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कितने सुरक्षित हैं हमारे भारतीय स्ट्रीट फूड?

September 14, 2018
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कितने सुरक्षित हैं हमारे भारतीय स्ट्रीट फूड?

चांदनी चौक के कुरकुरे हों या मुंह में पानी ला देने वाले गोलगप्पे या फिर कनॉट प्लेस की स्वादिष्ट कचौरी, एक भारतीय अपने जीवन में इन स्ट्रीट फूडों का आनंद लिए बिना खुद को अधूरा महसूस करता है। और हो भी क्यूं न? स्वादिष्ट खाने को लेकर जितना भरोसेमंद ये फैंसी रेस्तरां हैं उससे कहीं अधिक ये स्ट्रीट फूड और वो भी इतने कम पैसों में। यह ऐसा भोजन है जिसे हर कोई पसंद करता है, इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता कि दर्जा क्या है और पृष्ठभूमि क्या है। लेकिन दुर्भाग्यवश, सभी स्ट्रीट फूड स्वास्थ्यवर्धक नहीं होते हैं। हम बिना कुछ सोचे-समझे निरंतर पाव भाजी का आनंद लेते रहते हैं, इसको लेकर हमारे मन में एक सवाल है। आप अपने स्ट्रीट फूड को वास्तव में कितना स्वास्थ्यकर समझते हैं?

सच्चाई की पड़ताल

2015 में होटल प्रबंधन संस्थान (आईएचएम) द्वारा किए गए एक अध्ययन में कुछ चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। संस्थान को मशहूर स्ट्रीट फूड से प्राप्त किए गए नमूने में गोल गप्पे जैसी चीजों में कुछ अपशिष्ट पदार्थ मिले। जिसमें ई. कोलाई नामक एक बैक्टीरिया भी बड़े स्तर पर मौजूद थे। जो डायरिया, आंत्रशोथ जैसी समस्याओं का कारण बनता है।

अनुसंधान डेटा को एक तरफ रखते हुए, हमारा दिमाग एक संदेहात्मक अवस्था के बीच जाने के लिए आश्वस्त है, भले ही हम उन क्षेत्रों पर मंथन करें जहां से हमें अपना पसंदीदा स्ट्रीट फूड प्राप्त होता है। ज्यादातर विक्रेताओं के स्टाल आमतौर पर सड़क या फिर सड़क के किनारे खुले में लगे होते हैं। कुछ स्ट्रीट फूड के स्टाल तो सार्वजनिक शौचालय के पास ही होते हैं। यह कितने स्वास्थ्यकर हैं, इसका जबाब देना बहुत मुश्किल नहीं है। कुछ छोटे पैमाने के विक्रेताओं के अपवाद के साथ और विशेष स्ट्रीट फूडों को शामिल करने में, दस्ताने का उपयोग शायद ही कभी भोजन को तैयार करने में किया जाता हो। भेलपुरी आदि जैसे खाद्य पदार्थों के मामले में सुरक्षा का खतरा अधिक बढ़ जाता है क्योंकि वे कच्ची सब्जियों का भी उपयोग करते हैं, जिनकी सफाई आपत्तिजनक है।

क्या फल या फलों का जूस वास्तव में एक सुरक्षित विकल्प है?

क्या आपको स्ट्रीट फूड की सुरक्षा पर संदेह है और इसलिए आप अपने स्थानीय विक्रेता से जूस/फलों को लेना पसंद कर रहे हैं? यदि हाँ, तो आपको अपने विकल्पों पर फिर से विचार करने की जरूरत हो सकती है। लेकिन यह सुनकर आप निश्चित ही चौंक जाएंगे कि आपके द्वारा अपने शरीर को स्वास्थ्यकर बनाने को लेकर किए गए प्रयास आपके शरीर को निरोगी नहीं बल्कि रोगी बना रहे हैं।

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फलों का जूस निकालते वक्त, न केवल बर्तनों की साफ-सफाई की कमी होती है, बल्कि फलों के रस में डाली जाने वाली बर्फ भी गंदे पानी से तैयार की जाती है। इसलिए मेरा सुझाव है कि आप जूस के स्टॉल पर जाने से पहले दो बार अवश्य सोचें।

गर्मियों में, आपको प्रत्येक फल विक्रेता के ठेले पर पर ‘ताजे’ कटे हुए फल देखने को मिलते हैं, जो गर्मी को मात देते हैं। जो दिखने में तो आकर्षक होते हैं। लेकिन स्वास्थ्यप्रद ? शायद इतने नहीं जितना आप सोंचते हो।

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कटे हुए फलों को आमतौर पर ठंडी जगह पर और ढककर रखने की सलाह दी जाती है। हालांकि, सड़कों के किनारे लगे स्टालों पर शायद ही आपको इस तरह की स्थिति देखने को मिलती हो। सही तरीके के बिना, कटे हुए फलों में बैक्टीरिया से दूषित होने की संभावना अधिक होती है।

कैसे आप खुद को रख सकते हैं सुरक्षित?

