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अब आम बजट के साथ आएगा रेल बजट

November 10, 2016


अब आम बजट के साथ आएगा रेल बजट, हुआ ऐतिहासिक फैसला

अब आम बजट के साथ आएगा रेल बजट, हुआ ऐतिहासिक फैसला

भारत सरकार ने ब्रिटिश काल से चली आ रही कई दशक पुरानी (तकरीबन 92 साल) परंपरा को तोड़कर रेल बजट को आम बजट में मर्ज करने का फैसला किया है। इसका मतलब है कि संसद में दोनों बजटों पर अलग-अलग वोट ऑफ अकाउंट्स और एप्रोप्रिएशन बिल नहीं आएंगे। इससे बहुत समय बच जाएगा। यह एक ऐसा सुधार था, जिसकी जरूरत कई बरसों से महसूस की जा रही थी।

फर्स्टपोस्ट के कॉलमिस्ट और स्वराज्य के एडिटोरियल डायरेक्टर आर. जगन्नाथन ने 2014 में लिखा था कि रेलवे बजट भी नागरिक उड्डयन और रक्षा बजट जैसा ही एक घटक है। इसके लिए एक दिन अलग से रखना उचित नहीं है। जगन्नाथन के मुताबिक, रेल बजट कुछ और नहीं बल्कि सरकार को कुछ अकाउंट्स पेश करना है। इसके लिए किसी सार्वजनिक उपक्रम के बजट पर एक दिन खर्च नहीं होना चाहिए। इसमें भी लेखे, वार्षिक रिपोर्टिंग और बजटिंग है, जैसा कि अन्य प्राइवेट कंपनी में होता है।

हकीकत तो यह है कि कई समितियों ने इस बात को उठाया। उनका कहना था कि इस प्रक्रिया से कोई लाभ नहीं है बल्कि इससे सिर्फ राजनीतिकरण ही हो रहा था। रेल बजट में कितने ही साल से किराया नहीं बढ़ाया गया। नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबराय के नेतृत्व में बनी समिति ने कहा कि आम बजट के मुकाबले रेल बजट की परंपरा का महत्व काफी कम रह गया है। उन्होंने हालांकि, रेलवे के रिस्ट्रक्चरिंग के मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट में धीरे-धीरे ऐसा करने की सलाह दी थी। ब्रिटिशर्स ने 1924 में रेलवे का बजट अलग से प्रस्तुत करने की परंपरा शुरू की थी। इसकी वजह सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था में रेलवे का सबसे बड़ा योगदान था।

रेलवे के लिए इसके क्या मायने हैं?

पीटीआई की एक खबर के मुताबिक, दोनों बजट को मर्ज करने के बाद भी रेलवे की स्वायत्तता बनी रहेगी। एक सरकारी विभाग के तौर पर व्यवसायिक उपक्रम के तौर पर काम करता रहेगा। उसकी स्वतंत्रता जैसी थी, वैसी ही बनी रहेगी। इसका फायदा रेलवे को मिलेगा। उसे 10 हजार करोड़ रुपए का डिविडेंड सरकार को नहीं देना पड़ेगा। उसकी पूंजी, करीब 2.27 लाख करोड़ रुपए- उसके पास ही रहेगी।

यह राशि हर साल केंद्र सरकार की ओर से रेलवे को उपलब्ध कराई जाती है। यह उम्मीद है कि इस राशि का इस्तेमाल अब रेलवे के अन्य फंड्स जैसे- रिजर्व फंड्स, पेंशन फंड् और डेवलपमेंट फंड्स में इस्तेमाल किया जा सकेगा। रेलवे को अपने सामाजिक दायित्वों को भी निभाना होगा। अतिरिक्त पैसे से कुछ और सुधारों के लिए रास्ता खुलेगा।

रेल मंत्री सुरेश प्रभु पहले ही कई सुधारों की घोषणा कर चुके हैं। सरकार ने अभी रेलवे की सामाजिक लागत पर कोई फैसला नहीं किया है। यह करीब 30 हजार करोड़ रुपए है। इसमें मालभाड़े और यात्री भाड़े में रियायत और सब्सिडी शामिल है।

बजट प्रक्रिया का ओवरहॉल

हालांकि, यह बजट प्रक्रिया के संपूर्ण ओवरहॉल का महज एक हिस्सा है। यह उम्मीद की जा रही है कि अगले साल से बजट की तारीख एक महीने पहले आएगी। यानी समस्त प्रक्रिया 31 मार्च से पहले पूरी कर ली जाएगी ताकि एक अप्रैल से नई व्यवस्था लागू की जा सके। यह भी उम्मीद की जा रही है कि इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की योजना है। अभी तारीख तय नहीं की गई है लेकिन उम्मीद है कि 2017 में बजट फरवरी के आखिरी कामकाजी दिवस के बजाय एक फरवरी को पेश किया जाएगा। केंद्र सरकार ने कहा है कि अगले साल पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। उन्हें ध्यान में रखते हुए ही बजट सत्र और बजट पेश करने की तारीख तय की जाएगी।

