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500 और 1000 के नोट का अर्थव्यवस्था, रियल एस्टेट, गोल्ड एंड ज्वैलरी और अन्य पर असर

November 11, 2016


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 की रात नाटकीय कदम उठाकर पूरे देश को चकित कर दिया। इस बड़े सुधार का फायदा किसे हुआ और नुकसान किसे, अब इस पर चर्चा हो रही है।

फायदे में

1000 रुपए के नोट को चलन से बाहर करने और 500 रुपए के नए नोट को लाने का असर अर्थव्यवस्था में प्रवाहित हो रही कम से कम 90 प्रतिशत मुद्रा पर होगा। साथ ही अवैध रूप से जिन लोगों ने पैसा जमा कर रखा है, उसकी कीमत शून्य हो जाएगी।

मोबाइल वॉलेट कंपनियां और सरकारी योजनाएं- इस बोल्ड फैसले का सबसे ज्यादा फायदा पेटीएम, मोबीक्विक और फ्रीचार्ज जैसी मोबाइल वॉलेट कंपनियां को होगा। सरकार ने पहले भी घोषणा की थी कि वह भारत को बिना नगदी वाली अर्थव्यवस्था बनाने की कोशिश में है और बड़े नोट बाजार से बाहर होने का फायदा इस सेक्टर को सबसे ज्यादा मिलेगा। लोग अब रोजमर्रा की खरीदारी, रेलवे, रोड एवं हवाई यात्रा के टिकट और काफी अन्य सुविधाओं के लिए ज्यादा से ज्यादा कैशलेस सुविधाओं का इस्तेमाल करेंगे।

प्रधानमंत्री जन धन योजना को भी इस कदम का भरपूर लाभ होगा। 500 और 1000 रुपए के नोट बैन होने से ज्यादा से ज्यादा लोग बैंकिंग से जुड़ेंगे। बैंक जाकर कम से कम नोट तो बदलवाएंगे ही। अपने अकाउंट्स में पैसा भी जमा करवाएंगे। धीरे-धीरे रोजमर्रा की जरूरतों का सामान खरीदने के लिए बिना नगदी के लेन-देन को प्रेरित होंगे।

अर्थव्यवस्था में ऐसा पैसा आएगा, जो कानूनी होगी। इसका नतीजा यह होगा कि सरकार का राजस्व बढ़ेगा। इसका असर सरकार की सामाजिक क्षेत्र के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर भी सकारात्मक होगा।

नुकसान में

जिन क्षेत्रों में कारोबार को जारी रखने के लिए नगदी पर निर्भर रहना होता है वहां इसका गहरा असर पड़ेगा।
रियल एस्टेटः रियल एस्टेट और निर्माण क्षेत्र, खासकर सेकंडरी मार्केट, पर इसका बड़ा असर होगा क्योंकि यह कारोबार ज्यादातर नगदी लेन-देन पर ही निर्भर होता है। इस वजह से इसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा काला धन भी पैदा होता है। जो खरीदार बेचने के लिए प्रॉपर्टी खरीदते हैं, वह ही टैक्स बचाने के लिए बड़ी राशि नगदी में लेते हैं लेकिन नई व्यवस्था से इस पर गाज गिरेगी।

बिल्डर नगद भुगतान ठेकेदारों को करते हैं और वह उप-ठेकेदारों को। पूरी सप्लाई-चेन ही नगदी के प्रवाह पर निर्भर है। कुछ समय के लिए इस पर बड़ा असर होगा। प्रॉपर्टी की कीमतों में भी कम से मध्यम अवधि में सुधार आ सकता है। हालांकि, यह क्षेत्र धीरे-धीरे बिना नगदी वाली अर्थव्यवस्था की ओर जाएगा, जिससे सरकार को आगे चलकर ज्यादा राजस्व प्राप्त होने लगेगा।

सोना और जेवरातः रियल एस्टेट के साथ ही, सोना और जेवरात उद्योग में भी ज्यादातर लेन-देन नगदी में होता है, जो अवैध पैसे के इस्तेमाल को बढ़ावा देता है। सरकार का नया कदम उन लोगों पर होगा जिन्होंने बड़ी संख्या में 500 और 1000 रुपए के नोट जमा कर रखे हैं। कम से मध्यम अवधि में लोग सोना-जेवराती से दूर रहेंगे। सोने की मांग घटेगी तो कीमतें भी कम होंगी। जैसे-जैसे बाजार बिना नगदी वाले लेन-देन की ओर बढ़ेगा, सरकार का राजस्व बढ़ेगा। यह सरकार के साथ ही अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद रहेगा।

मनी मार्केटः स्टॉक और कमोडिटी मार्केट्स में कम अवधि में सुधार आएगा लेकिन मध्यम अवधि में स्थिरता आ जाएगी। फ्रंट कंपनियों की ओर से चैनलाइज किया गया अवैध पैसा धीरे-धीरे कम होता जाएगा। पी-नोट्स पर सबसे ज्यादा असर होगा, जिसमें बड़ी संख्या में काले धन का इस्तेमाल हो रहा है।

फिल्म और मनोरंजनः यह एक और उद्योग है जिस पर गहरा असर होने वाला है। विभिन्न हितधारकों के जरिए बड़ी मात्रा में नगदी इस उद्योग में प्रवाहित होती है। कम अवधि में, बन रही फिल्में प्रभावित हो सकती है। लेकिन समय के साथ यह उद्योग भी इन झटकों से उबर जाएगा। इसका मतलब यह होगा कि सरकार को राजस्व ज्यादा मिलेगा। बिना नगदी की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।

थोक बाजार और व्यापारीः  यह क्षेत्र ज्यादातर लेन-देन नगदी में करता है। किसानों तक की सप्लाई शृंखला तक भुगतान नगदी में होते हैं, जो सरकार के कदम से प्रभावित होंगे। मध्यम से लंबी अवधि में यह फायदेमंद होगा क्योंकि लोग धीरे-धीरे बैंकिंग प्रणाली की ओर बढ़ेंगे।

राजनीतिक पार्टियां: राजनीतिक पार्टियों के लिए भी यह मुश्किल वक्त है क्योंकि चुनावों में खर्च अमूमन नगदी में ही किया जाता है। काले धन के प्रवाह का यह सबसे बड़ा चैनल है। जिन राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं के पास बड़ी संख्या में काला धन रखा है, वह अब रद्दी कागज के टुकड़ों से ज्यादा नहीं है। उन्हें यूपी और पंजाब के चुनावों के लिए पैसा जुटाने में खासी मुश्किल आएगी। खासकर नगदी उनके पास नहीं होगी।

आखिर में…. चिंताः यह भी एक हकीकत है कि 2000 रुपए के करेंसी नोट अर्थव्यवस्था में आ रहे हैं, जो काले धन की अर्थव्यवस्था का रास्ता दिखा सकते हैं। आखिरकार, जब 1978 में जनता पार्टी सरकार ने 500 और 10,000 रुपए के नोट बंद किए थे तब काले धन ने दूसरे रास्ते से अर्थव्यवस्था में प्रवेश किया था।

लेकिन फिलहाल के लिए आइये हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस सराहनीय कदम का जश्न मनाते हैं…!

 

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