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टेल्गो ने बनाया दिल्ली से मुंबई के सफर को ओवरनाइट ट्रिप

November 10, 2016


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टेल्गो ने बनाया दिल्ली से मुंबई के सफर को ओवरनाइट ट्रिप

टेल्गो ने बनाया दिल्ली से मुंबई के सफर को ओवरनाइट ट्रिप

ऐसा लगता है कि भारत में जल्द ही पहला हाई-स्पीड रेलवे नेटवर्क साकार हो जाएगा। एक ऐसा नेटवर्क जो राजधानी और दुरंतो जैसी मौजूदा सुपरफास्ट एक्सप्रेस गाड़ियों से भी तेज होगा। स्पेन में हाई-स्पीड ट्रेन बनाने वाली कंपनी टेल्गो, भारत को यह सपना साकार करने में मदद कर सकती है। उम्मीद की जा रही है कि टेल्गो ऐसी ट्रेन बनाएगी, जो मुंबई (महाराष्ट्र) और दिल्ली के 1,388 किमी के सफर को 12 घंटे या उससे कम अवधि में पूरा करेगी। यह वह अपने हल्के कोचेस की मदद करने वाली है। इस समय, इन दोनों शहरों के बीच सबसे तेज गति से चलने वाली ट्रेन राजधानी हैं, जो 16 घंटे और 10 मिनट का वक्त लेती है। यदि टेल्गो सफल रही तो कम से कम चार घंटे की बचत होगी।

टेल्गो का औपचारिक प्रस्ताव

टेल्गो ने जुलाई 2015 में भारतीय रेलवे के सामने औपचारिक प्रस्ताव रखा था। उस समय भी रेल मंत्रालय सुरेश प्रभु के नेतृत्व में ही काम कर रहा था। कंपनी ने कहा था कि उसके कोच औसत भारतीय ट्रेन के मुकाबले हल्के हैं। हाल ही में टेल्गो के कोचेस का मथुरा और पलवल के बीच टेस्ट रन कराया गया। इस दौरान ट्रेन ने 180 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ी। भारतीय इंजिन से खिंचने पर ट्रेन की यह स्पीड एक उपलब्धि ही है। इस समय, इन कोच का भारतीय रेलवे परीक्षण कर रही है ताकि भारतीय ट्रैक्स के साथ उनकी कम्पेटेबिलिटी के कंपनी के दांवों को परखा जा सके।

अपनी तरह का पहला ट्रायल

रेलवे बोर्ड में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, इंफ्रास्ट्रक्चर के पद पर कार्यरत विजय कुमार ने कहा है कि भारतीय रेलवे की ओर से कराए जा रहे इस तरह के ट्रायल्स पहली बार ही हो रहे हैं। कुमार के मुताबिक, संगठन सामान्य तौर पर सभी नए डिजाइन कोचों का परीक्षण करता रहा है। ट्रायल्स भारतीय रेलवे के रिसर्च डिजाइंस एंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गेनाइजेशन (आरएसडीओ) की ओर से कराए गए।

ट्रायल्स पर और अतिरिक्त जानकारी

शुरुआती एक-दो चरण पूरे हो चुके हैं। तीसरा चरण अगस्त के पहले हफ्ते में शुरू हुआ। टेस्ट पूरा होने के बाद नतीजों या रिपोर्ट्स का आकलन होगा। अनुमति देने का फैसला सुरेश प्रभु करेंगे।

टेस्ट का अंतिम चरण

अंतिम चरणों में, इन कोचेस को दिल्ली और मुंबई के बीच ऑपरेट किया गया। उन्हें 4,500 हॉर्सपावर के डीजल इंजिन से खींचा गया। विजय कुमार ने यह भी बताया कि टेल्गो ने दावा किया है कि वह इस दूरी को 11 घंटे और 38 मिनट में पूरा कर सकती है। वह भी 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलते हुए। इस ट्रैक पर कोच की स्पीड को 130 किमी प्रति घंटे और 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पर जांचा जा चुका है। वैसे, इस रूट पर राजधानी भी ऑपरेट होती है। टेल्गो का कहना है कि 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से इस दूरी को 12 घंटे और 47 मिनट में पूरा किया जा सकता है। इस चरण में दूसरा ट्रायल यह देखने के लिए किया गया था कि तकनीकी पहलुओं को मद्देनजर रखते हुए किस तरह के बदलावों की आवश्यकता होगी। इस चरण में तीसरा परीक्षण सबसे महत्वपूर्ण था। इस दौरान कोचेस को दिल्ली से मुंबई के बीच 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ाया जाना चाहिए था। इस परीक्षण की सफलता के आधार पर ही टेल्गो से जुड़ा कोई भी फैसला लिया जाना था।

