Home / / भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12

August 14, 2017


article-12-of-indian-constitutionभारतीय संविधान एक समकालीन दस्तावेज और भारत का सर्वोच्च कानून है जो सरकारी प्रणाली और लोकतंत्र के काम में सहायक है। दस्तावेज मौलिक अधिकारों और निर्देशक सिद्धान्तों, नागरिकों के कर्तव्यों के साथ-साथ बुनियादी ढाँचों, राजनीतिक सिद्धांतों की  शक्तियों और सरकार के कर्तव्यों को निर्धारित करता है। डॉ. भीमराब अंबेडकर भारत के संविधान के निर्माता हैं, जिसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12

अनुच्छेद 12 में दी गई व्यापक परिभाषा के अनुसार शब्द ‘राज्य’ का अर्थ संघ है एवं राज्य सरकारें, संसद एवं राज्य विधायिकाएं सभी स्थानीय या अन्य अधिकारियों को भारत के क्षेत्र में या भारत सरकार के नियंत्रण में दर्शाता है।

सरकारी निकाय अनुच्छेद 12 के मानदंड के अधीन हैं

पिछले कुछ वर्षों में निम्नलिखित निकायों, जो कानून बनाने की शक्ति से निहित हैं और भारत के संविधान द्वारा बनाए गए हैं, इनको भी राज्य के दायरे में शामिल किया गया है।

  • भारत के राष्ट्रपति और कार्यकारी शक्तियों के साथ राज्यों के राज्यपाल।
  • आयकर विभाग की तरह सरकार के सभी विभाग।
  • अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान की तरह सरकार द्वारा नियंत्रित कोई भी संस्था।
  • एलआईसी और ओएनजीसी जो सरकारी या संप्रभु कार्यों के समान कार्य करते हैं।
  • नगरपालिका, पंचायत और अन्य समान स्थानीय प्राधिकरण, कानूनों के नियम बनाने और लागू करने की शक्ति के साथ।
  • कोई भी अन्य संगठन जो सार्वभौमिक कार्यों का संचालन करते हैं।
  • सरकार के वित्तपोषण ने सार्वभौमिक कार्यों के साथ एक संगठन की स्थिति को भी निर्धारित किया है। सरकार को एक सांविधिक और गैर-सांविधिक संस्था दोनों के लिए एक राज्य के रूप में कहा जाने वाला एक व्यापक नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। इस प्रकार जहाँ विद्युत बोर्ड और आईडीबीआई जैसे वैधानिक निकाय एक राज्य माने जाते हैं, एनसीईआरटी के रूप में सरकार का वित्तपोषण पर्याप्त नहीं है और इस तरह सरकार का नियंत्रण व्यापक नहीं है।
  • अनुच्छेद 12 में न्यायपालिका का कोई विशेष उल्लेख नहीं है। हालांकि, विचारधारा यह है कि चूंकि न्यायपालिका के पास कानून बनाने और लागू करने की शक्ति है तो इसे एक राज्य माना जाना चाहिए। चूंकि किसी गलत फैसले से एक नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, इसलिए अदालतों के अनुचित निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 के परीक्षणों के अधीन हैं।

इस प्रकार, किसी भी वैधानिक या गैर सांविधिक निकाय पर सरकार की एक मात्र नियामक शक्ति इसे एक राज्य के रूप में समझने के लिए पर्याप्त नहीं है। संबंधित निकाय को आर्थिक रूप से, कार्यात्मक और प्रशासकीय एवं व्यापक रूप से सरकार द्वारा नियंत्रित होना चाहिए।

Like us on Facebook

Recent Comments

Archives
Select from the Drop Down to view archives