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प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान

August 10, 2016


 

प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए)

प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए)

नरेंद्र मोदी सरकार ने नौ जून को गर्भवती महिलाओं के लिए एक नई स्वास्थ्य योजना प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) शुरू की है।

आकाशवाणी और रेडियो के अन्य चैनलों पर प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधान मंत्री मोदी ने स्वस्थ राष्ट्र की जरूरत पर बात की। साथ ही यह भी कहा कि गर्भवती महिलाओं के लिए प्रसव से पहले की अवधि में स्वस्थ रहना कितना जरूरी है। उच्च मातृ मृत्यु दर के साथ ही शिशु मृत्यु दर को भी नीचे लाने के लिए इस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है। केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई नई योजना इस उद्देश्य पर कारगर साबित होगी। दोनों ही दरों को कम करने में मदद करेगी।

उच्च मातृत्व मृत्यु दर

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की 27 फरवरी 2015 को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य (एमडीजी) 5 के तहत, भारत में 1990 की 560 प्रति एक लाख मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) को नीचे लाते हुए 2015 में 140 प्रति 1,00,000 तक लाने का लक्ष्य था।

हालांकि, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2011-2013 के बीच एमएमआर 167 प्रति 1,00,000 रही। यूनिसेफ के मुताबिक, 55,000 से ज्यादा गर्भवती महिलाएं प्रसव के वक्त अपनी जान गंवा देती हैं। इसे समय-समय पर मेडिकल फॉलो-अप और जांच के जरिए रोका जा सकता है। यह सरकार के चिंताजनक होने के साथ ही प्राथमिकता का मामला है। इस बात की पुष्टि केंद्र सरकार की ओर से गर्भवती महिलाओं की जरूरतों के मुताबिक शुरू की गई कुछ योजनाओं के जरिए होती है।

मुफ्त चिकित्सा जांच वरदान साबित होगा

पीएमएसएमए योजना के तहत, सभी सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र हर महीने की नौ तारीख को सभी गर्भवती महिलाओं की निशुल्क चिकित्सा जांच करेंगे। इस जांच में हीमोग्लोबिन की जांच, खून की जांच, शुगर के स्तर की जांच, ब्लड प्रेशर, वजन और अन्य सामान्य जांचें की जाएगी।

जब गर्भ तीन से छह महीने का हो तो महिलाएं सरकारी अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र या किसी संबद्ध प्राइवेट अस्पताल में नियमित जांच के लिए संपर्क कर सकती हैं। प्रधान मंत्री ने प्राइवेट डॉक्टरों से पीएमएसएमए योजना से जुड़ने और अपनी सेवाएं देने की अपील की है।

गर्भवती महिलाएं, खासकर आर्थिक तौर पर कमजोर तबकों की महिलाएं आम तौर पर कुपोषित होती हैं। उन्हें गर्भधारण के दौरान महत्वपूर्ण पोषक तत्व भी नहीं मिलते। इसका नतीजा अक्सर यह होता है कि बच्चे किसी न किसी विकार के साथ पैदा होते हैं। साथ ही कुपोषण से पीड़ित होते हैं।

यदि गर्भवती महिलाओं की समय-समय पर निगरानी की जाए तो नवजात शिशुओं में आने वाले कई विकारों को दूर किया जा सकता है। गरीबी और जागरुकता नहीं होने से, कमजोर तबकों की ज्यादातर महिलाएं समय पर चिकित्सकीय सलाह और देखरेख का लाभ नहीं उठाती। पीएमएसएमए से यह सुनिश्चित होगा कि सभी गर्भवती महिलाओं की हर महीने की नौ तारीख को मुफ्त चिकित्सकीय जांच होगी। वह देश के किसी भी सरकारी अस्पताल या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जाकर यह जांच करवा सकती हैं।

नियमित फॉलो-अप लेने पर, यह कदम निश्चित तौर पर विकारों के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में कमी ला सकता है। निस्संदेह, चिकित्सकीय जांच के बाद उचित स्वास्थ्य निगरानी होनी चाहिए। इसके अलावा, आहार और पोषक पूरक तत्वों की जरूरत के मुताबिक उपलब्धता भी सुनिश्चित होती है। ज्यादातर महिलाएं तो दो वक्त की रोटी के लिए तरसती हैं, ऐसे में पर्याप्त पोषण और जरूरतों की पूर्ति उनके लिए मुश्किल ही प्रतीत होती है। एक बड़ी वजह यह भी है कि कई महिलाएं घर के कामकाज में इतनी व्यस्त रहती है कि अपने स्वास्थ्य की देखभाल ही नहीं करती।

पीएमएसएमए योजना के घटक अन्य सरकारी योजनाओं को समर्थन देती है। खासकर जननी सुरक्षा योजना, जिसमें गर्भवती महिलाएं सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों और कुछ संबद्ध निजी अस्पतालों में मुफ्त प्रसव की सुविधा प्राप्त कर सकती है।

गर्भवती महिलाओं के आहार और पोषण के स्तर को बढ़ाने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत है।

यूनिसेफ के मुताबिक, शिशु मृत्यु दर और जन्म के बाद की जटिलताएं की प्रमुख वजह कुपोषण है। इसका नतीजा यह होता है कि बच्चे का वजन कम रहता है। आयोडिन और विटामिन ए की कमी होती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए समय पर स्वास्थ्य जांच एक महत्वपूर्ण कदम है लेकिन जब तक नियोजित और निगरानी में पोषण आहार नहीं देंगे तब तक मां और अजन्मे बच्चे की सेहत के साथ समझौता होता रहेगा।

सरकार को इस वजह से पीएमएसएमए को विस्तार देते हुए सरकार प्रायोजित पोषण आहार सुविधा और सप्लाई प्लान को उसके दायरे में लाना होगा। इसके लिए प्रत्येक महिला की जरूरत को समझना होगा। स्वस्थ लोगों के आधार पर ही स्वस्थ राष्ट्र की कल्पना साकार हो सकती है। लेकिन इसके लिए लंबा सफर तय करना होगा।

सरकार प्रसव-पूर्व और प्रसव के बाद की देखरेख की सुविधाओं पर जितना खर्च कर रही है, उसमें कमी लाई जा सकती है। इसके लिए गर्भवती महिलाओं की नियमित जांच करवानी होगी। उन्हें समय पर उचित पोषण उपलब्ध कराना होगा। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिस पर आने वाले समय में सरकार का पूरा ध्यान रहने वाला है।