Home / Imo / भारत-रूस व्यापारिक सौदा: क्या प्रभावित होंगे हमारे अमेरिकी संबंध?

भारत-रूस व्यापारिक सौदा: क्या प्रभावित होंगे हमारे अमेरिकी संबंध?

October 10, 2018


Rate this post

भारत-रूस व्यापारिक सौदा: क्या प्रभावित होंगे हमारे अमेरिकी संबंध?

अंतर्राष्ट्रीय संबंध कभी भी 2 + 2 = 4 का कारोबार नहीं रहा। देश अक्सर एक से अधिक तरीकों से आपस में मिलकर संबंधों का निर्माण करते हैं, इन संबंधों का निर्वहन करने के लिए मार्ग बहुत ही नाजुक होता है। हालिया भारत-रूसी सौदा अभी तक की दूसरी बड़ी उपलब्धता है।

5 अक्टूबर 2018 को, प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 19वें भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात की और अनेक द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। भारत में पुतिन का आगमन अब तक आम जनता के बीच बहुत ही रोमांचक विषय रहा, जैसा कि पहले से ही अनुमान लगाया गया था। और हो भी क्यूं न? दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों के स्पष्ट वादे के साथ यह शिखर सम्मेलन आकर्षण का केंद्र जो रहा। हालांकि, जैसा कि अनुमान था बैठक अपेक्षित रूप से उपयोगी साबित हुई; लेकिन एक सवाल लोगों के जहन में घर कर रहा है – कि इस समझौते के बाद अमेरिका की प्रतिक्रिया कैसी रहेगी ?

आपको सौदे के बारे में जानने की जरूरत है

व्लादिमीर पुतिन की दो दिवसीय भारत यात्रा दोनों देशों के बीच 19वें वार्षिक शिखर सम्मेलन का एक हिस्सा थी। जैसा कि सूत्रों ने पहले ही बताया था कि बैठक में प्रमुख सैन्य और सुरक्षा सौदों जैसे आदि मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। 5 अक्टूबर को, दोनों देशों ने राजधानी में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और रूस ने भारत को 5 एस – 400 मिसाइल प्रणालियों को अनिवार्य रूप से स्थानांतरित कर ने के लिए सहमति व्यक्त की। इसके अलावा, हमारा देश चार लड़ाकू विमानों को भी खरीदेगा और ए के 103 राइफल्स के लाइसेंस निर्माण के लिए चर्चा करेगा।जबकि एस – 400 के लिए भारत को 5.43 अरब डॉलर खर्च करने पडेंगे, युद्ध-पोत की कीमत 2.2 अरब डॉलर होगी।

यहाँ इन सौदों को विशिष्ट रूप से दर्शाया गया है:

  • दोनों देश आतंकवाद और नशीली दवाओं की तस्करी के खिलाफ एक साथ आने के लिए सहमत हैं।
  • भारत ने रूस को एक रक्षा औद्योगिक पार्क के निर्माण के लिए आमंत्रित किया है।
  • व्लादिमीर पुतिन ने अपने संबोधन में उल्लेख किया कि रूस भारत के सहयोग से एक नया परमाणु संयंत्र बनायेगा।
  • भारत के महत्वाकांक्षी चालित अंतरिक्ष मिशन, गगनयान में संयुक्त गतिविधियों के लिए रूस और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की संघीय अंतरिक्ष एजेंसी के बीच एक एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए गए हैं। एमओयू (समझौता ज्ञापन) में रूस के भारतीय अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण भी शामिल है।
  • दोनों देशों ने छः परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के निर्माण करने के साथ रूस ने भारत की मदद करने की घोषणा पर भी समझौता किया है।

अमेरिका क्यों हो सकता है असंतुष्ट?

