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जलवायु परिवर्तन से भारत में मानसून पर प्रभाव

July 2, 2018


जलवायु परिवर्तन से भारत में मानसून पर प्रभाव

पुराने समय से ही, भारत पहले ही अनुमान लगाई गई मानसूनी बारिश का आनंद लेता आ रहा है। साल में एक बार जून महीने के अंत में, हिंद महासागर और अरब सागर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट की तरफ से आने वाली भाप रूपी हवाओँ को मानसून कहते हैं। ये हवाएं पानी वाले बादल लाती हैं और गर्मियों के महीनों में प्यासी जमीन को सींचती हैं। विशाल वैश्विक प्रणाली के आधार पर एक अरब से अधिक लोग मानसून के इस सटीक समय पर निर्भर रहते हैं। इस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन दुर्भाग्य से हाल के दिनों में, मनुष्य ने अपनी क्रियाओं के माध्यम से उस तंत्र को बहुत नुकसान पहुँचाया है जिसके माध्यम से मानसून की भविष्यवाणी की जाती है।

भारत में मानसून कैसे बनते हैं?

यह जानने के लिए कि हमने मानसून को कैसे बाधित किया है, हमें सबसे पहले उस क्रिया को समझने की जरूरत है जिसके द्वारा मानसून बनता है। यह निम्नलिखित है-

  • बसंत के अंत में जब उत्तरी हिंद महासागर में तीव्र सौर ताप उत्पन्न होता है।
  • उत्तरी भारत के साथ-साथ तिब्बती पठार के मैदान भी गर्म हो जाते हैं।
  • तापमान और दबाव का झुकाव दक्षिण से उत्तर की ओर होता है।
  • दबाव के कारण हवाओँ का प्रवाह भूमध्यरेखा की ओर हो जाता है, यह हवाएं महासागर से इकट्ठा की गई नमी से भरी होती हैं।
  • हवाएं दक्षिण-पश्चिमी तट से भारत में प्रवेश करती हैं और बंगाल की खाड़ी की ओर आगे बढ़ती हैं,जब तक वह उत्तर भारत में भारी बारिश न कर दें तब तक नमी को एकत्र करती रहती हैं।

मानसून परिवर्तन का प्रभाव

पिछले कुछ सालों से, भारत मानसून के मामले में घाटे का सामना कर रहा है। वर्षा का वितरण असमान हो रहा है जिसके कारण जलाशयों को पानी एकत्र करने, उसे बनाये रखने और मिट्टी को पानी सोखने में मुश्किल हो रही है। कृषि पर भी यह गंभीर रूप से प्रभाव डालता है जो कि भारत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है।

वैश्विक चक्रों के संयोजन के परिणामस्वरूप वर्षा का वितरण असमान हो जाता है। एल नीनो (गर्म जलधारा है जिसके आगमन पर सागरीय जल का तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है) मानव द्वारा प्रभावित जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रत्याशित तरीके से परिवर्तित हो रही है। अब मानसून के अनुमान को समझना अधिक जटिल हो रहा है।

  • मैरीलैंड विश्वविद्यालय में अध्ययन और पृथ्वी तंत्र विज्ञान के प्रोफेसर रघु मुर्तगुग्डे के अनुसार,“एक बदलती जलवायु का मतलब यह नहीं है कि हम पहले से ही बदलती जलवायु परिवर्तन के परिणाम देखें। जब आपके पास मानसून के जैसी एक प्रणाली होती है जिसकी खुद की बहुत उच्च परिवर्तनशीलता है, तो ग्लोबल वार्मिंग के संकेतों में समय लगता है। उच्च परिवर्तनशीलता की पृष्ठभूमि के खिलाफ, ग्लोबल वार्मिंग संकेत बारी-बारी से उन प्राकृतिक चक्रों को प्रभावित कर सकते हैं जिसकी हम अभी तक भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं।”
  • विशेषज्ञों के अनुसार, हिंद महासागर गर्म हो रहा है, दक्षिण एशिया में बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर ने जमीन की सतह के तापमान को कम कर दिया है। इस प्रकार जमीन और समुद्र के बीच तापमान में अंतर, तापमान और दबाव के प्रवाह को प्रभावित करने के लिए कमजोर हो गया है, जो मानसून की तीव्रता को बाधित कर रहा है।
  • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे और भारतीय विज्ञान संस्थान, और बेंगलुरु के द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार, भारत अत्यधिक वर्षा का सामना कर रहा है।
  • अध्ययन के अनुसार, पिछले पचास वर्षों में मध्य भारत में मानसूनी बारिश में वृद्धि हुई है जबकि मध्यम बारिश की घटनाओं में कमी आई है। ऐसा तिब्बत मे पठार के बढ़ते तापमान के साथ-साथ उत्तरी भारत और पश्चिमी हिमालय में पश्चिमी अशांति के कारण हुआ है।
  • पश्चिमी अशांति के कारण ही जून 2013 में उत्तराखंड ने भारी बाढ़ से विनाश का सामना किया है, 2014 और 2015 के मार्च महीने में महाराष्ट्र में हुई मूसलाधार बारिश के कारण रबी की फसल को भारी नुकसान पहुँचा है।
  • 2015 में ‘नेचर’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप में पिछले 10 वर्षों में किये गये परीक्षण में पाया गया कि भारत के मध्य-पूर्व क्षेत्र में 10 से 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है, इस अध्ययन में मानसून से संबंधित आँकड़ों पर अध्ययन किया गया था।

भारत का अधिकांश भाग खासकर कृषि क्षेत्र मानसूनी बारिश पर निर्भर करता है। बारिश पर पड़े इस प्रकार के प्रभाव के कारण यह अप्रत्याशित हो जाती है जिससे किसानों को यह समझना मुश्किल हो जाता है कि उनको किस प्रकार की फसलों को उगाने की जरूरत है। भारतीय कृषि में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर शोध करते हुए केरल कृषि विश्वविद्यालय में एस. मॉरगन बताते हैं कि किसानों को बदलते हुए मानसून पैटर्न के अनुकूल होना चाहिए, साथ ही समान्तर समाधानों की तलाश करनी चाहिए। उनको एकल फसल के बजाय मिश्रित फसलों को बोना चाहिए।

 

हमें ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करना होगा, भारत में मानसून के सटीक और पूर्वानुमान चक्र को वापस लाने के लिए यह महत्वपूर्ण उपाय है। मानसून के बदलते पैटर्न के अनुकूल हो जाना इसका समाधान नहीं है। यह केवल ग्लोबल वार्मिंग को खत्म करने की प्रक्रिया का पूरक हो सकता है।