हालांकि यहां कुछ सावधानियां दी गई हैं जिन्हें आपको ध्यान में रखना चाहिए, अच्छी खबर यह है कि आपको अपने पसंदीदा स्नैक्स को “अलविदा” कहने की जरूरत नहीं है। यहां हम कुछ चीजों को सूचीबद्ध कर रहे हैं जब अगली बार आप खाने के लिए बाहर जाएं तो इन्हें ध्यान रखें:

1) सुनिश्चित करें कि बर्तन साफ हों- वह जिसमें आपके लिए खाना बनाया गया है, साथ ही साथ वह भी जिसमें आपको खाना परोसा गया है।

2) आसपास का वातावरण कितना स्वच्छ है इसका भी पता लगाएं।

3) यह भी पता करें कि विक्रेता के पास दस्ताने हैं या नहीं।

4) यदि आप जूस या शेक का गिलास ले रहे हैं, तो उसमें बर्फ न डलवाएं। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करें कि जग, ग्लास आदि साफ हो।

5) सड़क के किनारे लगे स्टालों पर कटे हुए फलों का सेवन करने से बचें।

हालांकि हम स्ट्रीट फूड की खराब गुणवत्ता के लिए स्थानीय विक्रेताओं को दोषी ठहरा सकते हैं, उस बिंदु का दृष्टिकोण बेहद संकीर्ण है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड हेल्थ ने 2018 के प्रारम्भ में एक शोध पत्र प्रकाशित किया, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया है कि “स्ट्रीट फूड विक्रेता खाद्य स्वच्छता के बारे में जानते थे और इसके प्रति उनका रवैया अनुकूल था, लेकिन उन्होंने इस बात को बिल्कुल नहीं माना कि उनके खाने में स्वच्छता और स्वास्थ्य की कमी है। इसके लिए छोटे से छोटा असामान्य कारण आसानी से पकड़ा जा सकता है। आमतौर पर स्ट्रीट फूड विक्रेताओं के पास भोजन का प्रबंध करने की एक साफ सुथरी, स्वस्थ प्रणाली को सुचारु करने के लिए उपयुक्त संसाधनों की कमी होती है। इसलिए, भले ही वे मौलिक रूप से इस ढांचे को बदलना चाहें, लेकिन फिर भी वे सरलता पूर्वक ऐसा नहीं कर सकते।

सरकार की उपयुक्तता कहां तक है?   

2017 में, भारत के खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के साथ राष्ट्रीय राजधानी में “एक तरह की एक” पहल की शुरुआत की। बुनियादी स्वास्थ्य मानकों और स्वच्छता के तौर-तरीकों पर करीब-करीब 23,000 स्ट्रीट फूड विक्रेताओं को प्रशिक्षण दिया गया था। प्रशिक्षण पूरा होने पर, उन्हें प्रमाण पत्र के साथ एक किट भी प्रदान की गई थी, जिसमें एप्रन, दस्ताने इत्यादि जैसी आवश्यक वस्तुएं शामिल थीं।

इच्छुक विक्रेताओं और सरकारी पहलों के साथ, स्ट्रीट फूड की स्थिति में अत्यधिक सुधार किया जा सकता है। परिवर्तन का चक्र चल रहा है, पर एक जागरूक उपभोक्ता के रूप में, हमें सावधानी बरतने के लिए अपनी व्यक्तिगत जागरुकता की आवश्यकता होगी। ऐसा करने से आप अपने मनपसंद व्यंजन का आनंद दिल खोलकर ले सकते हैं !

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कितने सुरक्षित हैं हमारे भारतीय स्ट्रीट फूड?
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हम सब रोज एक बार इन स्ट्रीट फूड का स्वाद अवश्य ही लेते हैं। लेकिन, यह कितना सुरक्षित है? और अगर नहीं है, तो हम अपने आप को रोगों की चपेट में आने से कैसे रोक सकते हैं?
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