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भारत चीन सीमा विवाद

August 2, 2016


भारत चीन सीमा विवाद कारण और समाधान

भारत चीन सीमा विवाद कारण और समाधान

2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आते ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट ने यह साफ कर दिया था कि वह भारत को स्पॉटलाइट में ले आएंगे। देश वैश्विक राजनीति और व्यापार में महती भूमिका निभाएगा। इस एजेंडा का महत्वपूर्ण हिस्सा था पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक और दोस्ताना रिश्तों को मजबूती देना। इनमें पाकिस्तान और चीन भी शामिल थे। 1962 के युद्ध में हारने के बाद से भारत और चीन के संबंधों में कड़वाहट रही है। कई सरकारें आई और गई, संबंध सुधारने की कोशिशें भी की गई लेकिन अविश्वास और दुश्मनी का माहौल कम नहीं हुआ।

सितंबर 2014 में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए। मई 2015 में, प्रधानमंत्री मोदी ने चीन का ऐतिहासिक दौरा किया। ऐसा लगा कि दोनों देशों के रिश्ते मजबूती की ओर बढ़ रहे हैं। सफलता बस मिलने ही वाली है। दोनों देशों ने 24 करार किए। इनमें एक-दूसरे के देश में अतिरिक्त कूटनीतिक मिशन खोलने, व्यापारिक साझेदारी को मजबूती देने के साथ ही सीमाई इलाकों में आपसी सहयोग के लिए मिलिट्री के बीच हॉटलाइन बनाने पर भी सहमति बनी थी।

बढ़ती चिंताएं-

ऐतिहासिक तनाव को दूर करने की हमारी उम्मीदें एक बार फिर जस की तस रह गईं। न केवल चीन अपने रुख पर अड़ा रहा बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन जुटाने के प्रयासों को रोकता रहा। इसके साथ ही उसने मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में डालने के भारत के प्रयासों को भी अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया।

जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और उसके नेता अजहर को जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड माना जा रहा है। चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल किया और कहा कि आतंकी हमले में जेईएम के शामिल होने की बात पर संदेह है। इस बीच, भारत सरकार ने वादा किया कि वह यह मुद्दा चीन के वरिष्ठ नेतृत्व तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे। चीन की एक बार फिर चर्चा ‘सबसे ज्यादा तनाव’ वाले देश के तौर पर हो रही है। जिन देशों से रिश्ते सुधर रहे थे, उनकी सूची से चीन ने खुद को बाहर कर दिया। चीन ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया, जिससे भारतीयों का गुस्सा बढ़ गया। उसने न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) का सदस्य बनने के भारत के प्रयासों को रोकते हुए पाकिस्तान को शामिल करने की पैरवी की। चीन का कहना है कि भारत को एनएसजी में शामिल नहीं किया जाए क्योंकि उसने परमाणु निरस्त्रीकरण संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश में सीमा पर घुसपैठ

बढ़ती चिंताओं और तनावग्रस्त रिश्तों की आग में घी डालने का काम किया, पिछले कुछ हफ्तों में भारतीय जमीन पर चीनी सेनाओं की घुसपैठ ने। हालिया समाचारों के मुताबिक, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस बात की पुष्टि की है कि राज्य के चमौली जिले में 19 जुलाई 2016 को हुई चीनी घुसपैठ में एक चीनी हेलिकॉप्टर भी शामिल था। पीआरसी लौटने से पहले वह हेलिकॉप्टर करीब पांच मिनट तक भारतीय इलाके में मंडराता रहा। इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) ने यह जानकारी सरकार को एक रिपोर्ट में भेजी है। मुख्यमंत्री रावत ने कहा- “सूचना सही है और हालात चिंताजनक हैं। हमारे सीमाई इलाके अब तक शांतिपूर्ण रहे हैं और शुरू से ही हम सतर्कता व गश्त बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।”

