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भारत को एशियाई वूशू चैम्पियनशिप में बड़ी सफलता

September 6, 2016


भारत को एशियाई वूशू चैम्पियनशिप में बड़ी सफलता

भारत को एशियाई वूशू चैम्पियनशिप में बड़ी सफलता

ताइवान के शहर ताओयुआन में 1 से 5 सिंतबर के बीच 9वी एशियाई वूशू चैम्पियनशिप का आयोजन किया गया। इस चैम्पियनशिप में भारतीय टीम ने प्रभावी प्रदर्शन करते हुए 9 मेडल जीते। भारत ने चार रजत और पांच कांस्य पदक जीते। इसे भारत की बदकिस्मती ही कहा जाएगा कि बेहतरीन खेल दिखाने के बावजूद कोई भी भारतीय खिलाड़ी कोई स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया। एल. बुधाचंद्र सिंह पहले भारतीय थे, जिन्होंने पहला पदक जीता। 56 किलोग्राम वजन वर्ग में स्वर्ण पदक के लिए हुए मुकाबले में बुधाचंद्र को वियतनाम के वेन बाउ के हाथों हार का सामना करना पड़ा। 48 किलोग्राम वजन वर्ग में प्रवीण कुमार ने भारत के लिए दूसरा मेडल जीता। प्रवीण को मिन्ह डूक वू ने हराया। के. अन्नपूर्णा देवी ने 60 किलोग्राम वजन वर्ग में और राजिंदर सिंह ने 90 किलोग्राम वजन वर्ग में सिल्वर मेडल जीते।

युमनाम संतोषी देवी ने 52 किलोग्राम वजन वर्ग का कांस्य पदक जीता। संतोषी देवी ने पिछले एशियन गेम्स का प्रदर्शन दोहराते हुए यह सफलता हासिल की। उन्होंने तक भी कांस्य पदक जीता था। पूजा कादियान ने 65 किलोग्राम वजन वर्ग में कांस्य जीता। पूजा के अलावा रजनी देवरी ने 75 किलोग्राम वजन वर्ग में और विशाखा मलिक ने 70 किलोग्राम वजन वर्ग में कांस्य पदक हासिल किया। पुरुषों के 75 किलोग्राम वजन वर्ग में उचित शर्मा ने कांस्य पदक जीता।

वूशू क्या है

आइए अब आपको बताते हैं कि वूशू खेल होता क्या है और इसकी तकनीक क्या है। दरअसल, यह खेल चीनी मार्शल आर्ट की एक शैली कूंग-फू और जिम्नास्टिक का समायोजन है। चीन में कूंग-फू की शुरुआत का श्रेय सेग बोधिधम्मा को जाता है। बोधिधम्मा भारत से बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए चीन गए थे। उनका उद्देश्य बौद्ध भिक्षुओं को योद्धा बनाना था। वूशू खेल में दो शैलियां होती हैं- पहली ताओलू और दूसरी सांदा। ताओलू में योद्धा हथियार के साथ और बिना हथियार के अपनी कला का प्रदर्शन करता है। सांदा शैली एक युद्ध घटक है और इसमें योद्धा हर तरह से लड़ सकता है।

भारत में वूशू को पहचान कब मिली

भारत में इस खेल को पहचान बनाने में काफी वक्त लगा। वर्ष 1989 में वूशू एसोसिएशन ऑफ इंडिया का गठन किया गया ताकि वूशू का प्रचार-प्रसार देश में ज्यादा से ज्यादा हो और इस खेल प्रेमियों और खिलाड़ियों को इस खेल से वाकिफ करवाया जाए। फिलहाल यह एसोसिएशन लखनऊ से बाहर काम कर रहा है। वर्ष 2011 वूशू के लिए अहम साल रहा। इस साल रांची में आयोजित किए गए राष्ट्रीय खेलों में वूशू को पहली बार शामिल किया गया था।

एशियन चैम्पियनशिप की तैयारी कैसे हुई

इस साल हुई एशियन वूशू चैम्पियनशिप के लिए भारतीय टीम ने खास तैयारियां की थी। टीम के सभी सदस्यों के लिए चीन के शांगदोंग शहर में 1 से 30 जुलाई तक प्रशिक्षण शिविर में भेजा गया था। इस टीम की अगुवाई जम्मू-कश्मीर के कुलदीप हांडू कर रहे थे। कुलदीप वूशू कोच और ऑफिशियल भी हैं। इस चैम्पियनशिप में दुनिया के 24 देशों के एथीलट्स भाग ले रहे थे। चीन इस चैम्पियनशिप में अव्वल रहा, जबकि ईरान और वियतनाम क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। 2012 में हो चि मिन्ह शहर में आयोजित की गई पिछली चैम्पियनशिप में भारत ने 10 मेडल जीते थे। इनमें 9 कांस्य पदक थे और एकमात्र रजत पदक। इस हिसाब से कहा जा सकता है पिछली बार के मुकाबले इस बार भारत के पदकों की संख्या 10 के बजाय 9 ही थी, जो साबित करता है पिछली बार भारतीय खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन किया था।

भारत के लिए इसके क्या मायने

भारत के हर किसी खेलप्रेमी के लिए यह एक अच्छी खबर है। अब वह समय आ गया है जब देश वूशू में ओलिंपिक मेडल की संभावना देख रहा है। कम से कम एक मेडल तो मिल ही सकता है, लेकिन इसके लिए कड़ी मेहनत और सकारात्मक सोच जरूरी होगी। पिछले ओलिंपिक में आए परिणामों की निराशा भूलकर एक नई शुरुआत करनी होगी। एक ताजा हवा के झोंके की तरह। हमें यह मानकर ही तैयारियां करनी होंगी कि वूशू खेल अब ओलिंपिक में शामिल हो चुका है। यह इसी तरह हो सकता है जैसे कि गोल्फ को ओलिंपिक खेलों से जोड़ा जा चुका है। अब भारत के पास वूशू में ओलिंपिक पदक जीतने का सुनहरा मौका है। देश के तमाम खेलप्रेमियों का एक ही सपना है कि ओलिंपिक में भारत को ज्यादा से ज्यादा मेडल मिले। इस सपने को पूरा करने के लिए जरुरत है तो बस एक नई शुरुआत करने की।

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