निगम अधिकारियों ने कचरे को अलग करने के लिए शपथ ग्रहण की।
  • गुजरात नगर निगम ने शहर को साफ रखने का संकल्प लिया।
  • कानपुर में अपशिष्ट अलगाव के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिये एक अभियान शुरू किया गया है।
  • सूरत ने अपशिष्ट अलगाव और लोगों के द्वार- द्वार जाकर अपशिष्ट संग्रह कर एक जागरूकता अभियान शुरू किया।
  • गोरखपुर नगर निगम के कर्मचारियों ने शहर को साफ रखने के प्रयास में सफाई अभियान चलाया।
  • इंदौर में विश्व पर्यावरण दिवस से पहले लोगों के द्वार-द्वार जाकर कचरा संग्रह किया गया।
  • नई दिल्ली के छत्रपुर और द्वारका के लोगों ने शहर को साफ रखने की शपथ ली।
  • नागपुर ने अधिकारियों और लोगों को स्त्रोत अलगाव के बारे में जागरूक करने के लिए एक जागरूकता अभियान चलाया, लोगों के द्वार-द्वारा जाकर कचरे का संग्रह किया गया।
  • चेन्नई में मजदूरों ने सड़क पर फेंका गया कचरा इकट्ठा किया। अपशिष्ट संग्रह और अलगाव की शुरुआत के बाद एक बड़े कदम के तहत चेन्नई गीले कचरे से खाद बनाने की योजना बना रहा है।

भारत में पर्यावरणीय मुद्दे

बढ़ती आबादी और वाहन भारत की जलवायु से एक टोल वसूल रहे हैं कंक्रीट के  जंगलों का रास्ता बनाने के लिये अधिक पेड़ों को काटा जा रहा है। पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट को रोकने के लिए भारत को रेड अलर्ट स्तर पर- कार्य करना चाहिये। भारत द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दे निम्नानुसार हैं:

  • मुंबई को पर्यावरण की सभी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है सभी मोर्चों पर इसका खराब प्रर्दशन है, इसमें सीवेज के लिए अपर्याप्त उपचार सुविधायें, शहर की हवा की सफाई, समुद्री स्तनपायी जीवों की मौतें और रेत खनन के लिये कोई पर्याप्त योजना नहीं है।
  • सीवेज और अन्य औद्योगिक अपशिष्टों के साथ खुले में शौच करना भारत की आधे से अधिक नदियों को दूषित कर रहा है जिससे जल की गुणवत्ता और जलचरों के जीवन को खतरा पैदा हो रहा है। जल निकायों में प्रदूषण का उच्च स्तर निकटतम भविष्य में स्वच्छ पानी की कमी का कारण है। वास्तविक आँकड़ों के अनुसार, भारतीय शहरों द्वारा प्रतिदिन 40,000 मिलियन लीटर सीवेज का उत्पादन किया जाता है जिसमें से केवल 20 प्रतिशत सीवेज का उपचार किया जाता है। इस मुद्दे पर प्रकाश डालना और इसके बारे में जागरूकता पैदा करना बहुत जरूरी है।
  • यह वास्तविकता है कि जलवायु परिवर्तन के साथ देश की वार्षिक मानसून बारिश अधिक अनिश्चित हो गई है, जिससे परंपरागत जलाशयों के जल में कमी आई है। शहरों में भूमिगत जल का स्तर सैकड़ों फीट नीचे चला गया है। अब शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग टैंकरों के जल पर निर्भर होते जा रहे हैं जो निषेधात्मक कीमतों पर पानी की आपूर्ति करते हैं।
  • नदियों और नहरों का जल सूख रहा है। ग्रामीण प्रदूषित भूजल को निकालने के लिये इंजल युक्त कुओं की खुदाई कर रहे हैं। भूजल निकालने से कई वर्षों में पूरे देश के भूजल स्तर में गिरावट आई है। वास्तव में यह एक पर्यावरण और साथ ही मानव जनित आपदा है।
  • कर्नाटक और महाराष्ट्र सहित देश के कई हिस्सों में सूखे जैसी स्थिति है।

सरकार और गैर-सरकारी निकाय भारत की स्थिति में सुधार के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं, इसमें मामूली सुधार की संभावना है, हालांकि हमारे पास तय करने के लिये एक लंबा रास्ता है।

चलो मदद करें

सरकार को दोष देना आसान तरीका है। पर्यावरण की सुरक्षा हमारी भी जिम्मेदारी है।

  • जल बचायें
  • बिजली बचायें
  • कचरे का अलगाव करना और तदनुसार उसका निपटान करना सीखें
  • अपने आस पड़ोस सफाई रखें
  • पॉलिथीन बैग का उपयोग बंद करें। खरीदारी करने के लिये अपना स्वयं का कपड़े का बैग ले जाएं।
  • पौधे लगायें। बगीचा बनायें यदि जगह की कमी है तो बालकनी में ही एक बगीचा बनायें।
  • सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण कार्य में लगे गैर सरकारी संगठनों को दान देकर उनकी सहायता करें।
  • अपने बच्चों को पर्यावरण के प्रति शिक्षित करें। यदि आप अपने बच्चों को शिक्षित करते हैं, तो आपके पास भविष्य की एक ऐसी पीढ़ी है जो पर्यावरण के मुद्दों से अवगत है। इस तरह वे हमें प्रकृति की सुरक्षा के लिए योगदान देंगे जो हमारा पोषण करती है।

आइए हमारे पर्यावरण की रक्षा करें और इस तरह पृथ्वी पर अपने भविष्य की रक्षा करें। पर्यावरण दिवस की शुभकामनायें।