यह सभी प्रस्ताव लंबे समय से पाइपलाइन में थे। आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव शक्तिकांत दास के मुताबिक, विभाग ने विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के कई वित्तीय सलाहकारों से बात की है। उसके बाद ही नया कैलेंडर तैयार किया गया है ताकि सभी सहभागियों को इस नई व्यवस्था के अनुरूप ढलने के लिए पर्याप्त वक्त मिल जाए।

अन्य महत्वपूर्ण फैसले

सरकार ने बजट की पूरी प्रक्रिया को आसान बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं। अलग-अलग श्रेणियों और वर्गीकरण को खत्म कर दिया है। यह सभी प्रस्ताव हाल ही में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में मंजूर किए गए। इस समय, शंकर आचार्य के नेतृत्व में एक समिति वित्त वर्ष पर विचार-विमर्श कर रही है।  रिपोर्ट आने के बाद ही तय हो सकेगा कि सिस्टम में बदलाव हो सकता है या नहीं। यह रिपोर्ट 31 दिसंबर तक सरकार को सौंपे जाने की उम्मीद है। भारत में वित्त वर्ष एक अप्रैल से शुरू होता है, जबकि ज्यादातर देशों में कैलेंडर वर्ष यानी जनवरी से ही नया आर्थिक वर्ष शुरू हो जाता है। इसमें एकरूपता लाने के लिए ऐसी बात कही जा रही है।

फैसलों का विधायिका पर असर  

यह उम्मीद की जा रही है कि ओवरहॉल के जरिए विधायिका के जरिए एक अप्रैल से शुरू होने वाले वित्त वर्ष से पहले ही विभागों और मंत्रालयों के खर्चों को सारी मंजूरियां मिल जाए। इसके लिए जरूरी है कि अक्टूबर से पहले ही बजट को तैयार कर लिया जाए। इसका नतीजा यह होगा कि संसद का बजट सत्र 25 जनवरी को बुलाया जा सकता है। आम तौर पर शुरू होने वाली तारीख से एक महीना पहले। इसका मतलब यह होगा कि आर्थिक सर्वेक्षण भी पहले पूरा कर लेना होगा।

जीडीपी अनुमानों को पहले घोषित करना होगा

अब तक जीडीपी से जुड़े एडवांस अनुमान 7 फरवरी तक तैयार किए जाते हैं। इन्हें अब 7 जनवरी तक पूरा कर लेना होगा। विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के खर्चों की मध्यावधि समीक्षा 15 नवंबर तक पूरी करनी होगी। हालांकि, बिजनेस स्टैंडर्ड में 21 सितंबर को प्रकाशित खबर के मुताबिक सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने कहा है कि वह इतनी जल्दी आंकड़े नहीं दे पाएंगे। हालांकि, दास को लगता है कि प्लानिंग के लिए जरूरी आंकड़े मिल जाएंगे।

प्लानिंग पर असर

समस्त प्रक्रिया को 31 मार्च तक खत्म करने की कोशिश हो रही है। ऐसे में बजट चक्र भी समय से पहले पूरा हो सकेगा। यह उम्मीद की जा रही है कि यह अलग-अलग मंत्रालयों की योजनाओं को बेहतर बनाने में पूरी मदद करेगा। विभिन्न कार्यक्रमों को वित्त वर्ष से शुरू से लागू किया जा सकेगा।
इससे पहले की प्रक्रिया में, बजट फरवरी के अंतिम दिन पेश किया जाता था। मई के मध्य में संसद इसे मंजूरी देती थी। इसके बाद मानसून शुरू हो जाता था। अक्टूबर में जाकर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश काम शुरू कर पाते थे। इसका मतलब यह होता था कि राज्यों को अन्य कार्यक्रम पूरे करने के लिए छह महीने का ही वक्त मिलता था। नई व्यवस्था के तहत सभी विभागों को एक अप्रैल से पहले ही बजट मिल जाएगा।

उद्योग और अन्य संबंधित पक्षों की भागीदारी 

नई व्यवस्था के तहत, सरकार को बजट से पहले क्रिसमस तक सभी उद्योगों और अन्य संबंधित पक्षो से चर्चा खत्म करनी होगी। इससे संसद से पहले अनुदान मांगों पर उन्हें अपना पक्ष रखने को मिल जाएगा।

खर्चों की श्रेणियों को हटाना  

अलग-अलग खर्चों के बीच की श्रेणियों को हटाने का फैसला लिया गया है। खासकर योजना और गैर-योजना खर्चों की श्रेणी हटा दी गई है। इससे दोनों ही तरीकों पर बराबरी से ध्यान देने को मिलेगा। 1959-60 के वित्त वर्ष में पहली बार दोनों मदों में अलग-अलग खर्च प्रस्तुत करने की व्यवस्था की गई थी। इससे पहले, योजना व्यय को गैर-योजना व्यय से ज्यादा महत्व समझा जाता था। अब ऐसी व्यवस्था पर बल दिया जाएगा, जिससे लोगों को उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके।

क्या यह सब फायदेमंद होगा?

