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अमरनाथ गुफा की कहानी

November 19, 2016


पवित्र अमरनाथ गुफा भगवान शिव से जुड़े महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है

पवित्र अमरनाथ गुफा भगवान शिव से जुड़े महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है

‘एकम सत’ का अर्थ है ‘सत्य एक ही है।’ यह ऋग्वेद का प्रसिद्ध छंद वाक्य है। इसके मुताबिक, ईश्वर के पास पूरी दुनिया के काम करने के लिए तीन देवता हैं। इन्हें त्रिदेव कहा जाता हैः ब्रह्मा यानी सृष्टि निर्माता, विष्णु जीवन के संचालक हैं और भगवान शिव बुराई को नष्ट करने वाले, शुद्धिकरण करने वाले और अच्छाई के अग्रदूत। ऋग्वेद में भगवान शिव का उल्लेख रुद्र के तौर पर किया गया है। यजुर्वेद में भगवान शिव को तपस्वी योद्धा कहा गया है, जो हिरण की खाल लपेटता है और हाथ में त्रिशुल धारण करता है। भगवान शिव को जीवित भगवान माना गया है।

उनके निवास के तीन स्थान बताए जाते हैं- पहला और सबसे महत्वपूर्ण कैलाश पर्वत, दूसरा है लोहित गिरी जिसके नीचे से ब्रह्मपुत्र नदी बहती है। और तीसरा मुजवान पर्वत। भगवान शिव का जिक्र ऋग्वेद के स्तोत्रों में मिलता है। प्राचीन भारत में भी भगवान शिव की आराधना की जाती थी और यह बात मोहेंजोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से साबित होती है।

भगवान शिव से जुड़े महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है पवित्र अमरनाथ गुफा, जो जम्मू-कश्मीर में स्थित है। हर साल लाखों हिंदू श्रद्धालु गुफा में बर्फ से बने भगवान शिव के एक प्रकार- शिवलिंग के दर्शन करने के लिए गुफा तक जाते हैं। वहां छत से पानी की बूंदें नीचे गिरती हैं और सतह पर आते ही जमने लगती है, जिससे यह शिवलिंग बनता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, अमरनाथ गुफा में शिवलिंग का आकार चांद की कलाओं के साथ बढ़ता और घटता रहता है। लेकिन इस मान्यता के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार या प्रमाण नहीं है। ऐसा समझा जाता है कि शिवलिंग के साथ, गुफा में बर्फ के दो और आकार बनते हैं, जिन्हें मां पार्वती और उनके बेटे गणेश के प्रतीक हैं।

अमरनाथ गुफा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। पौराणिक कथा के मुताबिक, शिव ने मां पार्वती को ब्रह्मांड के बनने और अमरता के राज बताने के लिए इस गुफा का चुनाव किया था।

एक बार मां पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि उन्होंने नरमुंडों की माला पहननी कब शुरू की। इस पर, भगवान शिव ने जवाब दिया- जब-जब तुम्हारा जन्म हुआ। मां पार्वती ने फिर पूछा- आप अमर क्यों हैं, जबकि मेरी बार-बार मृत्यु हो जाती है? भगवान शिव ने कहा कि यह एक अमर कथा की वजह से है। मां पार्वती ने उस अमर कथा को सुनने की जिद की और लंबे समय बाद भगवान शिव को मना ही लिया। भगवान शिव आखिरकार मां पार्वती को कहानी सुनाने को तैयार हो गए।

यह कहानी सुनाने के लिए, भगवान शिव ने एक ऐसी विरान जगह की तलाश शुरू की, जहां मां पार्वती के सिवा उस अमर कथा को कोई न सुन सके। उन्हें आखिर में अमरनाथ गुफा मिल गई। वहां पहुंचने के लिए उन्होंने अपने बैल नंदी समेत सारा सामान पहलगाम में छोड़ दिया। फिर अपना चांद चंदनवाड़ी में, अपने नाग शेषनाग झील के पास और बेटे गणेश को महागुणास पर्वत और पंजतरणी पर छोड़ दिया। उन्होंने पांच तत्वों (पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश) का भी त्याग कर दिया।

