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भारत में मानव तस्करी

July 7, 2018


 

भारत में मानव तस्करी को समाप्त करना होगा

नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी विश्व भर में तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है।

संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार ‘किसी व्यक्ति को डराकर, बलप्रयोग कर या दोषपूर्ण तरीके से भर्ती, परिवहन या शरण में रखने की गतिविधि तस्करी की श्रेणी में आती है’। दुनिया भर में 80 प्रतिशत से ज्यादा मानव तस्करी यौन शोषण के लिए की जाती है, और बाकी बंधुआ मजदूरी के लिए। भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। सन् 2011 में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई जिसमें से 11,000 से ज्यादा तो सिर्फ पश्चिम बंगाल से थे। इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से केवल 30 प्रतिशत मामले ही रिपार्ट किए गए और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।

मानव तस्करी भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है। आज तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया जिससे भारत में तस्कर हुए बच्चों का सही आंकड़ा पता चल सके। न्यूयाॅर्क टाइम्स ने भारत में, खासकर झारखंड में मानव तस्करी की बढ़ती समस्या पर रिपोर्ट दी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटी उम्र की लड़कियों को नेपाल से तस्करी कर भारत लाया जाता है। टाइम्स आॅफ इंडिया में प्रकाशित एक अन्य लेख के अनुसार मानव तस्करी के मामले में कर्नाटक भारत में तीसरे नंबर पर आता है। अन्य दक्षिण भारतीय राज्य भी मानव तस्करी के सक्रिय स्थान हैं। चार दक्षिण भारतीय राज्यों में से प्रत्येक में हर साल ऐसे 300 मामले रिपोर्ट होते हैं। जबकि पश्चिम बंगाल और बिहार में हर साल औसतन ऐसे 100 मामले दर्ज होते हैं। आंकड़ों के अनुसार, मानव तस्करी के आधे से ज्यादा मामले इन्हीं राज्यों से हैं। नशीली दवाओं और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के द्वारा मानव तस्करी पर जारी एक ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि सन् 2012 में तमिलनाडु में मानव तस्करी के 528 मामले थे। यह वास्तव में एक बड़ा आंकड़ा है और पश्चिम बंगाल, जहां यह आंकड़ा 549 था, को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे अधिक है। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार चार सालों में कर्नाटक में मानव तस्करी के 1379 मामले रिपोर्ट हुए, तमिलनाडु में 2244 जबकि आंध्र प्रदेश में मानव तस्करी के 2157 मामले थे। हाल ही में बेंगलुरु में 300 बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया गया। फस्र्टपोस्ट के एक लेख के अनुसार दिल्ली भारत में मानव तस्करी का गढ़ है और दुनिया के आधे गुलाम भारत में रहते हैं। दिल्ली घरेलू कामकाज, जबरन शादी और वेश्यावृत्ति के लिए छोटी लड़कियों के अवैध व्यापार का हाॅटस्पाॅट है।

बच्चे, खासतौर पर छोटी लड़कियां और युवा महिलाएं जो कि ज्यादातर उत्तरपूर्वी राज्य से होती हैं, उन्हें उनके घरों से लाकर दूरदराज के राज्यों में यौन शोषण और बंधुआ मजदूरी के लिए बेचा जाता है। ऐजेंट इनके माता पिता को पढ़ाई, बेहतर जिंदगी और पैसों का लालच देकर लाते हैं। ऐजेंट इन्हें स्कूल भेजने के बजाय ईंट के भट्टों पर, कारपेंटर, घरेलू नौकर या भीख मांगने का काम करने के लिए बेच देते हैं। जबकि लड़कियों को यौन शोषण के लिए बेच दिया जाता है। यहां तक कि इन लड़कियों को उन क्षेत्रों में शादी के लिए मजबूर किया जाता है जहां लड़कियों का लिंग अनुपात लड़कों के मुकाबले बहुत कम है। आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों पर मानव तस्करी का खतरा सबसे ज्यादा है। हाल ही में ऐसे कई मामले देखे गए जहां ज्यादातर बच्चे मणिपुर के तामेंगलांग जिले में कुकी जनजाति से थे। इसका कारण आदिवासियों का संघर्ष था जिससे मानव तस्करी को फलने फूलने का मौका मिला। सन् 1992 से 1997 के बीच उत्तरपूर्वी क्षेत्र में कुकी और नागा जनजाति के बीच हुए संघर्ष से कई बच्चे बेघर हो गए। इन बच्चों को ऐजेंट देश के अन्य हिस्सों में ले गए।

भारत में मानव तस्करी क्यों बढ़ रही है?

