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आयुर्वेद के अनुसार मानसून संबंधी आहार नियम

July 26, 2017


ayurveda-health-tips-for-rainy-season-hindiजब बारिश का मौसम आता है तो वह सूखी पृथ्वी को राहत प्रदान करता है, जो कि भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन यह मौसम अपने साथ कई रोगों और बीमारियों को भी लाता है। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि बारिश के मौसम के दौरान हर किसी को अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए और खाये जाने वाले आहार की भी विशेष देखभाल करनी चाहिए।

आयुर्वेद, चिकित्सा की पारंपरिक हिंदू प्रणाली है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया है और चार वेदों में से अंतिम वेद अथर्ववेद में आयुर्वेद चिकित्सा को सम्मिलित किया है। हजारों वर्ष पुराना, आयुर्वेद समग्र स्वास्थ्य के लिए जीवन के ज्ञान का प्रतीक है, जो आज की दुनिया में स्वास्थ्य को अच्छा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आयुर्वेद ने मौसम को शरद ऋतु (आटम), वर्षा ऋतु (मानसून), ग्रीष्म ऋतु (समर या गर्मी), वसंत ऋतु (स्प्रिंग), हेमंत ऋतु (आर्ली विंटर या प्रारम्भिक जाड़े) और शिशिर ऋतु (लेट विंटर या अंतिम जाड़े) 6 वर्गों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक मौसम की एक विशेष आहार योजना है, जो हमारे शरीर में पृथ्वी के अंश हवा, अग्नि और पृथ्वी के रूप में वात, पित्त और कफ को संतुलित बनाये रखते हैं। यह हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा हैं। जब यह तत्व संतुलित स्थिति में नहीं रहते हैं, तो अत्याधिक हानिकारक बन जाते हैं और किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।

आयुर्वेद और बरसाती मौसम (वर्षा ऋतु)

आयुर्वेद के अनुसार, मानसून के दौरान, वात उत्तेजित हो जाता है, पित्त जम जाता है, और कफ शांत या नियंत्रित हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, बारिश के मौसम में वायु में नमी की वृद्धि से किण्वन क्रिया होती है, परिणामस्वरूप भोजन में खट्टे घटकों की वृद्धि हो जाती है, जो शरीर की अम्लता में वृद्धि करता है।

आयुर्वेदिक सिद्धांतों ने वात, पित्त और कफ तीनों में से वात को मुख्य माना है। वात रक्त के प्रवाह सहित मन और शरीर के सभी संचालनों को नियंत्रित करता है जिसमें अपशिष्टों का निष्कासन, साँस लेना और मन के विचारों की आवाजाही शामिल है। बारिश के मौसम के दौरान वात प्रभावित हो जाता है और इसके परिणाम यह हैं:

  • कम पाचन शक्ति
  • कम प्रतिरक्षा
  • शरीर में कम ताकत

मानसून के मौसम में पित्त के स्तर में भी मामूली वृद्धि होती है। पित्त भारी, चिपचिपा, बिना पचे हुए अवशेषों के रूप में विषाक्त पदार्थ है जो पाचन को कमजोर कर सकता है और उचित ऊतक रचना को उत्तेजित कर सकता है। पित्त में वृद्धि होने से निम्नलिखित परिणाम सामने आते हैं:

  • शरीर में असहज गर्मी महसूस करना
  • अम्ल प्रतिवाह
  • जठरीय या पाचन संबंधी अल्सर
  • अपच (अम्लता)

इस मानसून में रहें स्वस्थ

आयुर्वेद के दिशानिर्देशों के अनुसार, यहाँ पर मानसून के मौसम में बिल्कुल अनूकुल और ठीक रहने के कुछ सुझाव दिए गए हैं।

आहार टिप्स

  • बरसात के मौसम के दौरान पत्तेदार सब्जियाँ खाने से परहेज करें, इस मौसम में ये सब्जियाँ कीड़ो के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं।
  • इस मौसम में मसालेदार और तेलयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अपच, पेट फूलने और नमक प्रतिधारण का कारण बनता है।
  • बरसात के मौसम में खट्टे या अम्लीय खाद्य पदार्थ भी स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं हैं।
  • बरसात के मौसम में भाप से बना हुआ या अच्छी तरह से पका हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है।
  • इस मौसम में गाय का दूध आसानी से पचने वाला और हल्का होता है तथा तुरन्त ऊर्जा प्रदान करता है। इसके सेवन से सुस्ती नहीं आती है।
  • इस मौसम में कोशिश करके गेहूँ और मैदा की जगह जौ और चने के आटे का इस्तेमाल करें।
  • आयुर्वेद के अनुसार, दोपहर के भोजन में मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, तीखा और कसैला स्वाद शामिल होना चाहिए, यह सभी छह बुनियादी स्वाद हैं। दोपहर के भोजन की शुरूआत किसी मीठे फल या मिठाई से करें इसके बाद क्रमशः नमकीन, खट्टा और तीखा खायें। भोजन को किसी कड़वी चीज पर समाप्त करें और अंततः मुँह को साफ करने वाले पदार्थों के रूप में सौंफ के बीज या कैरम (डली, सौंफ इलायची और मिश्री आदि का मिश्रण) का सेवन करें।
  • आयुर्वेद का सुझाव है कि रात का भोजन बहुत हल्का करना चाहिए, इसमें चावल, दूध, ज्वार / जोला (मक्का) का उपयोग सबसे अच्छा रहता है क्योंकि वे आसानी से पचने योग्य होते हैं। रात का भोजन सोने से कम से कम 2 घंटे पहले करना चाहिए।

इस मौसम में क्या करें और क्या न करें

  • दैनिक आहार में सूखे मेवे को कम मात्रा में शामिल करना चाहिए।
  • हल्के स्नैक्स तो ठीक हैं लेकिन तले हुए खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इस मौसम में लाल मसूर की दाल (तूर दाल) का उपयोग करने से एसिडिटी हो जाती है और पेट फूल जाता है, इसलिए इसका सेवन कम करना चाहिए।
  • इस मौसम में मूंग की दाल आसानी से पचने योग्य है।
  • इस मौसम में उरद की दाल का उपयोग करने से भी पेट फूल जाता है।
  • मानसून के दौरान जिमीकंद, मीठे आलू, बैंगन और कद्दू स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं।
  • इस मौसम के दौरान संसाधित खाद्य पदार्थ (पैकेट या डिब्बा बंद भोजन) को सबसे अधिक नजरअदांज करना चाहिए।
  • बेहतर है कि इस मौसम में मांस, सूअर का मांस, बीफ और मछली सहित गैर-शाकाहारी वस्तुओं का सेवन कम करें।
  • दही का चीनी या नमक के साथ सेवन करना अच्छा है।
  • इस मौसम में गाय के दूध से बना शुद्ध मक्खन (घी) स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है क्योंकि इससे पाचन करने में मदद मिलती है, प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ती है, तनाव से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है और याददाश्त में सुधार होता है।
  • इस मौसम में योग और जॉगिंग जैसे हल्के व्यायाम शरीर को फिट रखने में बहुत महत्वपूर्ण हैं।
  • मानसून के मौसम के दौरान पंचकर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा से शरीर की मालिश एक श्रृंखला के माध्यम से करवानी चाहिए जो शरीर के अपशिष्ट पदार्थ को विसर्जित (बाहर निकालने) करने में मदद करता है और मानसिक रूप से शरीर को ताजा रखता है।