हकीकत तो यह है कि कंपनी अपने अंतिम 150 किमी प्रति घंटे के परीक्षण में सफल रही और यह भी कहा जा सकता है कि भारत के रेलवे नेटवर्क में टेल्गो ने दमदारी के साथ अपना दावा पेश किया है। रेलवे बोर्ड मेंबर (ट्रैफिक) एम. जमशेद ने कहा कि इस दूरी को टेल्गो ट्रेन ने 11 घंटे और 42 मिनट में पूरा किया। ट्रेन 10 सितंबर को दोपहर 2:45 पर दिल्ली से रवाना हुई और 11 सितंबर को रात 2 बजकर 33 मिनट पर मुंबई पहुच गई। टेस्ट में शामिल रहे टेल्गो के टेक्निशियंस के साथ ही भारतीय रेलवे के स्टाफ मेंबर भी शामिल रहे। टेल्गो के हल्के कोचेस में टिल्टिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। इन कोचों का इन्हीं शहरों के बीच 7 सितंबर को भी इसी तरह का परीक्षण हुआ था। उस समय कोचेस को 140 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पर परखा गया था।

ट्रायल्स का दूसरा चरण

दूसरे चरण के ट्रायल्स 9 जुलाई को शुरू हुए और महीने के आखिरी हफ्ते तक चले। इस चरण के परीक्षण के दौरान टेल्गो के कोचेस ने 180 किमी प्रति घंटे की रफ्तार को भी पकड़ा था। मथुरा और पलवल के बीच की दूरी सिर्फ 39 मिनट में पूरी की गई। इस स्टेज के पहले दौर में कोच को लोगों के बिना चलाया गया। बाद में उसे फुल कैपेसिटी में चलाया गया।

परीक्षण का पहला चरण

पहले चरण में, इन कोचों को आरडीएसओ ने ऐसे इलाकों में चलाया जहां स्थायित्व और सुरक्षा थी। कुमार ने यह भी कहा कि देखने से तो लगता है कि सबकुछ ठीक ही था। इस चरण में ट्रेन को उत्तर प्रदेश के बरेली और मुरादाबाद शहरों के बीच चलाया गया।

आरडीएसओ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (टेस्टिंग) हामिद अख्तर के मुताबिक, इस चरण को फील्ड वेरिफिकेशन के तौर पर जाना जाता है। इस चरण में सामान्य तौर पर मॉडल्स का परीक्षण होता है। उनके मुताबिक, कोचों का परीक्षण किया गया। स्पीड के प्रति उनकी रिएक्शन के साथ ही घुमावदार व सीधे ट्रैक्स पर अलग-अलग पैरामीटर्स को परखा गया। रिकॉर्डिंग और रीडिंग्स के जरिए नतीजे पर पहुंचने के लिए ट्रांसड्यूसर्स का इस्तेमाल किया गया। इसका उद्देश्य यह देखना था कि यह कोच किस तरह प्रदर्शन कर रहे हैं।

रेलवे अधिकारियों ने विविध पैरामीटर्स पर इन कोचों का परीक्षण किया और यह देखने की कोशिश की कि यह कोच भारतीय ट्रैक्स पर सुरक्षित हैं या नहीं। इस चरण में, ट्रेन को 80 किमी प्रति घंटे से 115 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ा गया। टेल्गो के कोच में दो एग्जीक्यूटिव क्लास कार, एक कैफेटेरिया, चार चेयर कार, एक पावर कार और एक लंबा कोच है, जहां सभी उपकरण और स्टाफ मेंबर काम करते हैं।