चिंता बढ़ाने वाली बात यह भी है कि यह घुसपैठ पिछले कुछ हफ्तों में लगातार हो रही है। अरुणाचल प्रदेश के यांगत्से क्षेत्र (पूर्वी कामेंग जिले) में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए- चीनीसेना) के सैनिक घुस आए थे। 9 जून 2016 को करीब 250 चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुसे और लौटने से पहले तीन घंटे रहे। हालांकि, चीन ने इस तरह की घुसपैठ के आरोपों का खंडन किया है और दावा किया कि भारत-चीन सीमा का स्पष्ट सीमांकन नहीं हुआ है। पीएलए के सैनिक एलएसी (वास्तविक नियंत्रण की रेखा) के चीनी हिस्से में नियमित गश्त पर थे।

पिछले महीने, पीएलए का एक लड़ाकू विमान अक्सई चीन इलाके में भारतीय सीमा में घुस आया था। करीब 107 मिनट तक भारतीय सीमा में मंडराने के बाद जेएच7 चीन लौट गया।

भारत ने चीनी सीमा पर सैनिक पंक्ति को मजबूती दी

इस बीच, भारत ने चीन की सीमा पर अपनी सुरक्षा पंक्ति को मजबूती देना शुरू कर दिया है। बड़ी संख्या में सैनिक और तोपों को तैनात किया गया है। इसी महीने, भारतीय सेना ने लद्दाख में चीनी सैनिकों के आक्रामक जमावड़े को देखते हुए 100 टी-72 टैंक तैनात किए थे। इतिहास में यह दूसरी बार है जब भारत ने लद्दाख की अग्रिम सीमा पर टैंक तैनात किए हैं। पिछली बार भारत ने सीमा पर टैंकों को दोनों देशों के बीच हुए युद्ध के दौरान तैनात किया था। उस समय पांच टैंकों को तो विमानों की मदद से सीमा पर पहुंचाया गया था।

चीन ने भारत-चीन सीमा पर बुनियादी ढांचे को मजबूती दी है। सड़कें तैयार की हैं। इन्हें जवाब देने के लिए ही भारत ने टैंकों की तैनाती की है। चीन के आक्रामक रवैये को देखकर न केवल भारत बल्कि वैश्विक संगठन चिंतित हैं। अमेरिका के डिफेंस विभाग के डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी की रिपोर्ट कहती है- “हमने भारत की सीमा पर चीनी सैनिकों की तैनाती में बहुत बड़ा जमावड़ा देखा है। न केवल सैनिकों की संख्या बढ़ाई गई है बल्कि हथियारों का जखीरा भी पहुंचाया गया है।”

भारत की ओर से अतिरिक्त सैनिकों और टैंकों की तैनाती को चीन ने बहुत ही अलग अंदाज में लिया। चीन के अधिकारियों ने इन परिस्थितियों का हवाला देते हुए भारत में निवेश रोकने की धमकी तक दे डाली।

भारत के हवाई क्षेत्र की सुरक्षा के लिए सरकार पिछले कुछ बरसों से अरुणाचल प्रदेश में सात एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड्स विकसित कर रही है। इनमें से जाइरो और एलोंग का उद्घाटन मार्च में हुआ। तीन अन्य का भी जल्द ही उद्घाटन हो जाएगा।

बातचीत का रास्ता

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत और चीन के लिए ही नहीं बल्कि समूचे महाद्वीप के लिए ही यह बेहद जरूरी है कि दशकों पुराना सीमा विवाद बातचीत के जरिए शांतिपूर्वक सुलझ जाए। सीमा विवाद पर 19 दौर की बातचीत के बाद भी दोनों देश किसी आपसी सहमति पर नहीं पहुंच सके हैं।

भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सहमति बनी थी, लेकिन उसे स्वीकार करने को लेकर चीन आनाकानी कर रहा है। 1914 में ब्रिटिश ने तिब्बत के साथ शिमला समझौता किया था, जिसमें मैकमोहन लाइन को दोनों क्षेत्रों (भारत और तिब्बत) के बीच सीमा माना गया था। लेकिन चीन सरकार इसे नहीं मानती। चीन अक्सई चिन को भी अपना इलाका बताता है।

इस जटिल विवाद का समाधान तभी निकल सकता है जब दोनों देश प्रतिबद्धता के साथ बातचीत के जरिए इसे सुलझाने के लिए प्रयास करें। अविश्वास और तनाव की स्थिति को और आगे लेकर न