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कावेरी जल विवाद

September 6, 2016


कावेरी जल विवाद

कावेरी जल विवाद

पांच सितंबर को कावेरी जल विवाद ने नया मोड़ ले लिया, जब सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार से तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने को कहा। शीर्षस्थ अदालत ने कर्नाटक के राज्य शासन से कहा कि अगले दस दिन तक वह अपने दक्षिणी पड़ोसी को 15,000 क्यूसेक पानी रोज दें ताकि पड़ोसी राज्य के किसानों की गर्मियों की फसल की पानी की जरूरत को पूरा किया जा सके।
तमिलनाडु पहले ही कह चुका है कि जून और अगस्त के बीच उसे 60 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (टीएमसीफीट) पानी की कमी का सामना करना पड़ा है। जस्टिस उदय उमेश ललित और दीपक मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुपरवाइजरी कमेटी को भी निर्देश दिए कि वह इस मामले को देखें। न्यायिक बेंच ने अपनी व्यवस्था में यह भी टिप्पणी की कि तमिलनाडु में पानी के बिना सांबा फसलें बुरी तरह से प्रभावित होंगी।

रेस्पांस टाइम

भारत की शीर्षस्थ न्यायिक संस्था ने तमिलनाडु राज्य को सुपरवाइजरी कमेटी के सामने अपनी बात रखने के लिए तीन दिन का वक्त दिया है। इस मामले में अंतिम फैसला कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (सीडब्ल्यूडीटी) से ही आएगा। कर्नाटक सरकार को भी तीन दिन में तमिलनाडु सरकार की याचिका पर जवाब देना होगा। सुपरवाइजरी कमेटी को इस मामले में जरूरी दिशानिर्देश देने के लिए 4-10 दिन का वक्त दिया गया है।

हकीकत तो यह है कि तमिलनाडु को भी निर्देश दिए हैं कि वह पुडुचेरी के लिए अंतरिम करार के तहत पानी छोड़े। उम्मीद की जा रही है कि इस केस पर अगली सुनवाई 16 सितंबर को होगी।
भावुक अपील

दो सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी एक भावुक अपील करते हुए कर्नाटक सरकार से कहा था कि “जियो और जीने दो।” उसका आशय दोनों राज्यों में पानी के बंटवारे पर रिश्ते को लेकर था। इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा था कि तमिलनाडु को एक बूंद पानी भी नहीं दिया जएगा। और बाद में यह बात शीर्ष न्यायालय के संज्ञान में लाई गई थी।

फसलों को बचाने के लिए

हाल ही में तमिलनाडु ने अपनी याचिका में अनुरोध किया था कि कर्नाटक को कावेरी नदी से 50.52 टीएमसीफीट पानी छोड़ने के निर्देश दिए जाएं। यह पानी राज्य के 40 हजार एकड़ से ज्यादा क्षेत्रफल में लगी मौसमी सांबा फसलों के लिए बेहद जरूरी है। अपने जवाब में कर्नाटक ने साफ किया कि उसके पास ही पानी कम है। उसके चार जलाशयों में 80 टीएमसी फीट पानी की कमी है। राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील एफएस नरीमन ने कहा कि कर्नाटक में पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। राज्य में पानी की कमी है। ऐसे में तमिलनाडु के लिए पानी रिलीज करना उसके लिए बेहद मुश्किल होगा। इससे राज्य में पानी की किल्लत हो सकती है।

सीडब्ल्यूडीटी की भूमिका

नरीमन ने यह भी कहा कि सीडब्ल्यूडीटी ने उस समय कावेरी नदी के पानी पर कोई विकल्प नहीं दिया जब राज्य में बारिश जरूरत से भी कम हुई थी। तमिलनाडु ने इससे पहले अनुरोध किया था कि कावेरी प्रबंधन बोर्ड स्थापित किया जाए ताकि सीडब्ल्यूडीटी अवार्ड को लागू किया जा सके। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर आकस्मिक सुनवाई से इनकार कर दिया था। 2013 मे, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए, नोटिफिकेशन जारी कर स्पष्ट किया था कि कावेरी का पानी क्षेत्र में कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में किस तरह वितरित किया जाएगा।

सीडब्ल्यूडीटी ने खुद भी कहा था कि कावेरी के पानी के प्रबंधन के लिए एक बोर्ड या प्राधिकरण बनाया जाए, ताकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सही तरीके से अमल किया जा सके। यह भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड की तर्ज पर किया जाना था। संबंधित बोर्ड बन जाता है तो वह जल नियमन समिति बनाएगा, जिससे काफी मदद मिल जाएगी। भारत सरकार ने 1990 में ट्रिब्यूनल बनाया था, जिसने 16 साल तक काम करने के बाद 2007 में सर्वसम्मत फैसले के तहत तय किया कि लोवर कोलेरून अनिकट में कावेरी बेसिन में 740 टीएमसी फीट पानी होता है। इस जगह का 14 टीएमसीफीट पानी इस्तेमाल किया जाए और बाकी पानी समुद्र में जाने दिया जाए, ताकि आसपास के पर्यावरण का संरक्षण हो सके।

पानी का अंतिम अवार्ड

अंतिम फैसले के तहत 419 टीएमसी फीट पानी तमिलनाडु को आवंटित किया गया। इसके बाद कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट, केरल को 30 टीएमसी फीट और पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी मिला। हालांकि, राज्यों ने इस पर असहमति जताई और समीक्षा याचिकाएं दायर कर दी। उन्होंने आदेश की स्पष्ट व्याख्या के साथ ही नए सिरे से मात्रा तय करने की मांग की।

समस्या की मूल जड़

कावेरी जल विवाद भारत में नया नहीं है। सबसे पुराना और सभी को परिचित, ऐसा यह विवाद है। पिछले कई बरसों से तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच यह विवाद का हिस्सा रहा है। इस संकट को हम मैसूर रियासत और मद्रास प्रेसिडेंसी के बीच 1892 और 1924 में हुए दो करारों से भी समझ सकते हैं। कावेरी 802 किलोमीटर तक प्रवाहित होती है। तमिलनाडु में कावेरी बेसिन 44 हजार वर्ग किमी में है, जबकि कर्नाटक में 32 हजार वर्ग किमी।

कर्नाटक सरकार का कहना है कि इन करारों का फायदा मद्रास प्रेसिडेंसी को हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि उसे कभी भी पानी का उचित हिस्सा नहीं मिला। तब से ही वह पानी के उचित और तर्कसंगत बंटवारे की मांग कर रहा है। हालांकि, तमिलनाडु को भी इस मुद्दे पर आपत्ति है।

तमिलनाडु कावेरी के पानी पर पूरी तरह निर्भर है। उसने तीन लाख एकड़ जमीन विकसित की है, जो पूरी तरह कावेरी नदी के पानी पर निर्भर है। उसका कहना है कि यदि करार में हल्का भी अंतर आया तो बड़े पैमाने पर उसका प्रतिकूल असर होगा। राज्य के लाखों किसानों की आमदनी और जीवन पर उसका गंभीर असर पड़ेगा। कई बरसों से दोनों राज्यों में बातचीत चल रही है, लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली है।

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