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पवित्र माह सावन में काँवड़ यात्रा

July 19, 2017


पवित्र माह सावन में काँवड़ यात्रा

यह वर्ष का वह समय है जब आपको दिल्ली की सड़कों पर सबसे विचित्र परिदृश्यों में से एक को देखने का अवसर मिलेगा – भगवा-धारी शिव भक्त सड़कों पर नंगे पैर चलकर, गंगा जल से भरी मटकी को बाँस में बाँधकर, अपने कंधें पर लादकर काँवड़ यात्रा करते हैं। हाँ, जुलाई श्रावण (सावन) का महीना होता है, यह काँवरियों की काँवर यात्रा का पवित्र महीना होता है।

क्या है काँवर यात्रा?

प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाने वाली पवित्र यात्रा को काँवर यात्रा कहते हैं। काँवरिये गंगा नदी से जल इकट्ठा करने के लिए हिंदू तीर्थस्थलों की यात्रा करते हैं और फिर स्थानीय भगवान शिव के मंदिरों में गंगा जल से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। पवित्र जल घड़ों में भरा जाता है और भक्तों द्वारा उनके कंधे पर बाँस से बने एक छोटे ध्रुव पर ले जाया जाता है, जिसे “काँवड़” कहा जाता है। इसलिए इन शिव भक्तों को लोकप्रिय रूप से “काँवरिया” कहा जाता है और संपूर्ण तीर्थयात्रा को “काँवर यात्रा” कहा जाता है। कुछ धार्मिक स्थलों की यात्रा हरिद्वार के गंगोत्री, उत्तराखंड के गौमुख और बिहार के सुल्तानगंज आदि से प्रारम्भ होती है।

काँवड़ यात्रा हिंदी महीने “श्रावण” के दौरान शुरू होती है जो आमतौर पर जुलाई से अगस्त का महीना होता है। हालांकि क्रमशः बिहार और झारखंड के सुल्तानगंज से देवघर तक यात्रा क्रम में शुरू की जाती है। लगभग 100 किलोमीटर की इस यात्रा को भक्त काफी श्रद्धा से नंगे पैर चलकर पूरी करते हैं। इस वर्ष, काँवर यात्रा 21 जुलाई 2017 से शुरू होकर 7 अगस्त 2017 को समाप्त हो रही है।

काँवर यात्रा के पीछे का इतिहास

हिंदू पुराणों के अनुसार, काँवड़ यात्रा अमृत के महासागर या समुद्र मंथन के साथ जुड़ी हुई है। धार्मिक ग्रंथों का कहना है कि समुद्र मंथन के कारण अमृत निकलने से पहले विष से भरा एक घड़ा बाहर निकला। इस विष को भगवान शिव ने अपने कण्ठ (गले) में धारण कर लिया और अमृत देवताओं को वितरित कर दिया। इस विष को अपने कण्ठ में ग्रहण करने के कारण भगवान शिव का कण्ठ नीले रंग का हो गया, जिसके लिए उन्हें “नीलकंठ” का नाम दिया गया। उन्होंने अपने गले में जलन महसूस की इसलिए विष के प्रभाव को कम करने के लिए, देवी और देवताओं ने भगवान शिव का गंगा जल से अभिषेक किया।

एक और पुरातन कहानी में बताया गया है कि रावण जो लंका का राजा था, वह भगवान शिव का एक बड़ा भक्त था। उसने श्रावण के महीने में गंगा से पानी लाकर शिवलिंग का रूद्राभिषेक किया। आज भी शिव के भक्त प्रत्येक वर्ष इस महीने में शिव लिंग पर पवित्र गंगा जल से रूद्राभिषेक करके इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

काँवर के प्रकार

  • सामान्य काँवर सामान्य काँवरिए काँवड़ यात्रा के दौरान जहाँ चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। आराम करने के दौरान काँवर स्टैंड पर रखी जाती है, जिससे काँवर जमीन से न छुए।
  • डाक काँवर डाक काँवरिये काँवड़ यात्रा की शुरुआत बगैर रुके शिव के जलाभिषेक होने तक लगातार चलते रहते हैं। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में ट्रक या मोटरसाईकिल से तय की जा सकती है।
  • खड़ी काँवर कुछ भक्त खड़ी काँवर लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी काँवर लेकर, काँवर को चलने के अंदाज में हिलाते-डुलाते रहते हैं।
  • बैठी काँवर – इसमें काँवरिये अपने काँवर को जमीन पर रख सकते हैं।

श्रावण माह क्यों शुभ माना जाता है?

  • श्रावण (सावन) महीने का नाम “श्रवण नक्षत्र” के आधार पर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि श्रावण या पूर्णिमा या पूर्ण चन्द्र का दिन किसी भी समय तारे या नक्षत्र आसमानों पर शासन करते हैं।
  • श्रावण माह के साथ हरियाली तीज, नाग पंचमी और रक्षा बंधन जैसे कई शुभ उत्सव और त्यौहार शुरू होते हैं।
  • श्रावण या सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है।
  • यह सभी महत्वपूर्ण धार्मिक समारोह का आयोजन करने का शुभ समय है।
  • वैज्ञानिक रूप से, सावन महीने के दौरान व्रत रखना पाचन तंत्र के लिए लाभकारी माना जाता है। श्रावण के दौरान बारिश शुरू हो जाती है और साथ ही सूर्य का प्रकाश दुर्लभ हो जाता है, इसलिए यह पाचन तंत्र को धीमा कर देता है। सूर्य का प्रकाश पाचन तंत्र को बेहतर रखता है, इसलिए आसानी से पचने योग्य भोजन करना चाहिए। श्रावण महीने के दौरान मांसाहरी भोजन का त्याग करके उपवास रखना लाभदायक होता है।

श्रावण माह के दौरान कुछ अनुष्ठानों का पालन करना

  • इस महीने के दौरान, एक परंपरा है कि भगवान शिव को बेल के पत्ते चढ़ाना किसी भी तीर्थ यात्रा के बराबर होता है।
  • भगवान शिव को दूध या पंचामृत (दूध, दही, मक्खन या घी, शहद और गुड़ का मिश्रण) चढ़ाने से भगवान शिव अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं।
  • इस महीने के दौरान रूद्राक्ष पहनें और इसका प्रयोग जप के लिए करें।
  • भगवान शिव को चढ़ाई गई विभूती को भक्त अपने माथे पर लगाना बहुत शुभ मानते हैं।
  • पूरे महीने शिव चालीसा का जप करें।
  • भगवान शिव की नियमित आरती करें।
  • महामृत्युंजय मंत्र का जप भी बहुत शुभ माना जाता है।
  • शादीशुदा हिंदू महिलाओं को लाल पोशाक और हरी चूड़ियाँ पहनना शुभ माना जाता है और श्रावण माह के दौरान महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं।
  • श्रावण माह के दौरान आने वाले प्रत्येक सोमवार को उपवास के लिए बहुत शुभ माना जाता है और इसे श्रावण सोमवार के रूप में जाना जाता है।