इसके बाद भगवान शिव इस पवित्र अमरनाथ गुफा में मां पार्वती के साथ दाखिल हुए। भगवान शिव वहां हिरण की खाल पर बैठे और समाधि ले ली। यह सुनिश्चित करने के लिए गोपनीय अमर कथा कोई सुन न ले, उन्होंने कालाग्नि नामक एक रुद्र बनाया और उसे आदेश दिया कि वह गुफा के आसपास सबकुछ भस्म कर दें। फिर उन्होंने मां पार्वती को अमरता की कहानी सुनानी शुरू की। लेकिन इतने प्रयासों के बाद भी, भगवान शिव जिस हिरण की खाल पर बैठे थे उसके नीचे एक अंडा सुरक्षित रह गया। लेकिन ऐसा समझ लिया गया कि वह जीवित नहीं है। उस अंडे से दो कबूतर निकले, जो अमर हो गए। आज भी श्रद्धालुओं को अमरनाथ गुफा की ओर यात्रा करते वक्त कबूतरों का वह जोड़ा नजर आ जाता है।

अमरनाथ यात्रा मार्ग

श्रद्धालु अमरनाथ गुफा की यात्रा श्रावणी मेले के आसपास पहुंचते हैं, जो अक्सर जुलाई-अगस्त में आता है।

पहलगाम से- एक पारंपरिक मार्ग

अमरनाथ गुफा पहुंचने के लिए, किसी भी श्रद्धालु को पहलगाम पहुंचना होता है, जो जम्मू से 315 किलोमीटर दूर है जबकि श्रीनगर से 96 किलोमीटर दूर। जम्मू से पहलगाम पहुंचने के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं या श्रीनगर तक हवाई यात्रा करने के बाद वहां से कार, बस या टैक्सी कर पहलगाम पहुंचा जा सकता है। इसके बाद यात्रियों को पहलगाम से चंदनवाड़ी (16 किमी) पहुंचना होता है, इसके लिए वे सड़क परिवहन का इस्तेमाल कर सकते हैं। श्रद्धालु पहलगाम या चंदनवाड़ी, कहीं भी कैम्प कर सकते हैं।

चंदनवाड़ी से श्रद्धालु पिस्सू टॉप तक पहुंचने के लिए चढ़ाई करते हैं। यह माना जाता है कि यह पहाड़ी भगवान शिव के हाथों मारे गए राक्षसों के मृत शरीरों से बनी है।

शेषनाग पहुंचने के लिए, श्रद्धालुओं को सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। पूरे रास्ते में अनछुए जंगली दृश्य दिखाई देते हैं, वहीं एक ओर कलकल करता जल रोमांचित करता है। इस जगह को अपना नाम सात चोटियों से मिला है। सात चोटियों का आकार मिलकर रहस्यमय शेषनाग के सिर जैसा अहसास कराता है।

शेषनाग से पंचतरणी जाने के लिए 4.6 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यह पवित्र अमरनाथ गुफा के रास्ते पर पड़ने वाला आखिरी कैम्प है। ठंडी और सर्द हवाएं त्वचा पर असर दिखाना शुरू कर देती हैं। इतनी ऊंचाई पर कुछ लोगों को ऑक्सीजन की कमी का अहसास भी होता है।

पंचतरणी से अमरनाथ गुफा की दूरी महज 6 किलोमीटर है। बीच में रुकने का कोई स्थान नहीं है, इसलिए श्रद्धालु सुबह जल्दी अपनी यात्रा शुरू करते हैं ताकि समय पर बेस कैम्प तक पहुंच जाएं। पूरा रास्ता ही खूबसूरत है।

बालटाल से- एक नया रास्ता

अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए एक और नया रास्ता बना है, जो बालटाल से होकर गुजरता है। यह जगह अमरनाथ गुफा से महज 14 किमी दूर है। जम्मू से बालटाल की दूरी 400 किलोमीटर है, जो टैक्सी या बस से तय की जा सकती है। वहां से, श्रद्धालु पोनी की मदद लेकर या पैदल ही अमरनाथ की यात्रा कर सकते हैं। यह रास्ता पहलगाम के मुकाबले बेहद संकरा और मुश्किल है, फिर भी बालटाल को बेस कैम्प बनाकर एक दिन में यात्रा पूरी की जा सकती है। यदि आप एक दिन में यात्रा पूरी करना चाहते हैं तो पहलगाम से पंचतरणी तक हेलिकॉप्टर से पहुंच सकते हैं।

कुल मिलाकर, अमरनाथ यात्रा अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है। हर एक को अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार जरूर अमरनाथ गुफा तक जाना चाहिए।

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