अर्न्स्ट एंड यंग में चीफ पॉलिसी एडवायजर डीके श्रीवास्तव ने कहा कि यह सभी फैसले बड़े-बड़े फायदों की ओर लेकर जाएंगे। उन्हें लगता है कि मानसून से पहले पूंजीगत व्यय जारी करने की क्षमता विकसित करना एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम होगा। उन्होंने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले खर्च को लाभ मिलेगा, जिन पर मानसून की वजह से देरी होती है।

यह सब 4-5 महीने पहले हो जाएगा। अप्रैल से ही फंड बंटना शुरू हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि बारिश शुरू होने से पहले 2-3 महीने का काम पूरा हो जाएगा। जब कोई इसके फायदे पर बात करेगा तो निश्चित तौर पर लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था को इसका लाभ होगा। उन्हें यह भी लगता है कि बजट अनुमानों की गुणवत्ता को नई व्यवस्था और बेहतर बनाएगी।

यह भारत सरकार के लिए भी फायदेमंद होगा, जिस पर फंड जारी करने में देरी के आरोप लगते रहते हैं। इससे कामों में भी गति आएगी। एक तरह से बड़ा सुधार होगा। देश में इससे काफी कुछ सुधर जाएगा।

पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने इस सुधार का स्वागत किया है। लेकिन उन्हें लगता है कि ज्यादा खर्च-आधारित सुधार होना बेहतर है। उन्होंने रेलवे को भी मौजूदा स्वायत्तता और स्वतंत्रता से चलाते रहने की सलाह दी। अन्यथा, नई व्यवस्था रेलवे के लिए मुश्किलें भी पैदा कर सकती हैं। उन्होंने डिविडेंड को हटाने के प्रस्ताव का स्वागत किया। लेकिन यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार रेलवे को एक कॉरपोरेट बनाना चाह रही है। उन्हें लगता है कि इन सुधारों के बिना भी ऐसा किया जा सकता था। उन्होंने सरकार को सलाह दी कि वह इस संस्था को माइक्रो-मैनेज करने से बचे।

व्यय और बजट विभाग में सचिव रहे धीरेंद्र स्वरूप ने भी खर्चों की योजना और गैर-योजना जैसे वर्गीकरण हटाने का स्वागत किया। लेकिन यह भी कहा कि रेलवे को एक व्यवसायिक बॉडी बनाने की जरूरत है जो अपनी वित्तीय ताकत और विश्वसनीयता से संसाधनों को जुटाए। उन्होंने कहा कि मौजूदा फैसले से घाटे को रेलवे आम बजट की ओर धकेल देगा, जिसे वित्त मंत्रालय को उठाना होगा।

फीडबैक इंफ्रा के चेयरमैन विनायक चटर्जी ने फैसले का स्वागत किया। उन्हें लगता है कि रेलवे को लोकलुभावनकारी राजनीति से अलग करने का कदम बहुत अच्छा है। लेकिन वे समान स्तर की जवाबदेही और पारदर्शिता प्रदर्शन और अकाउंट्स में भी चाहते हैं। अरुण जेटली ने पहले ही कहा है कि हर साल रेलवे के खर्चों पर अलग से चर्चा होगी। ताकि संसद में उसकी पड़ताल हो सके। उसकी जवाबदेही भी बनी रहे।

केपीएमजी में इंफ्रास्ट्रक्टर क्षेत्र में पार्टनर जयजीत भट्टाचार्य के मुताबिक, यह फैसला रेलवे को एक कॉरपोरेट बॉडी बना देगा। हालांकि, केंद्रीय रेल मंत्री ने कहा कि रेलवे जैसा काम कर रहा था, वैसा ही करता रहेगा। उसे उसके खर्चों के लिए बजटीय सहायता मिलेगी। पूंजीगत खर्चों का एक हिस्सा केंद्रीय बजट से आएगा। इससे रेलवे को 1.21 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त मिलेंगे, जिन्हें इस साल खर्च किया जाना है। अन्य हिस्सा राजस्व से आएगा। जब सातवां वेतन आयोग लागू होता तो रेलवे को 40 हजार करोड़ रुपए खर्च करने होंगे।

बदलाव ऐसे वक्त किया गया है जब भारत की अर्थव्यवस्था बदल रही है। धीरे-धीरे फेडरल सिस्टम की ओर बढ़ रही है। यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में बजट पूर्वानुमान लगाना आसान हो जाएगा। इससे ज्यादा जोर खर्च पर आ जाएगा और राजस्व पर कम रहेगा।

चौथे वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों को भारत सरकार के शुद्ध टैक्स राजस्व का बड़ा हिस्सा मिलेगा। इससे उन्हें खर्च करने की छूट भी मिलेगी। जब गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू होगा तो हालात और सुधरेंगे। हालांकि, कोई नहीं जानता कि जीएसटी नए बजट का हिस्सा होगा या नहीं।