इस स्थिति पर भी मांग और आपूर्ति का सिद्धांत लागू होता है। पुरुष काम करने के लिए बड़े व्यवसायिक शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे व्यापारिक सेक्स की मांग पैदा होती है। इस मांग को पूरा करने के लिए सप्लायर हर तरह की कोशिश करता है जिसमें अपहरण भी शामिल है। गरीब परिवार की छोटी लड़कियों और युवा महिलाओं पर यह खतरा ज्यादा होता है।

इसके बाद आता है अन्याय और गरीबी। यदि आप भारत के उत्तरपूर्व राज्य के किसी गरीब परिवार में पैदा हुए हैं तो आपके बेचे जाने का खतरा ज्यादा है। यदि आप किसी गरीब परिवार में पैदा हों या लड़की हों तो खतरा और बढ़ जाता है। कभी कभी पैसों की खातिर मां बाप भी बेटियों को बेचने पर आमादा हो जाते हैं।

सामाजिक असमानता, क्षेत्रीय लिंग वरीयता, असंतुलन और भ्रष्टाचार मानव तस्करी के प्रमुख कारण हैं।

आदिवासी क्षेत्रों के मां बाप सोचते हैं कि वे अपने बच्चों को बेचकर उन्हें शिक्षा और सुरक्षा के मायने में बेहतर जीवन दे रहे हैं। मां बाप बच्चों के रहने और खाने के लिए इन एजेंटों को 6000-7000 रुपये तक भी देते हैं।

जबरन शादी

लड़कियों और महिलाओं को ना सिर्फ देहव्यापार के लिए तस्कर किया जाता है बल्कि उन्हें एक सामान की तरह उन क्षेत्रों में बेचा
जाता है जहां कन्या भ्रूण हत्या के कारण लड़कियों का लिंग अनुपात लड़कों के मुकाबले बहुत कम है। फिर इन्हें शादी के लिए मजबूर किया जाता है।

बंधुआ मजदूर

यूं तो बंधुआ मजदूरी के बारे में ज्यादा नहीं जाना जाता पर यह भारत में गैरकानूनी है और समाज में प्रचलित है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में 11.7 मिलियन से ज्यादा लोग बुंधुआ मजदूर के तौर पर कार्य कर रहे हैं। पैसों की तंगी झेल रहे लोग, पैसों के बदले में अक्सर अपने बच्चों को बेच देते हैं। इन मामलों में लड़के और लड़कियां दोनों को बेच दिया जाता है और उन्हें सालों तक भुगतान नहीं किया जाता।

मानव तस्करी के शिकार लोगों की कई चीजों, जैसे मानसिक विकार, निराशा और चिंता से पीडि़त होने की संभावना सबसे अधिक रहती है। यौन तस्करी की शिकार महिलाओं के ‘एचआईवी’ और ‘एसटीडी’ से ग्रसित होने की संभावना भी अधिक रहती है।

दोषियों के खिलाफ कार्रवाई

अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम के तहत व्यवसायिक यौन शोषण दंडनीय है। इसकी सजा सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है। भारत में बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम, बंधुआ और जबरन मजदूरी को रोकते हैं।

दिसंबर 2012 में हुए जघन्य बलात्कार मामले में सरकार ने एक विधेयक पारित किया जिससे यौन हिंसा और सेक्स के अवैध कारोबार से जुड़े कानूनों में बदलाव हो सके। लेकिन अब भी इन कानूनों के बनने और लागू होने में बड़ा अंतर है। हर तरफ फैले भ्रष्टाचार और रिश्वत के कारण इन एजेंटों का लड़के और लड़कियां को बेचना आसान है। लेकिन इन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरुरत है जिससे इस समस्या को खत्म किया जा सके।

साथ ही लोगों को उनके इलाके में अच्छी शिक्षा और बेहतर सुविधाएं देने की जरुरत है, जिससे मां बाप अपने बच्चों को इस तरह ना बेच सकें। इसके साथ ही लड़कियों और महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की भी जरुरत है।