अमेरिका-रूस राजनयिक संबंध, विशेष रूप से 2014 यूक्रेन संकट के बाद से, विशेष रूप से तनावपूर्ण रहे हैं। 2017 में, संयुक्त राज्य कांग्रेस प्रतिबंध अधिनियम (सीएएटीएसए) के तहत अमेरिका के विरोधियों का विरोध करने के लिए प्रस्तावित थी। यह अधिनियम, स्पष्ट कारणों की वजह सेतीन देशों रूस, ईरान और उत्तर कोरिया पर लगाए गए प्रतिबंध से चर्चा में रहा।

सीएएटीएसए के प्रावधानों के तहत यूरोप और यूरेशिया अधिनियम, 2017 में रूसी प्रभाव का विरोध करने वाला एक अधिनियम है। अधिनियम “रूसी रक्षा या खुफिया क्षेत्रों के साथ लेन देन” के लिए प्रतिबंधों का उल्लेख करता है। सितंबर 2018 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस से मिसाइलों और लड़ाकू जेट खरीदने के लिए प्रतिबंधों के माध्यम से चीन को प्रस्तावित किया था, एस – 400 उनमें से एक है। स्वाभाविक रूप से, इसे भारत को सीएएटीएसए के तहत स्वीकृत होने की मजबूत संभावनाओं के तहत रखना चाहिए।

भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगी दलों और भागीदारों में से एक होने के नाते, रूस के साथ इसका सौदा पश्चिमी देश को स्वाभाविक रूप से असहज बनाता है।

एक व्यापक तस्वीर

भारत-रूस सौदे के बारे में पूछे जाने पर, नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास ने कहा कि रूस पर प्रतिबंधों के पीछे का उद्देश्य उसके “घातक व्यवहार” को जांच में रखना था, न कि अमेरिका के सहयोगियों की “सैन्य क्षमताओं को नुकसान पहुंचाना”। अमेरिका के इस निष्पक्ष बयान से एक बात तो साफ हो गई है कि यह भारत को चीन जैसी सख्त प्रक्रिया से गुजारने की योजना नहीं बना रहा है, कम से कम एक सिरे तो नहीं।

संभवत: अमेरिका के नरम होने की वजह साफ है: जबकि यह रूस और चीन के बीच विकासशील संबंधों के प्रति दृढ़ता से प्रतिकूल है और अमेरिका यह भी जानता है भारत ही एक ऐसा मार्ग है जिससे ये सारी समस्याएं हल हो सकती हैं। रूस और चीन उनकी विचारधाराओं में समान हैं और हाल के वर्षों में उनके व्यापारिक संबंधों में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। रूस के साथ नए संबंध बनाने वाले भारत, दोनों देशों के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका एकदम उचित “मध्य की दीवार” के रूप में कार्य कर सकता है।

दूसरा, यह कि यह सौदा दोनों देशों द्वारा किया गया पहला हथियारा सौदा नहीं है। रूस भारत के लिए लंबे समय से आयातित सैन्य हथियारों का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। भारत को उम्मीद है कि संयुक्त राज्य अमेरिका हालिया शिखर सम्मेलन के परिणाम स्वरूप प्रतिबंधों को पार नहीं करेगा। उम्मींदे कायम रहती या नहीं कुछ दिनों के बाद स्पष्ट हो जाएगा।

हालांकि, एक बात तो निश्चित है। भारत अभी भी अमेरिका के महत्वपूर्ण सहयोगियों और भागीदारों में से एक बना हुआ है। इस तरह की स्थिति में, अमेरिका अपने नजदीकी रिश्ते को खतरे में डालने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगा।

Summary
Article Name
भारत-रूस व्यापारिक सौदा: क्या प्रभावित होंगे हमारे अमेरिकी संबंध?
Description
अक्टूबर 2018 को, प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 19वें भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात की और अनेक द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। हालांकि, जैसा कि सोचा गआ था बैठक अपेक्षित रूप से उपयोगी साबित हुई; लेकिन एक सवाल लोगों के जहन में घर कर रहा है – कि इस समझौते के बाद अमेरिका की प्रतिक्रिया कैसी रहेगी ?
Author

Comments

Like us on Facebook

Recent Comments

Archives
Select from the Drop Down to view archives